जमादी उल ऊला 1446 हिजरी
﷽
फरमाने रसूल ﷺ
तुम अल्लाह की तरफ रुजू करने के लिए क़ुरआन से बढ़कर कोई और ज़रिया नहीं पा सकते।
- तिर्मिज़ी
महाराष्ट्र की 38 सीटों पर मुस्लमानों की आबादी 20 फ़ीसद से ज़्यादा है, जो इस असेंबली इलेक्शन में बड़ी सियासी मैदान बन कर उभरी। बीजेपी ने इन सीटों पर अपनी गिरफ्त मज़बूत करते हुए 14 सीटों पर कामयाबी हासिल की, जो 2019 के मुक़ाबले में 3 ज़्यादा है। मजमूई तौर पर, महायुती इत्तिहाद ने इन 38 में से 22 सीटों पर क़बज़ा कर लिया। शिवसेना (शिंदे धड़े) ने 6 और अजीत पवार की क़ियादत वाली एनसीपी ने 2 सीटें जीती। इसके बरअक्स, महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सिर्फ़ 13 सीटों तक महिदूद रही। जिसमें उद्धव ठाकरे के धड़े की शिवसेना (यूबीटी) ने 6 और एनसीपी (शरद पवार) धड़े ने 2 सीटें जीती ।
कांग्रेस, जिसने 2019 में इन इलाक़ों में 11 सीटें जीती थीं, इस बार सिर्फ़ 5 सीटें ही जीत सकी। कांग्रेस ने मुंबई की मुम्बादेवी, मलाड वेस्ट, धारावी, अकोला वेस्ट और लातूर सिटी सीटों पर कामयाबी हासिल की, लेकिन दीगर सीटों पर उसकी कारकर्दगी कमज़ोर रही और पार्टी के वोट फ़ीसद में कमी आई। नवाब मलिक और ज़ीशान सिद्दीक़ी जैसे कई बड़े मुस्लिम लीडरान को हार का सामना करना पड़ा। ये इंतिख़ाब ऑल इंडिया मजलिस इत्तिहाद अलमुस्लिमीन (एआईएमआईएम) की जद्द-ओ-जहद थी। पार्टी ने 2019 में 2 सीटें जीती थीं , लेकिन इस बार वो सिर्फ़ मालेगांव सेंट्रल सीट ही जीत सकी।
एआईएमआईएम के उम्मीदवार मुफ़्ती इस्माईल ने ये सिर्फ 162 वोटों के इंतिहाई कम फ़र्क़ से जीती, जो इस बार सबसे कम फ़र्क़ था। दीगर सीटों पर एआईएमआईएम की कारकर्दगी कमज़ोर रही। बीजेपी और दीगर पार्टियों के मुक़ाबले ज़्यादा-तर जगहों पर एआईएमआईएम को शिकस्त का सामना करना पड़ा।
महाराष्ट्र असेंबली में इस बार 13 मुस्लिम एमएलए मुंतख़ब हुए जो तारीख़ी तौर पर इस्तिहकाम (ठहराव) की निशानदेही करता है। उनमें कांग्रेस के अमीन पटेल, असलम शेख़ और सज्जाद पठान, एनसीपी के हुस्न मुशर्रफ़ और सना मलिक, शिवसेना के हारून ख़ान, शिवसेना (शिंदे धड़े) के अबदुल सत्तार, एआईएमआईएम के मुफ़्ती इस्माईल और समाजवादी पार्टी के अब्बू आसिम आज़मी और रईस शेख़ शामिल हैं। एआईएमआईएम की कारकर्दगी मुसलसल गिर रही है।
मुमताज़ पार्टी लीडर इमतियाज़ जलील, जो औरंगाबाद ईस्ट से इलेक्शन लड़ रहे थे, बीजेपी उम्मीदवार से हार गए। मालेगांव सेंटर्ल सीट पर उनकी जीत का मार्जिन भी काफ़ी कम हो गया। पार्टी को अपनी हिक्मत-ए-अमली पर नज़र-ए-सानी करने की ज़रूरत है। दूसरी तरफ़ मुस्लिम अक्सरीयती इलाक़ों में गिरती हुई कारकर्दगी मुस्तक़बिल में कांग्रेस के लिए एक संगीन चैलेंज बन सकती है।
बीजेपी ने मुस्लिम अक्सरीयती नशिस्तों पर अपनी हिक्मत-ए-अमली को मज़बूती से नाफ़िज़ किया। अँधेरी वेस्ट, भीवंडी वेस्ट, नागपुर सेंट्रल, और सोलह पूर सेंट्रल जैसी अहम सीटें जीत कर ये ज़ाहिर किया कि पार्टी मुस्लिम अक्सरीयती इलाक़ों में भी क़दम जमाने की सलाहीयत रखती है।