उर्दू के जरीये भारत को एक धागे में बांधा जा सकता है : प्रोफेसर अशोक
नई तहरीक : भोपाल
उर्दू सहाफत के 200 साल मुकम्मल होने पर गुजिश्ता दिनों महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की मर्कजी लाइब्रेरी में महामना पण्डित मदनमोहन मालवीय इंस्टीटियूट आफ हिन्दी जर्नलिजम, शोबा हिन्दी, जदीद जबानों और मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनीवर्सिटी, हैदराबाद के मुशतर्का (सााा) जेरे-ए-एहतिमाम ‘उर्दू मीडीया का माजी, हाल और मुस्तकबिल’ मौजू पर एक रोजा कौमी सेमीनार का इनइकाद किया गया। जिसमें शुरका (भागीदारों) ने उर्दू सहाफत और जद्द-ओ-जहद आजादी में उर्दू के किरदार पर रोशनी डाली।
जंग-ए-आजादी में उर्दू की खिदमत को नकारा नहीं जा सकता
सेमीनार से खिताब करते हुए प्रोफेसर अशोक ने कहा कि जद्द-ओ-जहद आजादी से लेकर भारत को मुत्तहिद (एक) करने तक उर्दू जबान की बेशुमार खिदमात रही है। उर्दू में वो तासीर और मिठास है, जिसके जरीये भारत को एक धागे में बांधा जा सकता है। जद्द-ओ-जहद आजादी हो या मुल्क में हम-आहंगी (सदभाव) का मसला, उर्दू जबान ने हर महाज पर भारत को जोड़ने का काम किया है। लेकिन अफसोस कि गुजिश्ता कुछ अर्से से उर्दू गैर जानिबदाराना रवैय्ये और अनदेखी का शिकार है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हमें भारत की यकजहती और सलामती के लिए उर्दू जबान की तहफ़्फुज को यकीनी बनाने की जरूरत है।
गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल
प्रोग्राम के मेहमान-ए-खोसूसी मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनीवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रोफेसर सैय्यद ऐन उल हसन ने कहा कि आजादी से कब्ल हिन्दी और उर्दू सहाफत ने मिलकर जिस मजबूती के साथ देश के दुश्मनों का मुकाबला किया, उसे जानना और पढ़ना आज के दौर में गंगा-जमुनी तहजीब को मजबूत करने के लिए बेहद कारगर होगा।
ये किसी खास कौम की जबान नहीं
वाराणसी के सीनीयर सहाफी और उर्दू माहिर के लारी ने उर्दू सहाफत के बारे में बताया कि आज लोग उर्दू जबान को एक खास तबके की जबान मानते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। उर्दू गंगा जमुनी तहजीब, सकाफ़्त और अदब व एहतराम वाली जबान है जिसमें तमाम भाषाओं का अर्क शामिल है। उन्होंने कहा कि भाषा की कोई सीमा नहीं होती है।
हिंदी की छोटी बहन है उर्दू
मदनमोहन मालवीय इंस्टीटियूट आफ हिन्दी जर्नलिजम के साबिक डायरेक्टर प्रोफेसर ओम प्रकाश सिंह ने कहा कि उर्दू की पैदाइश भारत में हुई है और यह हिन्दी की बड़ी बहन है। उन्होंने मजीद कहा कि हर जबान की पहचान उसके रस्म-उल-खत से होती है। यानी जबान की अहमीयत उस वक़्त तक है, जब तक रस्म-उल-खत बाकी है। अगर रस्म-उल-खत बाकी न रहे तो भाषा खुद ब खुद खत्म हो जाएगी।
मुल्क को जोड़ने का निभा सकती है बेहतर किरदार
प्रोग्राम के मेहमान-ए-खुसूसी, छत्तीसगढ़ के साबिक डायरेक्टर जनरल आफ पुलिस और मौलाना आजाद एजूकेशन फाउंडेशन, वजारात-ए-तलीम हकूमत-ए-हिन्द के साबिक सेक्रेटरी एमडब्लयू अंसारी ने उर्दू के आगाज और मौजूदा के दरमयान मुंशी प्रेम चंद की सोजे वतन और गंगा जम्मूनी तहजीब को याद किया। उन्होंने कहा कि उर्दू किसी एक जात, मजहब या बिरादरी की जबान नहीं बल्कि ये पूरे भारत की है।
हुकूमत ही नहीं, हम खुद भी हैं जिम्मेदार
मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनीवर्सिटी के शोबा इबलाग आम्मा के सरबराह प्रोफेसर मुहम्मद फर्याद ने कहा कि उर्दू भाषा आज तनज्जुली का शिकार है जिसके लिए सरकार समेत हम सब भी जिÞम्मेदार हैं। अगर सरकारें उर्दू के साथ अनदेखी कर रही हैं तो हम तमाम लोग (उर्दू दां और उर्दू के नाम पर इदारे चलाने वाले) खामोश तमाशाई बने हुए हैं। तमाम उर्दू दां और उर्दू तन्जीमों को चाहिए कि उर्दू की बका व फरोग के लिए मुहिम चलाएं और लोगों को उर्दू भाषा से जोड़ने की कोशिश करें।
प्रोग्राम में डाक्टर राम त्रिपाठी, डाक्टर देवाशीष वर्मा, डाक्टर जिनेश, जर्नलिजम इंस्टीटियूट के रिसर्च स्टूडेंट मुहम्मद जावेद समेत हिन्दी डिपार्टमेंट के कई तलबा व तालिबात शामिल थे।