जीकाअदा-1445 हिजरी
मस्जिद की तरफ कदम बढ़ाने का सवाब
हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रदि अल्लाहु अन्हु से रवायत है कि रसूल अल्लाह ﷺ ने फरमाया, जो शख्स जमात के लिए मस्जिद की तरफ चले तो उसक एक कदम एक गुनाह को मिटाता है और दूसरा कदम उसके लिए एक नेकी लिखता है। जाने में भी और वापस लौटने में भी।
- अहमद तबरानी
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✅ नई दिल्ली : आईएनएस, इंडिया
1954 में मशहूर बाबा पहलवान को सिर्फ एक मिनट 34 सेकंड में शिकस्त देने के साथ ही हमीदा बानो का कैरीयर बैन-उल-अक़वामी मैदानों तक पहुंचा और उनकी फ़ुतूहात पूरी दुनिया में रिपोर्ट की गई। इसके साथ ही बाबा पहलवान ने दिलबर्दाशता होकर पेशावराना कुश्ती से रिटायरमेंट ले लिया था।
हमीदा बानो की जीत की याद में और उन्हें हिन्दोस्तान की पहली ख़ातून पहलवान के तौर पर ख़िराज-ए-अक़ीदत पेश करने के लिए, गूगल ने अपने होम पेज पर एक रंगीन डोडल बनाया था। गौरतलब हो कि अलीगढ़ उतर प्रदेश के क़रीब 1900 की दहाई के शुरूआत में पहलवानों के एक ख़ानदान में पैदा होने वाली, हमीदा बानो ने अपने पूरे कैरीयर में 300 से ज़ाइद मुक़ाबले जीते, जो 1940 और 1950 की दहाईयों में हुई थी, ऐसे वक़्त में जब एथलेटिक्स में ख़वातीन की शिरकत की सख़्त हौसलाशिकनी की गई थी।
वाजेह रहे कि गूगल ने एक पोस्ट में लिखा कि बानो ने बहरहाल मर्दों के साथ मुक़ाबला किया और तमाम मर्द पहलवानों को खुला चैलेंज दिया था कि जो भी पहलवान उसे हराएगा, वह उससे शादी करेगी। बैन-उल-अक़वामी मैचों में बानो की कामयाबी ने उन्हें मज़ीद पज़ीराई बख़शी। उनमें से एक मैच रूसी ख़ातून रेसलर वीरा चस्टेलेन के ख़िलाफ़ था, जिसे उन्होंने दो मिनट से भी कम वक़्त में शिकस्त दी थी। बरसों तक अख़बारात की सुर्ख़ियाँ बनने के बाद, बानो को अलीगढ़ का एमेजोन कहा जाने लगा। उनके मुक़ाबलों, उनकी ख़ुराक और उनके ट्रेनिंग के तरीका-ए-कार का वसीअ पैमाने पर अहाता किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक़, उनका वज़न 108 किलोग्राम और क़द 5 फ़ुट 3 इंच था। बर्तानवी मीडीया आउट लेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ उनकी रोज़ाना की ख़ुराक में 5.6 लीटर दूध, 2.8 लीटर सूप, 1.8 लीटर फलों का रस, एक मुर्ग़ी, तक़रीबन 1 किलो मटन और बादाम, आधा किलो मक्खन, 6 अंडे, दो बड़ी रोटियाँ और दो प्लेट बिरयानी शामिल थीं।
राइटर्ज़ के मुताबिक़ वो नौ घंटे सोती थी और छः घंटे तक ट्रेनिंग लेती थी। अपने वक़्त की ट्रेल ब्लेजर, बानो ने ना सिर्फ साथी पहलवानों का मुक़ाबला किया बल्कि अपने वक़्त के उसूलों से भी मुक़ाबला किया।
गूगल के एक नोट में लिखा गया कि हमीदा बानो अपने वक़्त की एक ट्रेल ब्लेजर थीं और उनकी बे-ख़ौफ़ी को पूरे हिन्दोस्तान और पूरी दुनिया में याद किया जाता है। उनके खेलों के कारनामों के अलावा, वो हमेशा ख़ुद से सच्च के साथ खड़ी रहने वाली मानी जाएँगी।
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