27 जिल हज्ज, 1444 हिजरी
इतवार, 16 जुलाई, 2023
अकवाले जरीं‘जो कोई नजूमी (ज्योतिष) के पास जाए और उससे कुछ मुस्तकबिल के बारे में सवाल करे तो उसकी चालीस रातों की इबादत कबूल नहीं होती।’
- मुस्लिम
इस्लाम दुनिया का अकेला ऐसा मजहब है, जिसमें इंसान की हर जरूरत का बेहतर अंदाज में खयाल रखा गया है। चाहे वह मआशराती परेशानी हो या परिवारिक, जाति हो या वकाफी, हर चीज की नीति और खुशहालियों का बंदोबस्त मौजूद है। इंसानी जिस्म ही को लें, दुनिया का हर शख्स बीमारियों का शिकार होता है, मगर इस्लाम की खूबसूरती यह है कि इबादत ही में बड़ी-बड़ी बीमारियों का बल्कि लाइलाज बीमारियों का भी इलाज मौजूद है। नमाज इस्लाम का दूसरा रुकन और सबसे अहम इबादत है। यह सिर्फ अल्लाह की बंदगी ही नहीं, बल्कि इंसानी जिस्म के लिए दुनिया का सबसे बेहतरीन एक्सरसाईज है। आज साइंस के हल्के में जितनी तरक्की हो रही है, इंसानी जिस्म के लिए नमाज के उतने ही फायदे दुनिया के सामने आते जा रहे हैं। बल्कि डॉक्टर्स, साइंटिस्ट्स और हर हल्के के दानिश्वर इस्लाम के बेहतरीन निजाम को पढ़कर दाखिले इस्लाम हो रहे हैं। जहां-जहां ताअलीम को फरोग हासिल है, इस्लाम अपनाने वालों की तादाद वहां उतनी ही बढ़ रही है। और इसकी वजह इस्लाम का पाकीजा निजाम है।
नमाज के लिए 6 शर्ते हैं, उनमें सबसे पहली शर्त तहारत यानी पाकी हासिल करना है। कपड़ों, जिस्म और जगह का हर तरह की गंदगी से साफ सुथरा होना नमाज के लिए जरूरी है। जिस्म की तहारत के लिए अलग-अलग सूरतों में गुस्ल या वुजू की जरूरत होती है। सबसे पहले हम वुजू के बारे में बात करते हैं। वुजू में पहले गट्टों तक तीन बार हाथ धोना, फिर तीन बार कुल्ली करना, तीन बार नाक में पानी डालना, तीन बार पूरा चेहरा धुलना, फिर तीन बार दोनों हाथ कोहनियों समीत धोना फिर सर, हाथ और गर्दन के पिछले हिस्से पर भीगा हुआ हाथ फेरना और फिर दोनों पैरों का टखनों समेत धोना शामिल है। वुजू हर नमाज से पहले करना जरूरी है। और इस तरह यह अमल दिन में 5 बार दोहराया जाता है।
(जारी...)