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खुतबा जुमा में खतीबों ने उदयपुर कत्ल की सख़्त मुजम्मत की

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नई दिल्ली :
नमाज-ए-जुमा से कब्ल मुल्क की कई बड़ी मसाजिद के इमामों ने अपने खुतबा में उदयपुर में हुए दर्जी के कत्ल की एक बार फिर सख़्त मुजम्मत की और उसे इस्लाम के उसूलों के खिलाफ करार दिया। खतीबों ने कहा, किसी भी हालत में किसी को भी कानून हाथ में लेने का हक नहीं है। सजा देने का काम हुकूमत के बनाए मुख़्तलिफ इदारे ही करेंगे, अगर हर कोई अपनी मर्ज़ी के मुताबिक सजा देने का काम करेगा तो इससे मुआशरे और कौम का शीराजा बिखर जाएगा। 

अइम्मा किराम ने कहा कि इस्लाम तशद्दुद की मुजम्मत करता है और अदम तशद्दुद, रवादारी और हम-आहंगी और एक दूसरे के एहतिराम को फरोग देता है। इस्लाम खासतौर पर कहता है कि अल्लाह हमलावरों से नफरत करता है, लिहाजा ऐसे ना बनों। इस्लाम अपने पैरोकारों को अफ्व (क्षमा) दरगुजर और रवादारी (सहनशीलता) को फरोग देने की दावत देता है। अमन, बाहमी एहतिराम और एतिमाद मुस्लमानों के दूसरों के साथ ताल्लुकात की बुनियाद है। इमामों ने कहा कि नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फरमाया कि क्या तुम जानते हो कि सदका, रोजा और नमाज से बेहतर है; ये अमन और लोगों के दरमयान अच्छे ताल्लुकात को बरकरार रखना है, क्योंकि तनाजआत और बुरे जजबात इन्सान को तबाह कर देते हैं। कुरआन के मुताबिक अमन सिर्फ़ पुरअमन तरीकों से ही हासिल किया जा सकता है। इस्लाम में किसी भी वजह से, मजहबी, सियासी या समाजी, बेगुनाह लोगों का कत्ल ममनू है और एहतिजाज भी गैर मुतशद्दिद (अहिंसात्मक) होना चाहिए। 

इस्लाम के मुताबिक 'तुम किसी को कत्ल ना करो, अल्लाह ने ये मुकद्दस जिंदगी दी है। इस्लाम किसी भी बेगुनाह के कत्ल और ईजारसानी (तकलीफ पहुंचाने) से सख़्ती से मना करता है। ताहम बहुत सी दहश्तगर्द तंजीमें और कई इंतिहापसंद तन्जीमों ने अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए इस्लाम का नाम इस्तिमाल किया है। दहश्तगर्दी की कार्यवाहीयों के लिए किसी को भी मोरीद-ए-इल्जाम  (अभियुक्त) ठहराया जा सकता है, चाहे वो किसी भी मजहब से ताल्लुक रखता हो। दहश्तगर्दी को मुख़्तलिफ तन्जीमों ने अपने अपने मकासिद, अस्बाब या नजरियात को आगे बढ़ाने के लिए अपनाया है। ऐसी तंजीमें इस्लाम को बदनाम कर रही हैं। ऐसी तन्जीमों की तरफ से पूरी दुनिया में मासूम लोगों पर हमलों का कोई मजहबी जवाज नहीं है। ये सब कुछ इस्लाम में सख़्ती से ममनू है। 

अइम्मा किराम ने कहा कि आज सोशल मीडीया तशद्दुद के मुर्तकिब अफराद के लिए एक नेअमत गैर मुतरक़्कबा साबित हुआ है क्योंकि इस प्लेटफार्म को जाली खबरें और गलत मालूमात फैलाने के लिए इस्तिमाल किया जा रहा है, जिससे तशद्दुद में शिद्दत आई है। सोशल मीडीया पर गलत मालूमात देकर लोगों के जजबात को भड़काने की कोशिश की जा रही है। इमामों ने लोगों बिलखसूस नौजवानों से अपील की कि वो सोशल मीडीया पोस्ट्स और वीडीयोज को अंधाधुंद फॉलो और शेयर ना करें। कोई भी सनसनीखेज मवाद शेयर ना करें, क्योंकि बुनियाद परस्त मुल्क और अमन के दुश्मन हैं, वो कोई भी गलत और गुमराह कुन मालूमात फैला सकते हैं। जो जंगल की आग की तरह फैल सकती है। अइम्मा किराम ने कहा कि इस्लाम एक खूबसूरत मजहब है जो अमन, तआवुन और मुहब्बत को फरोग देता है। ये नफरत, तशद्दुद को फरोग नहीं देता और तशद्दुद की कार्यवाईयों की वकालत नहीं करता। कादरी मस्जिद शास्त्री पार्क दिल्ली के मुफ़्ती इशफाक हुसैन कादरी, सुन्नी जामा मस्जिद रतलाम के मुफ़्ती बिलाल निजामी, मकराना के मुफ़्ती शम्सुद्दीन बरकाती, मौलाना शाहिद मिस्बाही हमीर पूर, मौलाना बदर उद्दीन मिस्बाही खतीब और इमाम मस्जिद आला हजरत निजामीया, लखनऊ, मौलाना सय्यद अली, मौलाना फजल अल रहमान और दीगर ने खिताब किया। मौलाना अंसार फैजी अजमेर, कारी हनीफ मुरादाबाद, मौलाना सखी जम्मू, मौलाना मजहर इमाम (उतर देनाज पूर बंगाल), मौलाना अब्दुल जलील निजामी (पीलीभीत), मौलाना समीर अहमद (रामपूर), मौलाना कारी जमाल, मौलाना इबरार भागलपुर, मौलाना मुस्तफा रजा नागपुर और अमान शहीद जामा मस्जिद के मौलाना तनवीर अहमद और मुस्तफा आबाद, दिल्ली में मौलाना मुशर्रफ ने इसी मौजू पर बात की। 

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