✒ रियाद : आईएनएस, इंडिया
सऊदी अरब में दुनिया का पहला कामयाब मुकम्मल रोबोटिक लीवर ट्रांसप्लांट किया गया। ये बेमिसाल कामयाबी किंग फैसल स्पेशलिस्ट हस्पताल एंड रिसर्च सेंटर में तकमील को पहुंची। साठ साला सऊदी मरीज नान अल्कोहल फैटी लीवर और हीपा टोसेलूलर में मुबतला था। रोबोटिक लीवर ट्रांसप्लांट को अंजाम देने वाली मेडीकल टीम के रहनुमा और सेंटर आफ एक्सीलेंस फार आर्गन ट्रांसप्लांटस के सीईओ प्रोफेसर डाईट ने वजाहत की कि ये अहम कामयाबी तिब्बी जिद्दत और दुनिया•ार में मरीजों को फराहम की जाने वाली सेहत की देखभाल के मयार को बढ़ाने के अजम की निशानदेही कर रही है।उन्होंने कहा कि ये आप्रेशन आजा (अंगों) की पैवंदकारी की तारीख में एक अहम संग-ए-मील की हैसियत रखता है। ये कामयाबी इस मैदान में आलमी रहनुमा के तौर पर स्पेशलिस्ट की पोजीशन को मुस्तहकम कर रही है। उन्होंने कहा कि इस पैवंदकारी को रिवायती और रोबोटिक लीवर टरांसपलांटेशन की वजह से मुनफरद (अलग) हैसियत हासिल है। याद रहे कि 2018 से जिंदा शख़्स से जिगर के जुजवी इखराज के लिए मुकम्मल तौर पर रोबोटिक सर्जरी पर इन्हिसार (निर्भरता) किया जा रहा है। ये रिवायती लीवर टरांसपलांटेशन या हाइब्रिड एप्रोच के बरअक्स है। पुराने तरीके में मरीज के जिस्म में 15 सेंटीमीटर का चीरा लगाया जाता था जिससे 50 फीसद मुआमलात में पेचीदगियां पैदा हो जाती थीं। उसके बाद मरीज को एक लंबे अरसा के लिए हस्पताल में रहना पड़ता था। वाजेह रहे कि किंग फैसल हस्पताल आजा की पैवंदकारी के लिए रोबोटिक सर्जरी के खुसूसी तर्बीयती मर्कज के तौर पर काम करता है। ये हस्पताल दूसरे तिब्बी (मेडिकल) इदारों के साथ मालूमात का तबादला करता और कम से कम नुक़्सानदेह आजा की पैवंदकारी के तरीका-ए-कार के बारे में आलमी समझबूझ को बढ़ाने में भरपूर मदद फराहम करता है।