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गया : हजरत क़मर अली सुलतान का मकबरा डिपार्टमेंट आफ आर्कियोलाजी की लिस्ट में

सफर उल मुजफ्फर - 1446 हिजरी

  हदीस-ए-नबवी ﷺ  

क्या मैं तु'म्हें जहन्नुमी लोगों के बारे में ना बताऊं, आप ﷺ ने फरमाया-हर सख्त मिजाज़, बद अखलाक और तकब्बुर करने वाला जहन्नुमी है।

- सहीह बुख़ारी



✅ गया : आईएनएस, इंडिया

रियासत बिहार के गया ज़िला हेडक्वार्टर से क़रीब 40 किलोमीटर दूर शेर घाटी सब डवीज़न के हमज़ापुर में वाके हज़रत क़मर अली सुलतान का मक़बरा है, जो अपने आप में एक तारीख़ी और मिसाली मकबरा है। मोरहर नदी के किनारे बने इस मक़बरे को ज़िला गया का ताज-महल भी कहा जाता है। बताया जाता है कि ये मक़बरा मुग़ल हुक्मराँ औरंगज़ेब ने बनवाया था। क़मर अली और सुलतान अली का मक़बरा 400 साल से ज़्यादा पुराना बताया जाता है। 
    क़मर अली और सुलतान अली मुग़्लिया हुकूमत की फ़ौज के सिपहसालार थे और वो पाए के बुज़ुर्ग भी थे। फ़ौज लेकर यहां के एक ज़ालिम हुकमरान से लड़ने आए थे लेकिन बाद में यहीं सुकूनत इख़तियार कर ली। इस तारीख़ी मक़बरे को महिकमा आसारे-ए-क़दीमा (पुरातत्व विभाग) में शामिल करने की मांग बरसों से हो रही थी, कई बार महिकमा आसारे-ए-क़दीमा की टीम ने यहां पहुंच कर जायज़ा भी लिया था। काग़ज़ात और शवाहिद की जांच पड़ताल करने के बाद आख़िरकार डायरेक्टोरेट आफ़ आरक्योलोजी डिपार्टमैंट आफ़ आर्ट कल्चर एंड यूथ डिपार्टमेंट ने अपनी फेहरिस्त में इस शामिल कर लिया है। 
    गुज़श्ता रोज़ महिकमा आसारे-ए-क़दीमा की जानिब से मकबरे के करीब एक बोर्ड भी लगाया गया है। बोर्ड पर लिखा है, इस मक़बरे को बिहार क़दीम यादगार और आसारे-ए-क़दीमा के मुक़ामात के बाक़ियात (अवशेष) एक्ट 1976 के तहत रियास्ती एहमीयत का हामिल क़रार दिया गया है। जो कोई भी इस यादगार को तबाह करता है, हटाता है, नुक़्सान पहुंचाता है, बदलता है, बिगाड़ता है, ख़तरे में डालता है या उसका इस्तिमाल करता है, तो उसे इस हरकत के लिए कार्रवाई की सज़ा का सामना करना पड़ेगा, जिसकी मुद्दत 3 साल तक हो सकती है या 5000 रुपय तक का जुर्माना हो सकता है या दोनों सज़ाएं एक साथ दी जा सकती हैं। इसके साथ ही अब इस मक़बरे की देख-भाल महिकमा आसारे-ए-क़दीमा आफ़ आर्ट एंड कल्चर की तरफ़ से किया जाएगा। इससे पहले इसकी देखरेख मुक़ामी कमेटी की जानिब से की जाती थी। 
    कहा जाता है कि इसकी तारीख़ मुग़्लिया सलतनत दौर की है और इसका स्ट्रक्चर मेसोपोटेमिया और अफ़्ग़ान फ़न तामीर का नमूना भी है। मक़बरा महिकमा आसारे-ए-क़दीमा की फेहरिस्त में शामिल है और उसे अफ़्ग़ान और मेसोपोटेमिया फ़न तामीर का बेहतरीन नमूना क़रार दिया गया है। आज इस मज़ार में बिहार, झारखंड, उतर प्रदेश और बंगाल से लोग आते हैं और अपनी अक़ीदत का इज़हार करते हैं। सच्ची अक़ीदत से यहां लोगों की मिन्नतें भी पूरी होती हैं।

आयोध्या के एमपी अवधेश प्रसाद ने क़ासिम शाह की मज़ार पर दी हाज़िरी

लखनऊ : अयोध्या के रुक्न पार्लियामेंट (संसद सदस्य) अवधेश प्रसाद ने लखनऊ में हज़रत क़ासिम शाह की मज़ार पर चादर पोशी कर दुआ मांगी। मीडीया से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि मेरी ख़ुशनसीबी है कि मुझे यहां आने का मौक़ा मिला। उन्होंने कहा कि वे अक्सर हजरत क़ासिम शाह के दरबार पर हाज़िरी देते हैं। उन्होंने कहा कि हमने मुल्क में अमन-ओ-अमान, भाई चारा के लिए दुआ मांगी है। उन ही की दुआ है कि हम सभी लोग ठीक हैं। 
    उन्होंने कहा कि जब हमारे रहनुमा आँजहानी मुलाइम सिंह यादव बा हयात थे, उनकी इस मज़ार से काफ़ी वाबस्तगी थी। वो हमेशा इस मज़ार पे आते थे। दुआएं मांगते थे और गंगा जमुनी तहज़ीब का पैग़ाम देते थे। उन्होंने कहा कि इस मज़ार पर गंगा जमुनी तहज़ीब की सबसे बड़ी मिसाल है कि यहां सभी मज़ाहिब के मानने वाले आते हैं और दुआएं मांगते हैं। उन्होंने मज़ीद कहा कि अब अवाम ने नफ़रत की सियासत को ख़ारिज कर दिया है। मुल्क मुहब्बत की सियासत से आगे बढ़ेगा। बाबा साहिब भीम राव आंबेडकर के आईन से मुल्क तरक़्क़ी करेगा। आयोध्या की अवाम ने नफ़रत की सियासत को एक सिरे से ख़ारिज किया और यही वजह है कि मुझे कामयाबी मिली। 
    इस दौरान समाजवादी पार्टी के कई रहनुमा मौजूद थे। अवधेश प्रसाद ने सबसे पहले चादर पेश की। दुआएं मांगी। उसके बाद महफ़िल समा व की शम्मा रोशन की। बादअज़ां सज्जादा नशीन ज़ुबैर अहमद ने गुलदस्ता देकर उनका इस्तिक़बाल किया।

अजमेर दरगाह अंजुमन भी वक़्फ़ तरमीमी बिल की जेपीसी कमेटी में शामिल होने की ख़ाहिशमंद

अजमेर : सुलतान उल-हिंद हज़रत ग़रीब नवाज़ ख़्वाजा मुईन उद्दीन हसन चिशती रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह अंजुमन मोईनिया फ़िक्रिया चिश्तिया सय्यद ज़ादगान की जानिब से वक़्फ़ बोर्ड एक्ट में तरमीम के हवाले से एक प्रेस कान्फ्रेंस का इनइक़ाद किया गया। दरगाह अजमेर शरीफ़ की अंजुमन ख़ुद्दाम ख़्वाजा सय्यद ज़ादगान ने वक़्फ़ बोर्ड क़ानून में तरमीम के हवाले से अपनी तजवीज़ के साथ प्रेस कान्फ्रेंस के ज़रीये जेपीसी को ख़बरदार किया। 
    अक़ल्लीयती उमूर की वज़ारत के आफ़िसरान वक़्फ़ क़ानून तरमीम मीटिंग में शामिल हैं। लोक सभा के 21 और राज्य सभा के 10 मेंबरान समेत कुल 31 मेंबरान इसमें शामिल हैं। यही वजह है कि अब अजमेर शरीफ़ दरगाह अंजुमन ने भी जेपीसी के सामने अपनी तजवीज़ पेश करने की इजाज़त मांगी है। अंजुमन सय्यद ज़ादगान का कहना है कि हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह मुल्क में सुन्नियों और सूफियाओं का एक बड़ा मर्कज़ है, इसलिए अब ये उनका हक़ है कि मुस्लिम सूफ़ी मर्कज़ की हैसियत से अंजुमन भी वक़्फ़ बोर्ड एक्ट में अपनी राय पेश करे। सय्यद सरवर चिशती सेक्रेटरी अंजुमन सय्यद ज़ादगान दरगाह अजमेर ने वाज़िह तौर पर कहा कि वक़्फ़ बोर्ड एक्ट में ऐसी कोई शर्त शामिल नहीं की जानी चाहिए जिसकी बुनियाद पर मुस्लमानों के हुक़ूक़ की ख़िलाफ़वरज़ी होती हो। चिशती ने कहा कि बीजेपी,कांग्रेस हुकूमत के दौरान वक़्फ़ बोर्ड में उनके नुमाइंदे रहे हैं।
    सेक्रेटरी अंजुमन सय्यद ज़ादगान दरगाह अजमेर सय्यद सरवर चिशती ने कहा कि हमें जेपीसी में शामिल करना एहमीयत का हामिल होगा। अजमेर दरगाह दीवान और उनके फ़र्ज़ंद, जो ख़्वाजा साहिब के सज्जादा नशीन हैं, ने कहा कि ऐसे में सूफ़ी सज्जादा नशीन काउंसिल जैसी तंज़ीम के वजूद पर कई सवालात उठते हैं। दरगाह के ख़ादिम दरअसल ख़्वाजा साहिब के ख़ादिम हैं और इस्लामी उसूलों के मुताबिक़ वक़्फ़ जैसे काम करते हैं।



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