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ईद की पहली नमाज हुई थी सेक्टर-1 में, डायरी में दर्ज है 64 साल का लेखाजोखा

12 जिल हज्ज, 1444 हिजरी
सनीचर, 1 जुलाई, 2023
अकवाले जरीं
‘कुर्बानी के दिन अल्लाह ताअला के नजदीक कुर्बानी करने से ज्यादा कोई अमल प्यारा नहीं।’ 
- तिरमिजी शरीफ 
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बीएसपी के रिटायर्ड मुलाजमीन अंसारी की डायरी में ईद की तमाम नमाजों की दर्ज है अनूठी जानकारी

मुहम्मद जाकिर हुसैन : भिलाई।
गुजिश्ता 64 साल से अब तक ईदुल फित्र और ईद-ए-अदहा की नमाज का पूरा लेखा-जोखा हुडको निवासी एमआर अंसारी के पास मौजूद है। दिलचस्प यह कि शुरूआती दौर में दोनों ईद की नमाजें सेक्टर-1 में होती थी, वहीं रोजाना की पांचों वक्त की नमाज बोरिया (आज के प्लांट के अंदर का हिस्सा) बस्ती की आरजी (अस्थाई) मस्जिद में पढ़ी जाती थी। बाद के दौर में सेक्टर-6 में आलीशान मस्जिद वजूद में आई और फिर कुछ साल बाद ईदगाह मैदान तैयार हुआ, तब से यहां नमाजें हो रही हैं। 
ईद की पहली नमाज हुई थी सेक्टर-1 में, डायरी में दर्ज है 64 साल का लेखाजोखा
    भिलाई स्टील प्लांट के वित्त विभाग से 1995 में रिटायर और भिलाई नगर मस्जिद ट्रस्ट के सदर रहे एमआर अंसारी बताते हैं कि उन्हें डायरी लिखने की शुरू से ही आदत रही है, इसलिए वे रोजमर्रा की बातें नोट कर लिया करते हैं। यह सिलसिला आज भी जारी है। अंसारी बताते हैं, नवंबर 1959 में वे भिलाई स्टील प्लांट से जुड़े हुए, तब बोरिया बस्ती में बड़े भाई के साथ उनका रहना होता था। बोरिया बस्ती बाद के दौर में बीएसपी के 40 लाख टन विस्तारीकरण में हटा दी गई और यहां प्लेट मिल और बोरिया स्टोर्स समेत दीगर तामीरी काम हुए। जिसके बाद यहां रहने वालों को अलग-अलग सेक्टर में शिफ्ट किया गया।  
ईद की पहली नमाज हुई थी सेक्टर-1 में, डायरी में दर्ज है 64 साल का लेखाजोखा
    अंसारी अपनी डायरी दिखाते हुए बताते हैं, वे 1959 में यहां आए, इसलिए 1960 से उन्होंने ईदुल फित्र और ईद-ए-अदहा का रिकार्ड रखना शुरू किया। रिकार्ड में वे दिन, तारीख, जगह और नमाज पढ़ाने वाले ईमामों के नाम दर्ज कर लेते हैं। पुरानी डायरी के पन्ने जर्जर हो गए हैं, इसलिए अब उसे नए सिरे से दूसरी डायरी में उन्होंने नकल कर लिया है। 
    उन्होंने बताया कि जब उन्होंने भिलाई में बीएसपी की मुलाजमत शुरू की, तब 29 फरवरी 1960 को पहला रोजा था, जिसके बाद ईदुल फित्र की नमाज 29 मार्च 1960 को सेक्टर-1 के मैदान में हुई। इसके बाद 6 जून 1960 को ईद-ए-अदहा की नमाज भी यहां हुई। 
    अंसारी बताते हैं, सेक्टर-1 क्लब और नेहरू हाउस के बीच आज जहां क्रिकेट मैदान है, वहां 1956 से दोनों ईद की नमाज शुरू हो गई थी। तब बीएसपी के टेलीफोन विभाग में मशरूफ और सेक्टर-1 में ही रहने वाले कारी अब्दुल खालिक हाशमी यहां साल ईद की नमाज पढ़ाया करते थे। 
    उन्होंने बताया कि शुरूआती दौर में बोरिया बस्ती में सभी मजहब के लोगों ने आरजी तौर अपनी-अपनी इबादतगाह बनवाए। मुस्लिम मआशरे के लोगों ने भी बोरिया बस्ती में एक आरजी मस्जिद बनाई थी, जहां पांचों वक्त और जुमे की नमाज होती थी। आज जहां बीएसपी का बोरिया स्टोर्स है, वहीं यह मस्जिद थी। 
    अंसारी ने बताया कि बाद में सेक्टर-6 में बीएसपी की ओर से मस्जिद के लिए जमीन मिली जिसके बाद 1962 से सेक्टर-6 मस्जिद की जगह दोनों ईद की नमाज होने लगी। यहां कारी हाशमी के अलावा बीएसपी के ही मुलाजिम हाफिज खलील व दीगर लोग साल-दर-साल ईद की नमाजें पढ़ाते रहे। 
    फिर साल 1969 से हाफिज अजमलुद्दीन हैदर यहां नमाज पढ़ाते रहे, जो सिलसिला साल 2013 तक जारी रहा। उनके बाद हाफिज इकबाल अंजुम हैदर नमाज पढ़ा रहे हैं। बुनियादी तौर पर गाजीपुर (यूपी) के रहने वाले एमआर अंसारी ने बताया कि डायरी लिखने का काम वे शौकिया तौर पर करते रहे हैं, और इसलिए ये सारी जानकारी महफूज रह पाई। 
    अंसारी के डायरी लिखने से मुतास्सिर शहर के मशहूर आर्किटेक्ट हाजी एमएच सिद्दीकी का कहना है कि ये सारी जानकारी एक विरसा (धरोहर) की मानिंद है। सिद्दीकी बताते हैं, अंसारी ने न सिर्फ ईद का ब्यौरा अपनी डायरी में लिखा है, बल्कि 1960 से अब तक का बहुत सा घटनाक्रम भी अपनी डायरी में दर्ज किया है। यह अपने आप में एक मिसाली काम है जो मआशरे में बहुत  से लोगों को मोटीवेट करता है। 


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