नई दिल्ली : गद्दारी कानून और इसके गलत इस्तिमाल पर जारी बहस के दरमयान सुप्रीमकोर्ट ने बुध को बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने कानून पर फिलहाल रोक लगा दी है।
खास बात ये है कि मर्कजी हुकूमत ने कानून पर नजरसानी की बात की है। सुप्रीमकोर्ट का कहना है कि वो कुछ दरखास्त की वजह से कानून को खत्म नहीं कर सकता, लेकिन नजरसानी मुकम्मल होने तक उसे रोक सकता है। मर्कज ने तजवीज पेश की है कि मुस्तकबिल में दफा 124, 65 के तहत एफआईआर सिर्फ़ सुपरींटेंडेंट आफ पुलिस या इससे ऊपर के आफिसरान के जरीया जांच के बाद ही दर्ज की जा सकती हैं। हुकूमत ने कहा है कि जेरे इलतिवा मुकद्दमात में अदालत जमानत पर जल्द गौर करने का हुक्म दे सकती है। दरखास्त गुजार की तरफ से पेश होने वाले वकील कपिल सिब्बल ने कहा है कि मुल्कभर में देशद्रोह के 800 से ज्यादा मुकद्दमात दर्ज हैं। 13 हजार लोग मुख्तलिफ जेलों में हैं। गद्दारी कानून के हक में खड़ी हुकूमत उसको चैलेंज करने वाली पिटीशन को खारिज करने का मुसलसल मुतालिबा कर रही है। जबकि वो अंग्रेज और मुगल दौर की अलामात मिटाने के दरपे है। हुकूमत ने अदालत को बताया है कि उसने कानून पर नजरसानी का फैसला किया है। सरकारी जराइआ के मुताबिक हुकूमत ने ये फैसला वजीर-ए-आजम नरेंद्र मोदी की हिदायात के बाद किया है।
बिहार में सबसे ज्यादा मुकद्दमे, केराला में सबसे कम
5 साल में सिर्फ 6 को सजा मिली
सुप्रीमकोर्ट ने बुध के रोज गद्दारी कानून के मुकद्दमात की तमाम कार्यवाईयों पर रोक लगा दी। इसके साथ ही सुप्रीमकोर्ट ने मर्कज और रियास्तों को हिदायत दी है कि जब तक हुकूमत कानून पर नजरसानी नहीं करती, गद्दारी के इल्जाम में कोई नई एफआईआर दर्ज ना करें। गद्दारी के कानून (देशद्रोह) पर सुप्रीमकोर्ट के सख़्त मौकिफ के दरमयान, नेशनल कंट्रोल रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आदाद-ओ-शुमार पर एक नजर डालने से पता चलता है कि गुजिश्ता बरसों के दौरान कई ऐसे वाकियात हुए हैं, जब रियासत के खिलाफ जराइम के जुमरे में मुकद्दमात दर्ज किए गए और लोगों को लंबी सजाएं दी गईं लेकिन एक हकीकत ये भी है कि उनमें से ज्यादा-तर मुकद्दमात की समाअत के दौरान नाकामी हुई। उनमें बिहार में सबसे ज्यादा केसेज दर्ज किए गए हैं और केराला में सबसे कम केसिज दर्ज किए गए हैं।