18 शव्वालुल मुकर्रम 1444 हिजरी
मंगल, 9 मई, 2023
एमडब्ल्यू अंसारी : भोपाल
शहीद-ए-आजÞम, शेर-ए-हिंद, शेर-ए-मैसूर, आदिल-ओ-रियाया परवर, मजहबी रवादारी के अलमबरदार, अजीम मुजाहिद-ए-आजादी टीपू सुलतान का गुजिश्ता दिनों यौम शहादत मनाया गया। इस मौके पर तमाम बाशिंदगान हिंद की तरफ से उन्हें खराज-ए-अकीदत पेश की गई।
शहीद-ए-आजम टीपू सुलतान हिंदूस्तान के पहले हुक्मरां थे, जिन्होंने अंग्रेजों को भारत से निकालने का अजम लिया था और जिन्होंने हुब्ब-उल-वतनी का सबूत देते हुए ‘हिंदूस्तान, हिंदूस्तानियों के लिए है’ का नारा दिया था। टीपू सुलतान ने अंग्रेजों से छोटी-बड़ी कई लड़ाई लड़ी। टीपू सुलतान की अजमत को तारीख कभी फरामोश ना कर सकेगी, वो मजहब-ओ-मिल्लत और आजादी के लिए आखिरी दम तक लड़ते रहे, बिलआखिर 4 मई 1799 को मैदान-ए-जंग में बहादुरी के साथ लड़ते-लड़ते जाम-ए-शहादत नोश फरमाया। उनकी शहादत पर खुशी का इजहार करते हुए अंग्रेज जनरल हारिस ने उनकी नाश के पास पहुंच कर खुशी से पुकारा ‘आज हिन्दोस्तान हमारा हुआ।’
ऐसी अजीम हस्ती को मौजूदा दौर में जिस तरह पेश किया जा रहा है, वो इंतिहाई गलत और काबिल-ए-अफसोस है। दलित, गरीब, गुरबा जिन्हें तन ढकने की इजाजत नहीं थीं, खासकर दलित खवातीन को अपने पस्तान ढकने की इजाजत नहीं थी, उनके साथ इन्साफ किया और उन्हें बराबरी का हक दिलाया, उन्हें समाज में जगह और मुकाम दिलाया। ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’, का नारा अब वजूद में आया है जबकि टीपू सुल्तान ने उस जमाने में बेटियों की इज्जत-ओ-आबरू की हिफाजत कर अमली नमूना पेश किया था।
ऐसी अजीम शख्सियत को लेकर मौजूदा दौर में तमाम तरह के गलत प्रचार किए जा रहे हैं, कहा जा रहा है कि टीपू सुल्तान ने हिंदू मजहब के मुकद्दस मुकामों को तोड़ा, और उनके साथ जुल्म किया। जबकि हकीकत ये है कि टीपू सुल्तान ने अपनी दौरे हुकूमत के दौरान हिंदुओं और मुसलमानों के साथ एक जैसा बर्ताव किया। जात की बिना पर उनमें कभी फर्क नहीं किया। टीपू सुलतान की फौज में हिंदूओं की बड़ी तादाद से यह बात खुद साबित हो जाती है।
टीपू सुलतान अपने वालिद के बरअक्स इंतिहाई नरम मिजाजी के हामिल थे। हालांकि यही रहमदिली उनकी सल्तनत के खातमे की वजह बनी। उनके करीबियों में ही मीर सादिक, मीर गुलाम अली लंगड़ा, राजा खान और पण्डित पूर्णिया ऐसे गद्दार थे, जिनके बारे में उनके वालिद ने भी उन्हें आगाह किया था, इसके बावजूद उनकी रहमदिली वालिद की वसीयत पर गालिब आ गई और उन्होंने अपने चारों दुश्मनों को माफ कर दिया।
आज ऐसी अजीम शख़्सियत की शबिया (छवि) खराब करने की कोशिश की जा रही है। टीपू सुलतान पर मबनी अस्बाक (पाठ) को दर्सी किताबों से हटाने की कोशिशें जारी हैं, उनकी तारीख को मसख किया जा रहा है। हालाँकि आपने जदीद (आधुनिक) जंगी असलहा मिजाईल बनवाया और उनका भरपूर इस्तिमाल अंग्रेजों के साथ हुई जंगों में किया।
कौम के नौजवानों को जरूरत है कि ऐसे अजीम सुलतान की तारीख को लोगों के सामने लाएं।