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इस्लाम जदीदकारी और खेल का मुखालिफ नहीं : सूफी कौसर मजीदी

इस्लाम न तो जदीदकारी (आधुनिकीकरण) का मुखालिफ है और न ही खेलकूद का। इस्लाम अपने पैरोकारों को उन बातों से दूर रहने की बात करता है, जो अखलाकियात (नैतिकता) के बरअक्स (विरुद्ध) हैं।

नई तहरीक : रायपुर 
 कलाम-ए-पाक में बारंबार गलत चीजों से दूर रहने कहा गया है। यहां तक कि इस्लाम ऐसे किसी तसव्वुर से भी मना करता है जिससे मआशरे में बुराई पैदा हो। कुरआन-ए-करीम में है, ‘ए ईमान वालों, बदगुमानों से बचो, कहीं कोई गुमान गुनाह न हो जाए।’
    कुरआन में बुराई से दूर रहने की नसीहतों और फरमानों को बाअज कट्टरपंथियों ने इस कदर तोड़-मरोड़ कर पेश किया है कि आम लोगों के आगे पूरे इस्लाम का ही खाका ‘कट्टर’ होकर रह गया है। ताहम ऐसा नहीं है,     इस्लाम सरल मजहब है और सरलता की तरगीत देता है। 
    यकीनन इस्लाम हर उस चीज से मना करता है जिससे बंदे और माबूद के राब्ते में कमी आए। यानी इस्लाम नमाज से दूर करने वाले हर अमल से बचने की तरगीब देता है। कुरआन-ए-करीम में आए एक लफ्ज का तर्जुमा अक्सर कुछ कट्टरपंथी खेलकूद से करते हैं, जो गलत है, इस्लाम किसी भी तरह खेल का मुखालिफ नहीं है. बल्कि में इस्लामी दानिश्वर उन खेलों को अहयित देते थे जिनसे जिस्मानी फायदा हो। इस्लामी इंतेजामिया के दौरान घुड़सवारी, तैराकी, कुश्ती और पोलो जैसे खेलों जिससे जिस्म मजबूत होता है, की खूब हौसलाअफजाई की जाती थी। फन्ने सिपहगिरी (सैन्य विज्ञान) मध्यकाल में इस्लामी निजामे ताअलीम का एक जरूरी हिस्सा रहा है। नई-नई खोज और इल्म की इस्लाम ने हमेशा हौसलाअफजाई की है। इस्लामी दानिश्वरों ने अजेय किलों को भेदने के लिए मिंजनीक नामक हथियार बनाया था जिसकी बिना पर बाद में तोप वजूद में आई। 
    जाहिर है कि इस्लाम मआशराती बुराइयों से दूर रहने की बात करता है, उन ख्यालों और तसव्वुरों से दूर रहने का हुक्म देता है, जो मआशरे में बुराई पैदा करने का सबब बनते हैं। कुरआन पाक में अल्लाह मुसलमानों को मुखातिब करते हुए कहता है, ाऐ ईमान वालों, अल्लाह तुम पर अजाब क्यों नाजिल करेगा, जब तुम उसके फरमान मानोगे, तो वो तुम्हें बख्श देगा और जन्नत में ले जाएगा और अनकरीब तुम्हे अपना दीदार कराएगा।’
- सूफी मोहम्मद कौसर हसन मजीदी एडवोकेट 
राष्ट्रीय अध्यक्ष सूफी खानकाह एसोसिएशन

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