मोहर्रम-उल-हराम - 1446 हिजरी
हदीस-ए-नबवी ﷺ
जिसने अस्तग़फ़ार को अपने ऊपर लाज़िम कर लिया अल्लाह ताअला उसकी हर परेशानी दूर फरमाएगा और हर तंगी से उसे राहत अता फरमाएगा और ऐसी जगह से रिज़्क़ अता फरमाएगा जहाँ से उसे गुमान भी ना होगा।
- इब्ने माजाह
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इक्तिसादी सर्वे में हुआ खुलासा
✅ नई दिल्ली : आईएनएस, इंडिया
हिंदू-मुस्लिम ख़ानदानों के दरमियान आमदनी का फ़र्क़ तेज़ी से कम हो रहा है। दोनों बिरादरीयों के ख़ानदानों के दरमियान ये फ़र्क़ 7 सालों में 87 फ़ीसद कम हो कर सिर्फ 250 रुपय रह गया है जो 2016 में 1,917 रुपय फ़ी महीना था।ये आदाद-ओ-शुमार ग़ैर मुनाफ़ा बख्श तंज़ीम पीपल्ज़ रिसर्च आन इंडियाज़ कनज़्यूमर इकॉनोमी के सर्वे में सामने आए हैं। मुल्क में मुस्लमानों की सालाना आमदनी में 28 फ़ीसद, हिंदूओं की 19 फ़ीसद और सिखों की सालाना आमदनी में 57 फ़ीसद इज़ाफ़ा हुआ है। इस इक़तिसादी थिंक टैंक ने ये नमूना सर्वे मुल्क के 165 जिलों के 1944, देहात के 2,01,900 ख़ानदानों के दरमियान किया। मुस्लिम ख़ानदानों की सालाना आमदनी सात सालों में 2.73 लाख रुपय से 27.7 फ़ीसद बढ़कर 3.49 लाख रुपय हुई है। इस मुद्दत के दौरान हिंदूओं की आमदनी 2.96 लाख रुपय से 18.8 फ़ीसद बढ़कर 3.52 लाख रुपय हो गई है।
सर्वे के मुताबिक़ मआशी (आर्थिक) तौर पर कमज़ोर तबक़ात की आमदनी उन लोगों के मुक़ाबले में निसबतन ज़्यादा बढ़ी है जो पहले से ज़्यादा कमा रहे थे। कोविड से पहले मुल्क की आमदनी में सबसे कम 20 फ़ीसद लोगों का हिस्सा सिर्फ 3 फ़ीसद था, जो 23.5; 2022 में बढ़कर 6.5 फ़ीसद हो गया। इसके मुक़ाबले में सबसे ऊपर 20 फ़ीसद आमदनी वाले ग्रुप का हिस्सा 52 फ़ीसद से कम होकर सिर्फ 45 फ़ीसद रह गया। जैसे-जैसे आला तबक़े की आमदनी का हिस्सा कम हुआ, ग़रीब और मुतवस्सित (मध्य वर्ग) तबक़े की आमदनी में इज़ाफ़ा हुआ। हुकूमत की मुफ़्त अनाज स्कीम, किसान सम्मान निधि और हाऊसिंग स्कीमों ने भी समाजी-ओ-इक़तिसादी फ़र्क़ को किसी हद तक कम करने में अहम किरदार अदा किया है।
अक़लीयतें बिलख़सूस मुस्लिम कम्यूनिटी मआशी तौर पर कमज़ोर तबक़े में आती है लिहाज़ा, मुस्लिम ख़ानदानों ने निचले तबक़े की तक़ाबुली तरक़्क़ी (तुलनात्मक विकास दर) से ज़्यादा फ़ायदा उठाया है। मज़हबी बुनियादों पर सर्वे किए गए तमाम हिंदू घरानों से 21 फ़ीसद में ग्रेजूएट पाए गए और सिर्फ 21 फ़ीसद घराने ऐसे पाए गए जहां कोई मुलाज़िम था। एससी;एसटी ज़मुरा से ताल्लुक़ रखने वाले ग्रेजूएट घरानों के मुक़ाबले में मुलाज़मत वाले घरानों की तादाद सबसे ज़्यादा है। एससी, एसटी ज़मुरा में बिलतर्तीब 17 फ़ीसद और 11 फ़ीसद मकानात ग्रेजूएटस के हैं। जबकि 18 फ़ीसद एससी और 15 फ़ीसद एसटी ज़मुरा के घरानों के पास नौकरियां हैं। ओबीसी कैटेगरी के 20 फ़ीसद घरानों में ग्रेजूएट थे, लेकिन काम करने वाले अफ़राद 18 फ़ीसद घरानों में पाए गए।
2016 में हिंदूओं की माहाना आमदनी 24,667 रुपय थी और मुस्लमानों के लिए 22,750 रुपय। 2023 में हिंदूओं की 29,333 रुपय और मुस्लमानों की 29.083 रुपय हुई। मुल्क में 60 लाख सिख ख़ानदानों की सालाना आमदनी में 57;4 फ़ीसद इज़ाफ़ा हुआ, जो सात सालों में सबसे ज़्यादा है। ये 4.40 लाख से बढ़कर 6;93 लाख हो गया। दीगर बिरादरीयों के लिए, जिनमें जैन पार्सी और दीगर छोटी कम्यूनिटीज़ शामिल हैं, उनकी सालाना आमदनी 53.2 फ़ीसद बढ़कर 3;.64 लाख रुपय से 5.57 लाख रुपय हो गई। रिपोर्ट के मुताबिक़ ये कम्यूनिटीज़ पहले ही सबसे ज़्यादा अमीर हैं। उन्होंने मुल्क की इक़तिसादी सरगर्मियों में तेज़ी से सबसे ज़्यादा फ़ायदा उठाया।