Top News

रमज़ान उल मुबारक में क़ुरआन-ए-करीम को तर्जुमा-ओ-तफ़सीर के साथ करें पढ़ने का एहतेमाम

रमजान उल मुबारक-1445 हिजरी

हदीस-ए-नबवी ﷺ

मुसाफिर और हामिला को रियायत

'' हजरत अनस बिन मालिक रदि अल्लाहु अन्हु से रवायत है कि रसूल अल्लाह ﷺ ने फरमाया अल्लाह सुब्हानहु ताअला ने मुसाफिर के लिए आधी नमाज माफ फरमा दी है और मुसाफिर और हामिला और दूध पिलाने वाली औरत के रोजे माफ फरमा दिए हें। ''

------------------------------------

Ramzan-ul-mubarak, quran, islam

रमज़ान रोज़ा का, तरावीह का और इबादात करने का महीना है। हदीस शरीफ़ में आता है कि रसूल-ए-करीम ने फ़रमाया, आप अपने मातहत लोगों को उनके मुआमलात में हल्का करो यानी उनके लिए आसानियां पैदा करो। यानी अपने यहां काम करने वाले मुलाज़मीन के साथ रियायत करना चाहिए। कामों की तर्तीब बना ली जानी चाहिए। काम आगे पीछे कर लिए जाएं जिससे कि वो आसानी से अपने घर जाकर रोज़ा खोले, तरावीह इतमीनान से पढ़ सके और दीगर इबादात कर सके।
    रमज़ान में मसरुफ़ियात के कम करने का एक तरीक़ा ये है कि रमज़ान में आपको जो काम करना है, मसलन ईद के लिए ख़रीदारी करनी है, रमज़ान के लिए राशन ख़रीदना है, अपने बच्चों की ख़रीदारी करनी है, जूते ,कपड़े ख़रीदना है, अगर आप ये काम रमज़ान के लिए छोड़ देंगे तो तरावीह के वक़्त आप क्या करेंगे; ज़ाहिर है ख़रीदारी करने के लिए बाज़ारों में चक्कर लगाएंगे। इसलिए ज़रूरी है कि ईद की तैयारी रमज़ान से कब्ल ही मुकम्मल कर ली जाए जिससे इस मुक़द्दस महीने में इबादात में ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त गुजारने का मौका मिले।

नई तहरीक : उर्दू अदब और इस्लामी तारीख का पहला और वाहिद न्यूज पोर्टल…  

    रमज़ान से कब्ल ही सारी तैयारी मुकम्मल कर ली जाएगी तो उसका फ़ायदा भी होता है। जो चीज़ आप चाँद-रात को ख़रीदेंगे, वो महंगी मिलेगी और अभी खरीदें तो वही चीज़ आपको किफायती दाम में मिल जाएगी। इससे आपका वक़्त ही नहीं पैसा भी बचता है। ये माली एतबार से नुक़्सान तो है ही, असल जो नुक़्सान होता है, वो इबादात का होता है कि हमारा कितना वक़्त बाज़ारों में गुजर जाता है।
    इस सबके अलावा सबसे अहम बात ये है कि इस रमज़ान हम सबको अह्द करना चाहिए कि क़ुरआन-ए-करीम मअनी के साथ समझ कर पढ़ें और पढ़ाएं और इसको अपनी अमली ज़िंदगी में लेकर आएं। कुछ लोगों की सूरा फ़ातिहा ही सही नहीं होती और ना ही आख़िरी की दस सूरतें दरुस्त होती हैं, इसलिए ये रमज़ान का महीना मिला है, इसमें अपने कुरान पाक पढ़ने को दुरुस्त करें, सूरा फ़ातिहा, आख़िरी की सूरतों को दरुस्त करें ताकि नमाज़ भी दुरुस्त हो। जब क़ुरआन सही पढ़ना आ जाए तो फिर किसी मोतबर आलिम से पूछ कर क़ुरआन का कोई उर्दू तर्जुमा भी पढ़ना चाहीए जिससे क़ुरआन को समझना और अपनी जिंदगी में लाना हमारे लिए आसान होगा। इसलिए कि हम अरब नहीं हैं, अरबी नहीं जानते यक़ीनन क़ुरआन को बग़ैर समझे पढ़ने में भी सवाब है लेकिन अगर हम किसी मोतबर उर्दू तर्जुमा को भी पढ़ें और पूछ-पूछ कर पढ़ें, ऐसा ना हो कि हम अपनी नाक़िस अक़ल से कुरानी आयात का कुछ ग़लत मतलब समझ लें, बल्कि किसी आलमे दीन की सोहबत में रहते हुए हमें पूरे क़ुरआन का तर्जुमा-ओ-तफ़सीर भी पढ़ना चाहीए।
    इसके अलावा एक अहम बात ये है कि नमाज़-ए-जनाज़ा हर आम-ओ-ख़ास को पढ़ना और पढ़ाना आना चाहिए। बचपन से ही बच्चों को नमाज़-ए-जनाज़ा सिखाई जाए ताकि हर मुस्लमान अपने वालदैन-ओ-अज़ीज़-ओ-अका़रिब की नमाज़ जनाज़ा पढ़ा सके। नीज़ निकाह पढ़ाना भी सीखना इंतिहाई ज़रूरी है, जो इस माह मुक़द्दस में बहुत आसानी से सीखा जा सकता है।
    चूँकि ये माह मुक़द्दस चल रहा है, इस महीने में छोटे बच्चे से लेकर बड़ों तक का हर एक इबादत का मिज़ाज बना होता है, इसलिए बहुत ज़रूरी है कि इस मौक़ा पर बड़े अपने बच्चों की तर्बीयत का ख़ास ख़्याल रखें, बचपन ही से अख़लाक़ीयात पर ज़ोर दें, रात को सोते वक़्त दीगर फुज़ूलीयात सुनाने के बजाय अंबिया-ओ-औलिया अल्लाह के क़िस्से उन्हें सुनाएं। इस्लाम की क्या तालीमात हैं, उन्हें बताई जाएं। पड़ोसी के हुक़ूक़ के सिलसिले में गुफ़्तगु की जाए और बचपन ही से फुज़ूलखर्ची और इसराफ़ पर तंबीया की जाए। अगर इन तमाम बातों का ख़्याल रखेंगे तो यक़ीनन हमारे बच्चे जो क़ौम-ओ-मिल्लत का मुस्तक़बिल हैं, वो सच्चे मुस्लमान बनेंगे, इसलिए रमज़ान की मुक़द्दस साआत का इस्तिमाल भी इशाअत दीन के लिए होना चाहिए। हर वक़त चलते फिरते ज़िक्र अल्लाह होना चाहिए जिससे हमारे क़ुलूब को ताज़गी मिले।

- एमडब्ल्यू अंसारी

आईपीएस (रिटायर्ड जीजी) 
बेनज़ीर अंसार एजुकेशन एंड वेल्फेयर सोसाइटी
भोपाल 
---------

For the latest updates of islam please join our

whatsapp group & Whatsapp channel



Post a Comment

if you have any suggetion, please write me

और नया पुराने