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फर्ज नमाजों के वक्त सोने का अजाब (रूहानी इलाज)

नई तहरीक : रायपुर 
सुबह फज्र से इशा तक की पांचों वक्त की नमाजें पाबंदी से पढ़नी चाहिए। जो नमाज के वक्त सोता रहा और उसने नमाज अदा न की तो उसे मौत के बाद सख़्त अजाब दिया जाएगा।
    रसूलअल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने सहाबा-ए- इकराम रदि अल्लाहो अन्हो से फरमाया, आज रात दो शख़्स (यानी जिब्रील और मीकाईल अलैहिस्सलाम) मेरे पास आए और मुझे अर्जे मुकद्दसा में ले आए। मैंने देखा, एक शख़्स लेटा है और उसके सिरहाने एक शख़्स पत्थर उठाए खड़ा है और पै दर पै पत्थर से उसका सिर कुचल रहा है, हर बार कुचलने के बाद सिर फिर से ठीक हो जाता है। मैंने फरिश्तों से कहा, ये कौन है? उन्होंने अर्ज किया, आगे तशरीफ ले चलिए। (मजीद मनाजिर दिखाने के बाद) फरिश्तों ने अर्ज किया, पहला शख़्स जो आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने देखा, ये वो था, जिसने कुरआन पढ़ा, फिर उसे छोड़ दिया था और फर्ज नमाजों के वक़्त सो जाता था, इसके साथ यह बर्ताव कयामत तक होता रहेगा। (सहीह बुखारी)

फज्र की नमाज की अहमियत

फज्र की नमाज की अहमियत जानने के लिए चंद हदीस मुलाहिजा फरमाएं...
  • - जो शख़्स सूरज डूबने और निकलने से पहले (यानी फज्र और असर की) नमाज पढ़ेगा, वह हरगिज आग में दाखिल नहीं होगा। (मुस्लिम: 634)
  • - जो शख़्स ईशा की नमाज जमाअत के साथ अदा करेगा, उसे इतना सवाब मिलेगा, गोया उसने आधी रात तक नमाज पढ़ी। और फिर सुबह की नमाज (यानि फज्र) जमाअत के साथ पढ़े (तो इतना सवाब पाया) गोया उसने पूरी रात नमाज पढ़ी। (मुस्लिम: 656)
  • - जिसने सुबह की नमाज (यानी फज्र) की नमाज पढ़ी तो वह अल्लाह के जिÞम्मे (यानि उसकी हिफाजत में) है। (मुस्लिम: 657)
  • - रात और दिन में फरिश्तों की ड्यूटी बदलती रहती हैं। फज्र और अस्र की नमाजों मैं ड्यूटी पर आने वालों और रुखसत (छूट) पाने वालों का इज्तिमाअ होता है। फिर तुम्हारे पास रहने वाले फरिश्ते जब ऊपर चढ़ते हैं तो अल्लाह तआला पूछता है, हालाँकि वो उन से बहुत ज्यादा अपने बन्दों के मुताल्लिक जानता है कि मेरे बन्दों को तुमने किस हाल में छोड़ा। वो जवाब देते हैं कि हमने जब उन्हें छोड़ा तो वो (फज्र की) नमाज पढ़ रहे थे। और जब उनके पास गए, तब भी वो (अस्र की) नमाज पढ़ रहे थे। (बुखारी: 555)
  • - मुनाफिकों पर फज्र और इशा की नमाज से ज्यादा और कोई नमाज भारी नहीं और अगर उन्हें मालूम होता कि उनका सवाब कितना ज्यादा है (और चल न सकते) तो घुटनों के बल घिसट कर आते और मेरा तो इरादा हो गया था कि मुअज्जन से कहूँ कि वो तकबीर कहे, फिर मैं किसी को नमाज पढ़ाने के लिए कहूँ और खुद आग की चिंगारियाँ लेकर उन सब के घरों को जला दूँ, जो अब तक नमाज के लिए नहीं निकले।(बुखारी: 657)
  • - ये तल्ख हकीकत है कि अक्सरियत फज्र की नमाज छोड़ देती है लेकिन फज्र की नमाज, कितनी ज्यादा अहमियत की हामिल है, मजकुरा बाला रिवायतों से पता चलती है। इसीलिए मेरे अजीज दोस्तों, कभी भी फज्र की नमाज जाया न होने दें। 
  • - बिला सुब्हा कयामत के दिन लोगों के आमाल में सबसे पहले नमाज ही का हिसाब होगा। (अबु दाऊद: 864)
- पेशकश : मोहम्मद शमीम, रायपुर
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