✒ मोहम्मद हासम अली : अजमेर बाद नमाजे असर दरगाह के मेन गेट निज़ाम गेट से खुद्दाम साहेबान अपने सिरों पर चादर लेकर रवाना हुए जिसमें जायरीन ने भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। चादर पूरी शान—ओ-शौकत के साथ बुलंद दरवाज़ा, सहनचिराग, औलिया मस्जिद, शरकी गेट होते हुए पाईंती दरवाज़े पर पहुँची जहां साहिबज़ादी सैयदा बीबी हाफ़िज़ा जमाल रहमतुल्लाह अलैह की मजार शरीफ पर मखमली चादर व फूल पेश कर मुल्क व रियासत की तरक्की, भाईचारगी, अमन-ओ-अमान व खुशहाली के लिए खुसूसी दुआ की गई।
रात में आस्ताना शरीफ़ मामूल होने के बाद गद्दीनशीन सैयद फख़र काज़मी चिश्ती की सदारत में महफ़िल-ए-समा मुनाकिद हुई। दरगाह के क़व्वाल पहली और दूसरी चौकी ने फ़ारसी, उर्दू व ब्रज जबान में कलाम पेशकर अपनी अकीदत का इज़हार किया। आखिर में फ़ातेहा ख़्वानी व नियाज़ हुई जिसके बाद निज़ाम गेट पर से मौरूसी अमले ने शादियाने बजाए।
पीर की पहाड़ से गूंजेगी तोप की आवाज
उर्सपाक के मौके पर 31 जनवरी की सुबह 11 बजे महफ़िल ए समाँ का आग़ाज़ होगा, जिसमें फ़ारसी, उर्दू व ब्रज जबान में कलाम पेश कर कव्वाल व नात ख्वाह आज रंग है री माँ, बीबी हाफ़िज़ा जमाल रहमतुल्लाह अलैह के घर रंग है रीङ्घ, कलाम के साथ अपनी अकीदत का इजहार करेंगे। दोपहर 1 बजे कुल की रस्म अदा होगी जिसमें दस्तरख़्वान पढ़ा जाएगा, फ़ातेहा ख़्वानी व नियाज़ होगा। जिसके बाद बढ़े पीर के पहाढ़ से ग़दरशाह तोप चलाएंगे। दरगाह के मौरूसी अमले के शादियाने बजाने के साथ ही उर्सपाक इख्तेताम पजीर होगा।सैयद राग़िब चिश्ती (एडवोकेट) ने बताया कि बीबी हाफ़िज़ा रहमतुल्लाह अलैह, हिंदल वली ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह की चहेती साहबजादी थी। आपकी पैदाईश पर हजरत बाबा गरीब नवाज रहमतुल्लाह अलैह ने अपना लुआब उन्हें चखाया था। इसकी बरकत से बीबी हाफ़िज़ा रहमतुल्लाह अलैह पैदाईशी हाफिजा थीं। बचपन में ही बीबी हाफिजा ने क़ुरान पढ़ कर सुना दिया। यही वजह है कि आपको पैदाइशी हाफ़िज़ा कहा जाता है। आपका निकाह शेख़ रज़्ज़ी से हुआ। बीबी हाफिजा की दुआओं से बे-औलादों को औलाद मिलती है। उन्होंने तारागढ़ की तलहटी के नीचे बहने वाले झरने के करीब एक गुफा में चालीस दिन बैठकर चिल्ला किया था जिसे नूर चश्मा व हैपी वैली कहा जाता है। उन्होंने खवातीन के बीच दीन की ख़िदमत अंजाम दीं, वे घर-घर जाकर खवातीन को दीनी तालीम दिया करती थीं।
हुज़ूर ग़रीब नवाज़ रहमतुल्ला अलैह अपने पीर-ओ-मुर्शिद के उर्स के बाद अपनी बेटी को उर्साने के तौर पर तोहफ़े दिया करते थे, उसी रिवायत को निभाते हुए तमाम खुद्दाम ख़्वाजा साहेबान व चिश्तिया सिलसिले से जुढ़े तरीक़त वाले अपनी बहन-बेटियों का हिस्सा उर्साने के तौर पर निकालते हैं। बीबी हाफ़िज़ा जमाल रहमतुल्लाह अलैह के नाम की नियाज़ खुसूसी हलवा व लुच्ची (खास तरह की पीले रंग की बड़े साईज की पूरीयां) पर होती है। लोग दूध एवं दलिया पर भी नियाज़ दिलवाते है।