रमजान उल मुबारक-1445 हिजरी
विसाल (11 रमज़ान)
हज़रत ख्वाजा सय्यद मिस्बाहुल हसन अलैहिर्रहमा, फफूंद शरीफ
रोजादार का हर अमल इबादत
'' नबी-ए-करीम ﷺ का इरशाद है कि रोजेदार का सोना भी इबादत है, उसकी खामोशी तस्बीह, उसके अमल का सवाब दो गुना है, उसकी दुआ कुबूल की जाती है और उसके गुनाह बख्श दिए जाते हैं। ''- कंजुल इमान
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वाकेआत और सउदी अरब में मशहूर लोक कहानियों के मुताबिक सउदी अरब में कई मुकामात ऐसे हैं, जहां जिन्न आबाद हैं। इनमें छह मुकाम काफी मशहूर हैं।1 वादी-ए-अकबर
2. कैसुमा सहरा
3. रसल खैर
4. कोहे हरफा
5. कोहे खनूका
6. कोहे दकम
वादी-ए-अकबर
वादी अबक़र में जिन अरसा-ए-दराज़ से आबाद है। ज़माना-ए-जाहिलीयत के शाइरों ने एक जिन शायर की मेज़बानी में वादी-ए-अकबर में वक्त गुजारा था और बड़े शाइरों में शुमार होने लगे। जो लोग उसे जिन्नात की सरज़मीन कहते हैं, वो ज़हीर बिन अबी सलमा की आयत की तरफ़ इशारा करते हैं।सहरा-ए-कैसुमा
कहा जाता है कि अब्बू अलनवीरा नाम का एक जिन सहरा-ए-कैसुमा से 20 किलोमीटर जुनूब (दक्षिण) में और अल सुमन इलाक़े तक सहरा में रहता है। यहां रहकर वो लाइट्स आन करता है, जो सड़क से गुज़रने वाले बहुत से लोग देख सकते हैं। ये रोशनी की एक बड़ी शहतीर के तौर पर ज़ाहिर होती हैं, जिससे ये तास्सुर मिलता है कि कोई कार उनके क़रीब आ रही है। अलबत्ता जिन ग़ायब हो कर कहीं और दिखाई देता है।रसल खैर
रसल खैर जिसे पहले रसल जोर के नाम से जाना जाता था। ख़लीज अरब के साहिल पर है। ख़्याल किया जाता है कि ये जिन्नात का आबाद किया हुआ इलाका है, जिसमें इन्सान की मौजूदगी नहीं है।कुछ लोगों ने पत्थरों को बग़ैर किसी ज़ाहिरी क़ुव्वत के हरकत करते हुए देखा और बजरी की आवाज़ सुनी। यहां तक कि एक मुलाज़िम ने दावा किया कि उनकी मौजूदगी की वजह से वो अपना दिमाग़ खो बैठा है। शहर तक रसाई की सड़क काफ़ी ख़ौफ़नाक और अफ़्सुर्दा बताई जाती है।
कोहे हरफा
मुक़ामी लोक दास्तानों के मुताबिक़, कोहे हरफा पर एक रात गुज़ारना या तो किसी को दीवाना बना सकता है या उसे शायर बनने की तरग़ीब दे सकता है।मुबय्यना (कथित) तौर पर चार नौजवानों ने चोटी तक पहुंचने की कोशिश की। इस दौरान उन्हें रास्ते में बिखरे हुए जूते और कपड़े मिले और साथ ही बच्चों के हँसने और रोने की ख़ौफ़नाक आवाज़ें सुनाई दी। कोहे हरफा नामस शहर से सिर्फ 55 किलोमीटर के फ़ासले पर वाके है।
कोहे खनूका
कोहे खनूका एक ऐसी जगह है, जिसमें मुतअद्दिद ख़ुराफ़ात और दास्तानें हैं। ये दो पहाड़ों पर मुश्तमिल है जो खनूका की वादी से अलग हैं और उनमें रेत की पट्टियाँ हैं जहां ये ख़्याल किया जाता है कि जिन्नात रहते हैं। कहानीयों के मुताबिक़ जिन्नात ने इस इलाक़े में रहने के लिए एक शहर बनाया है।कोहे दकुम
दकम पहाड़ के बारे में कहा जाता है कि इस पर जिन्नात आबाद हैं और देखने वाले अक्सर इससे निकलने वाली अजीब-ओ-ग़रीब और ख़ौफ़नाक आवाज़ों से हैरान रह जाते हैं। ये साईट एक झील का घर भी है जिसकी हिफ़ाज़त एक ख़ौफ़नाक साँप करता है। कोह दकम तक़रीबन फ़ाईफ़ा पहाड़ और जाज़ान शहर के वस्त (बीच) में है, इसलिए अक्सर जो लोग तफरीह के लिए जाज़ान जाते हैं, वो कोहे दकुम भी जाते हैं।- ब-शुक्रिया : लाईफ न साउदी अरेबिया