नई तहरीक : रायपुर
मजहब-ए-इस्लाम एक सच्चा, पाक और अमन व सुकून वाला मजहब है। इस्लाम अपने मानने वालों को शऊर-ए-जिंदगी की तरगीब देता है। यानि इस्लाम में उसके मानने वालों के लिए जिंदगी गुजारने की बेहतर रहनुमाई मौजूद है। इस्लाम में दूसरों से किए गए वादों को पूरा करने की खासी अहमियत बयान की गई है। बल्कि बेहतरीन मआशराती जिंदगी की बुनियाद ही आपसी वादों और वफादारी पर मुनहस्सिर है। इसे लेकर इस्लाम में जगह-जगह वजाहत की गई है। पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया : ‘अपने भाई से झगड़ा न करो, उसे तकलीफ न दो और उससे ऐसा वादा न करो जो पूरा न कर सको।’ एक और जगह आप सल्लाल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इरशाद फरमाया : ‘मुनाफिक (चाहे वह नमाज-रोजे का पाबंद हो और खुद को मुसलमान समझता हो) की तीन निशानियां हैं। पहली यह कि जब बात करे तो झूठ बोले, दूसरी जब वादा करें तो पूरा न करे और तीसरी जब उसके पास अमानत रखी जाए तो खयानत करे।’ यानी जो वादा करे, उसे पूरा न करे, वह सच्चा मुसलमान नहीं हो सकता। वादा पूरा न करना मुनाफिक की निशानी है। हदीस के अलफाज उन मुसलमानों के लिए तशवीशनाक हैं, जो वादा करके उसे पूरा करने की परवाह नहीं करते और उनके लिए भी जो बेवफाई करते हैं।
इस्लाम का यह इतना बेहतरीन नियम है कि अगर इसे अपना लिया जाए तो मआशरे से तमाम बुराइयां दूर हो जाएं। नफरतें मिट और बाहमी मुहब्बत और भाईचारगी बढ़ जाए। अवाम से खासकर नौजवान तबके से मोअद्दबाना गुजारिश है कि वे इस्लाम के इस खासे अहम नियम को अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लें ताकि उनकी जिदंगी और पूरा मआशरा खुशियों से भर जाए।
मजहब-ए-इस्लाम एक सच्चा, पाक और अमन व सुकून वाला मजहब है। इस्लाम अपने मानने वालों को शऊर-ए-जिंदगी की तरगीब देता है। यानि इस्लाम में उसके मानने वालों के लिए जिंदगी गुजारने की बेहतर रहनुमाई मौजूद है। इस्लाम में दूसरों से किए गए वादों को पूरा करने की खासी अहमियत बयान की गई है। बल्कि बेहतरीन मआशराती जिंदगी की बुनियाद ही आपसी वादों और वफादारी पर मुनहस्सिर है। इसे लेकर इस्लाम में जगह-जगह वजाहत की गई है। पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया : ‘अपने भाई से झगड़ा न करो, उसे तकलीफ न दो और उससे ऐसा वादा न करो जो पूरा न कर सको।’ एक और जगह आप सल्लाल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इरशाद फरमाया : ‘मुनाफिक (चाहे वह नमाज-रोजे का पाबंद हो और खुद को मुसलमान समझता हो) की तीन निशानियां हैं। पहली यह कि जब बात करे तो झूठ बोले, दूसरी जब वादा करें तो पूरा न करे और तीसरी जब उसके पास अमानत रखी जाए तो खयानत करे।’ यानी जो वादा करे, उसे पूरा न करे, वह सच्चा मुसलमान नहीं हो सकता। वादा पूरा न करना मुनाफिक की निशानी है। हदीस के अलफाज उन मुसलमानों के लिए तशवीशनाक हैं, जो वादा करके उसे पूरा करने की परवाह नहीं करते और उनके लिए भी जो बेवफाई करते हैं।
इस्लाम का यह इतना बेहतरीन नियम है कि अगर इसे अपना लिया जाए तो मआशरे से तमाम बुराइयां दूर हो जाएं। नफरतें मिट और बाहमी मुहब्बत और भाईचारगी बढ़ जाए। अवाम से खासकर नौजवान तबके से मोअद्दबाना गुजारिश है कि वे इस्लाम के इस खासे अहम नियम को अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लें ताकि उनकी जिदंगी और पूरा मआशरा खुशियों से भर जाए।