रियाद : आईएनएस, इंडिया
जईफुर्रहमान चाहे वो हज के सफर पर हों या सिर्फ उमरा अदा करने के लिए मक्का मुकर्रमा पहुंचे हों, इस दौरान वे मक्का मुकर्रमा के बहुत से तारीखी मुकामात की सैर भी करते हैं।
मक्का मुकर्रमा : हिजरत की कहानी बयां करती जबले सोर की चट्टानें
ये वो मुकामात हैं, जहां रसूल अल्लाह सल्लल्लाह अलैहि वसल्लम के दौर में अहम वाकियात पेश आए थे। नबी करीम सल्लल्लाह अलैहि वसल्लम का हिज्रत मदीना के दौरान ‘गार सौर’ में कयाम करना भी इस्लामी तारीख में हमेशा के लिए अमर होने जाने वाला वाकिया है। गार सोर इसी बिना पर एक इंतिहाई अहम तारीखी मुकाम है। मक्का मुकर्रमा आने वाले अफराद गार सोर को भी देखने जाते हैं। लोग इस गार में तारीखी मुकामात की निशानदेही करते हैं, बहुत से लोग इस मुकाम पर यादगारी तसावीर लेने का एहतिमाम भी करते हैं। मक्का मुकर्रमा : हिजरत की कहानी बयां करती जबले सोर की चट्टानें
अब मक्का मुकर्रमा और मुकद्दस मुकामात के लिए कायम रॉयल कमीशन और दीगर जमातों के ग्रुप ने अपनी निगरानी में तारीखी ‘गार सोर’ को एक सकाफ़्ती (सांस्कृतिक) मंसूबे और सयाहती मुकाम (पर्यटन स्थल) में तबदील कर दिया है। इस मुकाम से मुताल्लिक तारीख जाइरीन की दिलचस्पी का सबब बनाती है। जबल सोर सकाफ़्ती कॉलोनी ने टवीटर पर बताया कि मक्का मुकर्रमा में जबल सोर और गार सोर की अहम वाकिया से निस्बत रखने की वजह से अजीम तारीखी हैसियत है। आप सल्लल्लाह अलैहि वसल्लम ने मदीना मुनव्वरा की तरफ हिज्रत के दौरान गार सोर में पनाह ली थी। आप आप सल्लल्लाह अलैहि वसल्लम के साथ हजरत अबूबकर सिद्दीक रजी अल्लाह अन्हो ने यहां तीन रात कियाम किया है।
जबल सोर मस्जिद हराम के जुनूब (दक्षिण) में तकरीबन 4 किलोमीटर के फासले पर है। गार सोर पहाड़ की चोटी पर एक खोखली चट्टान है, जो उसकी चोटी से कदरे नीचे है। इसके भी दो दरवाजे हैं, एक मशरिक (पूर्व) और दूसरा मगरिब (पश्चिम) की ओर। इन्हीं दरवाजों से ये रसूल अल्लाह सल्लल्लाह अलैहि वसल्लम और आपके साथी हजरत अबू बकर रजी अल्लाह अन्हो गार में दाखिल हुए थे। बयान में कहा गया है कि जबल सोर कल्चरल कॉलोनी प्रोजेक्ट 127 हजार मुरब्बा मीटर से ज्यादा के रकबे पर वाके है और इस प्रोजेक्ट में बहुत से सकाफ़्ती और सयाहती हिस्से शामिल किए गए हैं जो रिहायशियों और हज-ओ-उमरा के लिए आने वाले जाइरीन को अपनी तरफ मुतवज्जा कर रहे हैं। इसके अलावा इस कल्चरल कॉलोनी के मंसूबे में कई हिस्सों को शामिल किया गया है जिनमें सबसे अहम जाइरीन की आमद का मर्कज और पैगंबरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की हिज्रत की नुमाइश है।
नुमाइश में पैगंबरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की हिज्रत की कहानी को म्यूजीयम के अंदाज में बयान किया गया है, जदीद तरीन टैक्नोलोजी का इस्तिमाल करके हिज्रत को पेश किया जाता है। हिज्रत की कहानी और इसके अहम तरीन वाकियात को बताया जाता है। एक पुरकशिश शो के जरीये पहाड़ और गार का तआरुफ कराया जाता है। ये तआरुफ नाजरीन को एक पुरलुत्फ आडीयो के सफर में ले जाता है। इस के अलावा एक नुमाईश ‘मुहम्मद, खुदा के रसूल हैं’ भी है। इस नुमाइश में नबी करीम सल्लल्लाह अलैहि वसल्लम की सीरत तय्यबा और नबी सल्लल्लाह अलैहि वसल्लम की जिंदगी के पैदाइश से लेकर वफात तक के मराहिल के बारे में बात की है।