12 जिल हज्ज, 1444 हिजरी
सनीचर, 1 जुलाई, 2023
अकवाले जरीं‘कुर्बानी के दिन अल्लाह ताअला के नजदीक कुर्बानी करने से ज्यादा कोई अमल प्यारा नहीं।’
- तिरमिजी शरीफ
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रियाद : आईएनएस, इंडिया हज के रुक्ने आजम वकूफ अरफात की अदायगी के लिए 25 लाख के करीब फर्द मैदान अरफात में जमा हुए जहां वो मस्जिद नमरा में इबादत के साथ-साथ अरफात के मैदान में खुतबा हज सुना। लाखों आजमीन-ए-हज्ज ने पीर को पैदल या बसों में सवार होकर मक्का मुकर्रमा के करीब मीना में बड़ी खेमा बस्ती के शहर में सालाना हज की अदाई के लिए जमा हुए। सऊदी हुक्काम का कहना है कि ये हज हाजिरी के रिकार्ड तोड़ने वाला है। खाना काअबा के तवाफ की अदाई के बाद नमाजी शदीद और दम घुटने वाली गर्मी में तकरीबन सात किलोमीटर दूर मीना की जानिब रवाना हुए। एहराम पहने हुज्जाज में से अक्सर छतरी लिए हुए थे, जिन्होंने पैदल या सऊदी हुक्काम की जानिब से फराहम करदा सैकड़ों एयर कंडीशंड बसों के काफिले में सफर किया। उन्होंने मंगल यानी 8 जुलहिज को पूरा दिन मीना में सफेद खेमों में गुजारा जो हर साल दुनिया के सबसे बड़ी खेमा बस्ती की मेजबानी करता है, वहां रात नमाज की अदायगी के बाद हुज्जाज ने मैदान अरफात की राह ली और जबले रहमत पर कयाम किया जहां से नबी अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने अपना आखिरी खुतबा दिया था।
ये कोरोना वाइरस की वबा के बाद, तीन साल में पहला मौका है कि हज में लोग बिला रोक-टोक भरपूर शिरकत कर रहे हैं। इस साल 25 लाख से जाइद अफराद ने इस्लाम के इस पांचवें रुकन की अदाई के लिए हिजाज मुकद्दस का सफर किया है। इतवार को मीना जाने वालों ने रवानगी से कब्ल हज के अहम तरीन अरकान में से एक तवाफ अलकदूम अंजाम दिया, अलबत्ता पहले से मक्का मुकर्रमा आने वालों को ये तवाफ अदा नहीं करना पड़ता। इतवार की रात मक्का मुकर्रमा से मीना तक पाँच किलोमीटर का रास्ता जाइरीन से खचाखच भरा हुआ था, जो पैदल या बसों पर सफर कर रहे थे। पीर को हुज्जाज किराम सुन्नत पर अमल करते हुए पूरा दिन और रात मीना में गुजारी जिसे यौम तरवीह कहा जाता है। मंगल को मैदान अरफात में हज के रुकन आजम की अदाई के बाद सूरज गुरूब होते ही जाइरीन अरफात और मीना के दरमयान वाके मुजदल्फा का रुख किया और रात खुले आसमान तले गुजारी। इसके बाद मुजदल्फा से कंकरीयां जमा करने के बाद वो जुमरात में शैतान को कंकरीयां मारने निकल पड़े और हज के आखिरी रुकन की अदाई के लिए वापिस खाना काअबा पहुंचकर तवाफ किया।
मैदान अरफात का रकबा 33 मुरब्बा किलोमीटर है। ये मक्का से मशरिक की जानिब ताइफ की राह पर 21 किलोमीटर दूर एक बड़ा वसीअ-ओ-अरीज मैदान है, जहां दुनिया के गोशे-गोशे से आने वाले आजमीन-ए-हज्ज 9 जी अलहजा को जमा होते हैं। ये मैदान शुमाल से जुनूब तक 12 किलो मीटर और मशरिक से मगरिब तक पाँच किलोमीटर तक फैला हुआ है। शुमाली जानिब से अरफात नामी पहाड़ी सिलसिले में घिरा हुआ है। मैदान अरफात मक्का मुकर्रमा से 22 किलोमीटर दूर है जबकि वादी मीना से इसका फासिला 10 और मुजदल्फा से 6 किलोमीटर है। मैदान अरफात हरम मक्की से बाहर है और मुकामात-ए-हज में वो वाहिद जगह है, जो हदूद हरम से खारिज है।
मैदान अरफात चंद बरसों कबल तक चटियल मैदान होता था। कहीं-कहीं घास नजर आ जाती थी लेकिन अब सूरत-ए-हाल मुख़्तलिफ है, यहां शजरकारी की गई है। मैदान अरफात के बीचोबीच जबल-ए-रहमत है। ये मैदान अर्फात के शुमाल मशरिक में सुर्ख़-रंग की एक मखरूती पहाड़ी है, जिसकी ऊंचाई 200 फुट से कुछ कम है और अरफात के असल पहाड़ी सिलसिले से जरा अलग है। इस पहाड़ी को भी अरफा कहते हैं लेकिन इसका ज्यादा मारूफ नाम जबल-ए-रहिमा है। जब्बल-ए-रहिमा के मशरिकी जानिब पत्थर की चौड़ी सीढ़ीयां चोटी तक गई हैं। जब्बल-ए-रहिमा के ऊपर एक मीनार बना हुआ है। 60 वीं सीढ़ी पर एक चबूतरा है। इस पर एक मिंबर रखा है। माजी में यौम अरफा पर खतीब इसी मिंबर पर खड़े हो कर खुतबा दिया करते थे।