जिल हज्ज-1445 हिजरी
हदीस-ए-नबवी ﷺ
तुम जहां भी हो, अल्लाह से डरते रहो और बुराई सरजद हो जाने के बाद नेकी करो ताकि वो उस बुराई को मिटा दे और लोगों के साथ हुश्ने इख्लाक से पेश आओ।
- जामह तिर्मिजी
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✅ नुजहत सुहेल पाशा : रायपुर
खवातीन से ज़्यादा ईसार-ओ-क़ुर्बानी का जज्ब शायद ही किसी ज़ी रूह में हो। अल्लाह ताअला के हुक्म से एक औरत ने तन-ओ-तन्हा एक सहरा आबाद कर दिया और अल्लाह के हुक्म-ओ-रज़ा की ख़ातिर दूर दराज़ बे-आब-ओ-गयाह बंजर को रौनक बख्श दी।अल्लाह ताअला की शान के भी क्या कहने, वफ़ा की पैकर उस खातून को अपने शीरख्वार की तड़प में जितनी बार पहाड़ की बुलंदी चढ़ना पड़ा, अल्लाह ताअला ने ममता के इस फितरी अमल को रहती दुनिया तक तमाम उम्मत इस्लामिया के लिए यादगार क़रार दे दिया।
ये अमल सई सफ़ा-ओ-मर्वा के नाम से हज का लाज़िमी रुकन है। सुब्हान-अल्लाह
ये माँ की आह और ताक़तवर जद्दो-जहद का असर था जो रेगिस्तान और बंजर ज़मीन में ज़मज़म जैसा मीठा चशमा फूटा, जिससे रहती दुनिया तक इन्सान सैराब होते रहेंगे। यक़ीनन अल्लाह अपने बंदों से ग़ाफ़िल नहीं है।
मोमिनीन-ओ-मोमिनात की जितनी सख़्त आज़माईशें हैं, अज्र भी उतना ही है। उन पर तकालीफ़-ओ-आज़माईशों का दौर जितना शदीद है, अल्लाह के हुज़ूर उसका एहतिराम भी इतना ही ज़्यादा है। बस-बंदों को ख़ुलूस के साथ अल्लाह ताअला की रज़ा पे राजी रहना सीखना चाहिए।