12 जिल हज्ज, 1444 हिजरी
सनीचर, 1 जुलाई, 2023
अकवाले जरीं‘कुर्बानी के दिन अल्लाह ताअला के नजदीक कुर्बानी करने से ज्यादा कोई अमल प्यारा नहीं।’
- तिरमिजी शरीफ
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तमाम सेक्यूलर सियासी पार्टियां खासकर कांग्रेस, समाजवादी और बीएसपी की जबानों पर ताले क्यों
एमडब्ल्यू अंसारी : भोपालइस वक़्त मुल्क के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। बीजेपी पार्टी के बरसर-ए-इकतिदार आने के बाद ये हालात कुछ ज्यादा ही खराब हो गए हैं, या ये कि जानबूझ कर खराब किए जा रहे हैं। मुल्क में जगह-जगह तशद्दुद हो रहे हैं। कहीं कोई नौजवान पुलिस का शिकार हो रहा है तो कहीं भीड़ किसी मासूम इन्सान को कतल रही है। हाल ही में उत्तरकाशी में होने वाले वाकियात निहायत ही अफसोसनाक है। एक सोच है, जो इन वारदात को अंजाम दे रही। पुलिस की मौजूदगी में हिंदुत्ववादी तंजीम के लोगों का मुसलमानों के घरों पर हमले करने से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वाकियात में हुकूमत का मुकम्मल तआवुन हासिल है। मुसलमानों के कारोबार को बर्बाद करने और अपने नफरत के इजहार में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। मुहल्ले के बाजारों में मुस्लिम दुकानों को निशाना बनाकर उन्हें धमकाया गया, पोस्टर लगाए गए और एक बड़ी भीड़ उनकी दुकानों पर हमला करती रही और पुलिस तमाशबीन बनी रही।
पहले आसाम में पोस्को एक्ट और दीगर वजूहात से फिर यूपी में जगह-जगह तशद्दुद हुए, अल गर्ज यूपी तो तशद्दुद का गढ़ बन कर रह गया है। खवातीन की इस्मतदरी, मआब लंचिंग, यहां तक कि कोर्ट में कत्ल जैसी वारदात भी हुई। और पुलिस एडमिनिस्ट्रेशन और तमाम सियासी पार्टियां तमाशबीन बनी रही।
यही हाल मणीुर का था जहां अमन कायम करने में सालों गुजर जाएंगे। हालत यह है कि शायद ही कोई ऐसा सूबा हो, जहां एससी, एसटी, दलित और खास करके अकलीयत के लोगों को निशाना न बनाया गया हो। मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र के बेशतर इलाकों में मुस्लिम तबका के अफराद को मारा पीटा और जेल में डाला जा रहा है। सितम बाला-ए-सितम ये कि उत्तराखंड में एलानीया तौर से 4 घर के मुस्लमानों को घर से निकालने का हुक्म-जारी कर दिया गया जिसमें जराइआ के मुताबिक 53 लोगों को घर छोड़कर जाना पड़ा। उत्तराखंड के मुस्लमानों को जानी और माली दोनों तरह का बहुत नुक़्सान हुआ है। इस आमिराना रवैय्ये से मध्य प्रदेश हुकूमत भी मुस्तसना नहीं है।
मुल्क की तहजीब हमेशा से गंगा जमुनी रही है लेकिन हुकूमत ने गंगा-जमुना तहजीब की अलामत हिजाब के बहाने से दमोह के गंगा-जमुना स्कूल पर बुलडोजर चलवा दिया। ये महज एक मखसूस तबका के लिए सोची समझी साजिÞश के तहत किया जा रहा है। इन तमाम वाकियात इतने जुलम-ओ-तशद्दुद होने के बावजूद भी दीगर सियासी पार्टियां कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी वगैरह ने इसके खिलाफ खामोशी इखतियार की हुई है। आखिर कब ये सियासी पार्टियां खुलकर इस जुल्म के खिलाफ आवाज बुलंद करेंगी। क्या इसे इन पार्टियों का दोगलापन ना जाए, आखिर कब ये सियासी पार्टियां हिक्मत-ए-अमली बनाएँगी। क्या इन पार्टियां को मुत्तहिद हो कर जबरीया तशद्दुद के खिलाफ मोर्चा नहीं खोलना चाहीए।
सितम ये कि मुस्लिम लीडरान जो बीजेपी की सेवा (खिदमत) में लगे हुए हैं, या यूं कहें कि बीजेपी में रहते हुए खुद की सेवा कर रहे हैं, जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने की जहमत गवारा नहीं कर रहे हैं। कम अज कम उन्हें तो अपनी ताकत का, अपने इकतिदार का, अपने पावर का इस्तिमाल करके जुलम और जालिम के खिलाफ मोर्चा खोलना चाहीए था। लेकिन अफसोस कि ये सब भी मुँह पर ताला लगाए हुए हैं।
तू इधर-उधर की ना बात कर, ये बता कि काफिला क्यों लुटा
मुझे रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है।
गुजिशता कुछ दिनों के दौरान मुल्क की तीन रियास्तों में मुस्लिम तबका के खिलाफ एक ऐसी खतरनाक साजिÞश काम कर रही है, जिसके नतीजे में मुस्लिम तबका को बड़ी सतह पर जानी और माली नुक़्सान उठाना पड़ रहा है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी, पुरूलिया और बुड़िकोट के इलाकों में मुस्लमान अपना घर, अपना मकान, दुकान सब छोड़कर कहीं और जाने को मजबूर हो गए। ये सब कुछ सिर्फ इसलिए हो रहा है क्योंकि चंद नफरत पसंद लोग भारत के हिंदू-मुस्लिम इत्तिहाद को पसंद नहीं करते और उत्तराखंड को मुस्लमानों से खाली कराना चाहते हैं। इस सबके बावजूद सवाल है, कि आखिर मुस्लमान कब जागेगा, कब अपने हक के लिए लड़ना सीखेगा। मुल्कभर में मजहब से नफरत की बुनियाद पर अवाम को निशाना बनाया जा रहा है। हालाँकि भारत का आईन लोगों के जान और माल के तहफ़्फुज की बात करता है, अवाम को मजहबी आजादी और कहीं भी किसी भी हिस्से में कयाम की आजादी देता है।
अब भी वक़्त है, मुस्लमानों को अपना सियासी और समाजी शऊर बेदार करना होगा और फैसला करना होगा कि हम किस पार्टी के साथ हैं। खुद को सेक्यूलर कहने वाली पार्टियों को जुल्म के खिलाफ आवाज उठानी होगी। पसमांदा तबके के आम गरीब मुस्लमानों के लिए हक की लड़ाई लड़नी होगी, तभी वो पार्टी लोगों का एतिमाद हासिल करने में कामयाब हो सकेगी, जिसका नतीजा आइन्दा इंतिखाबात में जाहिर होगा वर्ना सेक्यूलर पार्टियों को इलेक्शन में चौंकाने वाले नतीजों का सामना करना होगा।
- आईपीएस, रिटा. डीजीपी
बेनजीर अंसार एजूकेशनल एंड सोशल वेलफेयर सोसायटी, भोपाल
(मुसन्निफ के ख्यालात से नई तहरीक का मुत्तफिक होना जरूरी नहीं)