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Dr. Zakir Hussain, president of india |
जामिआ मिलिया इस्लामिया ने साबिक सदर जम्हूरिया डाक्टर जाकिर हुसैन मरहूम का 126 वां यौम-ए-पैदाइश मनाया। जाकिर हुसैन, भारत रत्न हासिल करने वाले, मुल्क के तीसरे सदर और जेएमआई के तीसरे वाइस चांसलर थे। यूनीवर्सिटी कैम्पस में वाके उनकी मजार पर एक दुआइया मजलिस का एहतिमाम किया गया जिसमें जामिआ के तलबा, असातिजा और स्टाफ ने शिरकत की। वाजेह हो कि डाक्टर जाकिर हुसैन हिन्दोस्तान के इन मुनफरद दानिशवरों और माहिरीन तालीम में सर-ए-फहरिस्त हैं जिन्होंने बेमिसाल जहनी दियानतदारी, बेबाकी और बेलौस वतन दोस्ती का यादगार नक़्श छोड़ा है। दिल्ली में कायम उनका तालीमी इदारा जामिआ मिलिया इस्लामिया, उनकी अजमत-ए-फिक्र का जीता जागता मजहर है। जिÞंदगीभर उनकी यही कोशिश रही कि वो तालीम के जरीया कौमी जिंदगी में दाखिल हो जाने वाली कसाफतों और खबासतों को दूर करें। डाक्टर जाकिर हुसैन की फिक्र-ओ-अमल और उनकी बेलौस खिदमतगुजारी का एतराफ महात्मा गांधी, मौलाना अबुल-कलाम आजाद और पण्डित जवाहर लाल नहरू जैसे जलील-उल-कदर काइदीन ने भी किया है। डाक्टर जाकिर हुसैन पहले नायब सदर जमहूरीया और बाद में सदर जमहूरीया हिंद के ओहदा पर फाइज रहे और इसी ओहदा पर रहते हुए उनका इंतिकाल हुआ। हैदराबाद की डाक्टर जाकिर हुसैन मेमोरियल कमेटी ने 1972 में डाक्टर साहिब की हयात-ओ-खिदमात पर एक यादगार किताब की इशाअत अमल में लाई थी जो हैदराबाद ही के एक मुमताज सहाफी और अदीब अहसन अली मिर्जा की एक काबिल-ए-तहसीन अदबी काविश है।
जाकिर हुसैन की हस्ती खिदमत-ए-कौम-ओ-वतन के लिए वक़्फ थी। उनका गम कौम का गम, उनकी फिक्र कौम की फिक्र थी। उन्होंने अपनी तमाम सलाहीयतों को आलम-ए-इंसानियत के लिए वक़्फ कर दिया था। उन्हें कभी भी शोहरत, दौलत और मर्तबा की फिक्र नहीं रही। उन्हें तो बस अपना पैगाम-ए-इल्म-ओ-दानिश ज्यादा से ज्यादा इन्सानों तक पहुंचाने की फिक्र दामन-गीर रही और बिलाशुबा वो अपने इस मिशन में कामयाब रहे। अगरचे जाकिर साहिब ने अपनी सरगर्मियों को ज्यादातर तालीमी खिदमात और समाजी इस्लाहात तक महिदूद रखा था और अमलन सियासत से अपना दामन बचाए रहे, लेकिन इसके बावजूद हिन्दोस्तान की जद्द-ओ-जहद आजादी से लेकर हुसूल-ए-आजादी के बाद के जमाने में भी उनका जजबा खिदमत-ए-खल्क और पैगाम खुलूस-ओ-मुहब्बत, सियासत के होलनाक तूफानों में भी एक संगलाख चट्टान की तरह रहा।
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