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जंग-ए-आजादी में उर्दू सहाफत का अहम किरदार रहा है : एम आसफ


उर्दू दां हिन्दी, अंग्रेजी की जगह उर्दू अखबार को तर्जीह दें : आॅल माइनारेटीज फ्रंट

नई दिल्ली : आईएनएस, इंडिया

उर्दू सहाफत के दो सौ साल मुकम्मल होने पर एक बयान जारी करते हुए आॅल इंडिया माइनारेटीज फ्रंट के बानी और सहाफत की दुनिया में मुकाम रखने वाले डाक्टर सय्यद मुहम्मद आसिफ ने कहा कि उर्दू एक शीरीं जबान है और सहाफत की दुनिया में जंग-ए-आजादी में एक अहम किरदार निभाया है जिसे कभी फरामोश नहीं किया जा सकता। 2022 में उर्दू सहाफत का 200 साल मुकम्मल हो गया। हुकूमती रिकार्ड के मुताबिक उर्दू का पहला अखबार कलकत्ता से 1822 में जाम जहांनुमा शाइआ हुआ जिसके एडीटर मुंशी सदा सुख लाल मिर्जापुर के रहने वाले थे। उर्दू जबान में निकलने वाला यह पहला अखबार काफी मकबूल हुआ था। साल 1822 से 1876 तक लगातार 55 साल तक शाइआ होता रहा। डाक्टर आसिफ ने कहा मुहक़्किक के मुताबिक सबसे पहले उर्दू 

पहला अखबार निकालने का के्रडिट मर्दे मुजाहिद टीपू सुल्तान को

सबसे पहला अखबार निकालने का क्रेडिट मर्दे मुजाहिद टीपू सुलतान को जाता है। 1794 में फौजी अखबार (सैनिक समाचार पत्र) के नाम से शाइआ किया गया था जो खासकर फौजियों के लिए था जिसमें आजादी के लिए दुश्मन फौज से लड़ने की तरगीब जंग के और हालात हाजरा की खबरें शाइआ हुआ करती थी। ये अखबार 5 साल तक शाइआ होता रहा, जब तक टीपू सुलतान को अंग्रेजों ने शहीद नहीं कर दिया। मुहक़्किक लिखते हैं कि टीपू सुलतान को शहीद करने के बाद सारे उर्दू अखबारों को अंग्रेजों ने जला दिया। करीब 28 साल वकफा के बाद 1822 जाम जहांनुमा शाइआ हुआ। उसके बाद बहुत सारे उर्दू अखबारात शाइआ होने लगे । कलकत्ता दिल्ली बंबई हैदराबाद लाहौर से कई अखबार शाइआ होने लगे और सभी ने मुल्क की आजादी में अहम किरदार निभाया। उस वक़्त मुल्क के बहुत सारे अखबार पोस्ट आॅफिस के जरीये लोगों तक पहुंचाए जाते थे और अवाम जौक शौक से खरीद कर उन्हें पढ़ते थे। आज के जैसा आसानी से उर्दू अखबार दस्तयाब नहीं होता था। सारी सहूलयात होने के पिछले 35 सालों से उर्दू अखबारात और रिसाला पढ़ने वालों की तादाद कम होती चली गई। आज भी उर्दू अखबार मुस्लमानों के मसाइल को मुस्लमानों की बातों को तफसीली तौर पर शाइआ करता है जो और किसी जबान का अखबार अपने अखबार में जगह नहीं देता है। डाक्टर आसिफ ने कहा, हमारी पार्टी उर्दू दां से गुजारिश करती है कि उर्दू जबान और उर्दू सहाफत के फरोग और बका के लिए उर्दू अखबार को तर्जीह दें। जिन लोगों ने उर्दू जबान और सहाफत को फरोग देने के लिए हमारे मसाइल उठाने के लिए अपनी जिंदगी का अहम वक़्त दिया है, हम उन्हें खिराज-ए-अकीदत पेश करते हैं।



सेमीनार, किताबों का इजरा, गुफ़्तगु और मुशायरा 

उर्दू सहाफत के दो सौ साल पूरा होने के मौके पर जगह-जगह जश्ने उर्दू सहाफत प्रोग्राम मुनाकिद हुआ। भोपाल में जहां बे-नजीर अंसार एजुकेशनल एंड सोशल वेलफेयर सोसाइटी के जेरे एहतमाम हमीद मंजिल, सदर मंजिल के पास जश्न-ए-उर्दू सहाफत का इनेका़द किया गया वहीं पटना में उर्दू मीडिया फोरम के जेर-ए-एहतिमाम 27 मार्च को बिहार उर्दू एकेडमी, अशोक राजपथ, में सेमीनार मुनाकिद किया गया। इस मौके पर किताबों का इजरा हुआ, उर्दू सहाफत के दो सदी का मुहासिबा मौजू पर गुफ़्तगु और मुशायरा का इनइकाद किया गया। मेहमान-ए-खुसूसी के तौर पर रियासत के वजीर-ए-तालीम विजय कुमार चौधरी ने शिरकत की। जबकि मेहमानान जी-वकार की हैसियत से देही तरक्कियात के वजीर श्रवण कुमार और राष्ट्रीय जनता दल के सीनीयर लीडर शिवानंद तिवारी शामिल हुए। उर्दू सहाफत के मौजू पर प्रोफेसर एजाज आला अरशद ने तकरीब को मुखातिब किया। इस मौके पर नवाब अतीक उज्जमां, जिÞया उल-हसन, साजिद परवेज, मुबय्यन अलहदी, मुहम्मद नौशाद, मुहम्मद हसनैन, जनरल सेक्रेटरी डाक्टर रिहान गनी, उर्दू मीडिया फोरम के सरपरस्त डाक्टर सय्यद शाह शमीम उद्दीन, अहमद मिनामी, सरपरस्त एसएम अशरफ फरीद, सदर मुफ़्ती अलहदी कासिमी समेत बड़ी तादाद में उर्दू दां ने शिरकत की। 


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