✒ दुबई : आईएनएस, इंडिया फलस्तीन की सरजमीन पर बर्तानवी मेंडियट के खात्मे और 14 मई 1948 को इसराईल की रियासत के कियाम के ऐलान के बाद मशरिक वुसता (मध्य-पूर्व) के खित्ते को पहली अरब-इसराईल जंग के असरात का सामना करना पड़ा। फलस्तीन की सरजमीन हाशमी अरदन, मिस्र, इराक, सऊदी अरब, शाम और लेबनान मुल्क एक तरफ और सहयोनी, मलेशिया के हिमायतयाफता यहूदी रजाकार जंगजू दूसरी तरफ थे। ये जंग 9 माह से जाइद अर्से तक जारी रही और इसके नतीजे में दोनों तरफ से हजारों लोगों को अपनी जानों से हाथ धोना पड़ा था। उसके बाद ईसराईलीयों और अरब ममालिक के साथ यके बाद दीगरे जंगबंदी मुआहिदे तय पाए गए थे, जिनके नतीजे में लड़ाईयां और खूनखराबा रोकने का मौका मिला।
ये जंग1949 के जंगबंदी के मुआहिदों के बाद खत्म हुई, जिस पर अरब ममालिक ने इसराईल के साथ लड़ाई के खात्मे और जंगबंदी के खुतूत का ताय्युन करने के लिए दस्तखत किए थे। उसके साथ ही नौ कायमशुदा अकवाम-ए-मुत्तहिदा ने जंगबंदी की निगरानी के लिए मुबस्सिरीन •ोजने में ताम्मुल से काम नहीं लिया। अकवाम-ए-मुत्तहिदा के मुबस्सिरीन जंगजदा इलाकों में आए और वहां होने वाली खिलाफ वरजियों की रिपोर्टस •ाी मुरत्तिब कीं। उसके अलावा बर्तानिया, फ्रÞांस और अमरीका ने 1950 में पर दस्तखत किए, जिसके जरीये इन ममालिक ने जंगबंदी के खुतूत की निगरानी करने और अकवाम-ए-मुत्तहिदा की राहदारियों के अंदर तरीका-ए-कार के जरीये उनके नफाज को यकीनी बनाने का अह्द किया ताकि उनकी खिलाफवरजी को रोका जा सके।
इस मुआहिदे में हथियारों की दौड़ को रोकने और तनाजा फैलने से रोकने के लिए •ाी इकदामात शामिल थे। 12 जनवरी 1949 को यूनानी जजीरे रोड्स पर मिस्र-इसराईल जंगबंदी पर मुजाकरात शुरू हुए। इस दौरान मिस्रियों ने अकवाम-ए-मुत्तहिदा की करारदादों पर अमल दरआमद करने पर इसरार किया जिसमें 14 अक्तूबर 1948 से पहले वाली पोजीशन पर अरब अफ़्वाज की वापसी का मुतालिबा •ाी शामिल था। इसके साथ ही अलमजदल, अल-खलील रोड के शुमाल से इसराईली वापस चले गए और ये इलाका अरब फौज को वापिस कर दिया गया। 24 फरवरी 1949 को ईसराईलीयों और मिस्रियों ने जंगबंदी के मुआहिदे पर दस्तखत किए। उसके मुताबिक मिस्र ने जंगबंदी लाईन को इसराईल के लिए सयासी सरहद के तौर पर मुकर्रर करने से इनकार कर दिया। इसके अलावा मिस्र ने जंगबंदी को मसला फलस्तीन के हल के तौर पर पेश करने से •ाी इनकार कर दिया।
दूसरी तरफ मिस्र और फलस्तीन को अलग करने वाली सरहदों को बर्तानवी मैंडियट के दौरान जंगबंदी लाईन के तौर पर तस्लीम किया गया। इस मुआहिदे के तहत मिस्र ने गजा के इलाके पर मुकम्मल कंट्रोल हासिल कर लिया था। जंगबंदी के मुआहिदे के मुताबिक महसूर मिस्री अफ़्वाज को मिस्री इलाके में वापिस जाने की इजाजत दी गई। अरदन के साथ ईसराईलीयों ने 3 अप्रैल 1949 के मुआहिदे के मुताबिक मसला फलस्तीन को पुरअमन तरीके से हल करने के तरीके तलाश करने पर इत्तिफाक किया। इसी दौरान अर्दनी अफ़्वाज ने फलस्तीनी इलाकों के अंदर अपनी पोजीश्नें बरकरार रखीं। उस वक़्त मुआहिदे के तहत अर्दनी अफ़्वाज मशरिकी यरूशलम में तायनात थीं।
शार्विन मैदान के करीब तयनात इसराईली फौजीयों की वापसी के साथ अर्दनी अफ़्वाज को इन इलाकों में पेशकदमी करने का मौका मिला। अरदन ने वादी आरा और मुसल्लस के इलाकों को ईसराईलीयों के हवाले करने पर इत्तिफाक किया। इसके अलावा इसराईल ने मार्च 1949 के महीने के दौरान लेबनानियों के साथ एक और जंगबंदी पर दस्तखत किए। उसके मुताबिक ईसराईलीयों ने जुनूबी लेबनान में जिन देहातों पर कब्जा किया था, उनसे दस्तबरदार हो गए और लेबनान और फलस्तीन के दरमियान साबिका सरहदों को जंगबंदी की लकीर के तौर पर अपनाने पर रजामंद हो गए।
20 जुलाई 1949 को शाम और इसराईल ने एक जंगबंदी के मुआहिदे पर दस्तखत किए जिसके जरीये शामी बैन-उल-अकवामी सरहद के मगरिबी जानिब से अपनी अफ़्वाज को निकालने पर रजामंद हुए। इसके अलावा दोनों फरीकों ने शाम और साबिका फलस्तीनी इलाकों की सरहदों पर एक गैर फौजी जोन बनाने पर इत्तिफाक किया।