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कोरोना के बाद फिर जिंदा हो गई यौम-ए-अरफा पर मक्का की खवातीन की काअबा शरीफ में हाजिरी की रिवायत

12 जिल हज्ज, 1444 हिजरी
सनीचर, 1 जुलाई, 2023
अकवाले जरीं
‘कुर्बानी के दिन अल्लाह ताअला के नजदीक कुर्बानी करने से ज्यादा कोई अमल प्यारा नहीं।’ 
- तिरमिजी शरीफ 
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रियाद : आईएनएस, इंडिया
हज के साथ मक्का मुकर्रमा की मुस्लमान खवातीन की एक रिवायत सदियों से चली आ रही है, जिसे ‘अल खलीफ’ कहा जाता है। इसके तहत मक्का मुअज्जमा बिल खसूस मस्जिद अल हरम की कुर्ब-ओ-जवार की कालोनीयों में बसने वाली खवातीन अरफा के रोज, यानी नौ जील हज्ज को खाना-ए-काअबा शरीफ में हाजिरी देती हैं, तवाफ करती, हज्र-ए-असवद को बोसा देती और मुल्तजिम के मुकाम पर दुआएं करती हैं। इसे ‘यौम-ए-खलीफ’ भी कहा जाता है। 
कोरोना के बाद फिर जिंदा हो गई यौम-ए-अरफा पर मक्का की खवातीन की काअबा शरीफ में हाजिरी की रिवायत
    गौरतलब है कि कोरोना की आलमी वबा की वजह से जहां हज और उमरा को महदूद कर दिया गया था, वहीं ‘अल खलीफ’ की रिवायत भी ताजा नहीं हो सकी थी। ताहम (हालांकि) कोरोना के बाद इस बार पहली बार बीस लाख से जाइद मुस्लमानों ने फरीजा हज अदा किया है, वहीं ‘अलखलीफ’ की रिवायत भी जिंदा की गई। चूँकि ‘यौम अरफा’ को हुज्जाज कराम मैदान अरफात, मीना और मुजदल्फा की तरफ सफर पर होते हैं, इसलिए खाना काअबा खाली होता है और मक्का की खवातीन को तवाफ करने, हज्र-ए-असवद को चूमने और मुल्तजिम में नवाफिल और दुआ का मौका मिल जाता है। मगर साल के बाकी दिनों में ऐसा नहीं होता। 
    यही वजह है कि सियाह-रंग के अबाओं और लिबास में मलबूस मक्का की खवातीन जौक दर जौक यौम अरफा के मौके पर खाना काअबा में आती हैं और खुशू और खुजू के साथ इबादत करती हैं। गुजिशता रोज भी मक्का मुअज्जमा की खवातीन की बड़ी तादाद को खाना काअबा का तवाफ करते देखा गया। यौम अरफा को ज्यादा-तर खवातीन रोजे से होती हैं, और वो अपने साथ इफतारी का सामान भी लाती हैं। इसके अलावा हरम मक्की में भी उनके रोजा इफतार का एहतिमाम किया जाता है। गुजिशता रोज भी अलखलीफ की रिवायत के तहत खवातीन की बड़ी तादाद को मस्जिद हराम में खाना काअबा के करीब रोजा इफतार करते देखा गया।


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