नई दिल्ली : आईएनएस, इंडिया
दाराशिकोह का ये मानना था कि हिंदू और मुस्लिम दोनों मजाहिब एक हैं, दोनों मजाहिब में वहदत उल वजूद का फलसफा एक है।
ये बातें मुमताज मुअर्रिख (प्रसिद्ध इतिहासकार) और मुसन्निफ (लेखक) हरबंस मुखिया ने जश्न रेख़्ता के प्रोग्राम बज्म-ए-खयाल के तहत मुनाकिद एक प्रोग्राम के दौरान तकरीर में कही। हरबंस मुखिया ने बताया कि दारा शिकोह ने 50 उपनिशद फारसी जबान में तर्जुमा किया। दाराशिकोह ये चाहते थे कि उपनिषद की बातें सभी तबके तक पहुंचें। ख़्याल रहे कि जश्न रेख़्ता के मुनाकिदा ये प्रोग्राम दाराशिकोह की किताब ‘मजमा अलबहरीन’ पर इजहार-ए-खयाल था जिसकी निजामत मशहूर मुसन्निफा राना सफवी कर रही थीं, जबकि इस मुबाहिसा में तारीख के प्रोफेसर नजफ हैदर ने भी हिस्सा लिया। प्रोफेसर हरबंस मुखिया ने दारा शिकोह की जिंदगी के मुख़्तलिफ पहलुओं पर रोशनी डाली। दारा शिकोह अपने दीगर भाईयों के मुकाबले इल्म-ओ-रूहानियत की तरफ ज्यादा माइल हुए। अगरचे शाहजहां ने दारा शिकोह को मुख़्तलिफ जिÞम्मेदारियां दी थीं, ताहम दाराशिकोह पर रूहानियत का गलबा था।
उन्होंने मजीद कहा कि मुगल बादशाह अकबर ने जिस मजहबी हम-आहंगी को कायम किया था, उसे दाराशिकोह ने फरोग दिया। ताहम वो तवहहुम परस्ती (अंधविश्वास) पर भी यकीन रखता था, प्रोफेसर हरबंस ने जोर देकर कहा कि अगर दाराशिकोह बादशाह होता तो वो मजीद इल्मी काम अंजाम देता, क्योंकि बादशाह के इख़्तीयारात ज्यादा होते हैं। अकबर कहता था कि अकल का रास्ता रोशन है। दाराशिकोह के जमाना तक हिन्दोस्तान में हिंदू मुस्लिम की कोई तफरीक (फर्क) नहीं थी, मशहूर बर्तानवी स्कालर जेम्समल ने दोनों के दरमयान तफरुर्का (फर्क) डालने के लिए कहा था कि हिंदू और मुस्लिम दो अलग-अलग हैं। इसी ने हिन्दोस्तान में दो कौमी नजरिया पेश किया। इस मौका पर प्रोफेसर नजफ हैदर ने भी दारा शिकोह की किताब 'मजमा अलबहरीन' पर इजहार-ए-खयाल किया। उन्होंने कहा कि मजमा अलबहरीन इतनी कीमती किताब थी कि उसी जमाने में इस का संस्कृत तर्जुमा समुंद्र सार के नाम से शाइआ हुआ जिसमें बताया गया है कि हर चीज खुदा के वजूद का हिस्सा है।