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कॉलिजों में भी उर्दू के साथ किया जा रहा है सौतेला सुलूक

नई फिजा में परिंदा उड़ान भूल गया, जमीन पे चलने लगा भूल गया

गरीब-ए-शहर ने रखी है आबरू वर्ना, अमीर-ए-शहर तो उर्दू जबान भूल गया

- एमडब्ल्यू अंसारी (आईपीएस) (रिटा. डीजी)


नवाबों की शहर भोपाल, तालीम का मर्कज बनने वाले इस शहर का मसला ये है कि उर्दू जबान से अकीदत और मुहब्बत रखने वालों को इस में जगह नहीं मिल पा रही है। दार-उल-हकूमत भोपाल की बरकत उल्लाह यूनीवर्सिटी से लेकर रियासत की किसी भी यूनीवर्सिटी में उर्दू का मुनासिब इंतिजाम ना होने से तलबा को खाहिश और तमन्ना के बावजूद इस जबान का शौक तर्क करना पड़ रहा है। इन यूनीवर्सिटीयों में तमाम जबानों की सहूलतें हैं लेकिन उर्दू के साथ सौतेला रवैय्या अपना जा रहा है, इन यूनीवर्सिटीयों में उर्दू के लिए कोई इंतिजाम नहीं है। इसी तरह रियासत की तमाम छोटे बड़े कालेजेज और यूनीवर्सिटीयों में उर्दू को नजरअंदाज कर दिया गया है और लगातार किया जा रहा है, जो सालों साल से चलता आ रहा है और खुद उर्दू दां कोई ठोस कदम सही वक़्त पर, सही मुकाम पर उर्दू के बका वफरोग के लिए नहीं उठा रहे हैं और ना ही आवाज बुलंद कर रहे हैं।

वहीं राजिस्थान, उत्तरप्रदेश, बिहार और झारखंड समेत मुल्क की दीगर तमाम रियास्तों में उर्दू के साथ इसी तरह का सौतेला सुलूक किया जा रहा है। इन रियास्तों में कहीं उर्दू अकेडमी है तो उर्दू का बोर्ड तशकील नहीं दिया गया है, कहीं बोर्ड तशकील दी गई है तो मेंबरान की तकरुर्री नहीं की गई है, और कहीं मेंबरान की तकरुर्री की गई है तो मेंबरान को तनख़्वाह नहीं दी जा रही है। ना ही किसी यूनीवर्सिटी में या कॉलेज में उर्दू का डिपार्टमेंट खोला गया है और ना ही निसाब की किताबें उर्दू में मुहय्या कराई गई हैं, जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। उर्दू में निसाब की किताबें साईंस, मेथ्स मेटकस, बायोलाजी, साईंस एंड टैक्नोलोजी मुहय्या नहीं कराते नहीं और कहते हैं कि तलबा उर्दू नहीं पढ़ते हैं, ये कहना गलत है। अगर आप उन्हें निसाब की किताबें उर्दू में मुहय्या करायेंगे तो वो पढ़ेंगे। वर्ना वो सिर्फ़ किस्से कहानियां पढ़ा करेंगे। 

सरकार से हमारा मुतालबा

हम सरकार और इंतिजामीया से मुतालिबा करते हैं कि वो स्कूलों में निसाब की किताबें उर्दू जबान में मुहय्या कराएं। तलबा के वालदैन से भी गुजारिश करते हैं कि वो उसके खिलाफ आवाज उठाएं और सीधे सरकार से सवाल करें कि आखिर उर्दू जबान के साथ ये गैर जिम्मा दाराना सुलूक क्यों किया जा है।

इसके साथ ही उर्दू के फरोग के लिए उर्दू जबान की असरी तकाजे, मसाइल और हल पर नजर डालना जरूरी है। और उर्दू के फरोग के लिए प्राइमरी, मिडिल और हाई स्कूल तक उर्दू तालीम की टूटी हुई कड़ी को जोड़ने के लिए मूसिर इकदामात और मुनज्जम पालिसी बनाने की जरूरत है। उर्दू की दरस व तदरीस की हौसलाशिकनी आजादी के बाद से मुसलसल हो रही है। मगर इस सिलसिले में सिर्फ हुकूमत को मौरिद-ए-इल्जाम ठहराना दरुस्त नहीं है। अहले उर्दू और उर्दू का दम भरने वाले उसके लिए कम जिÞम्मेदार नहीं हैं। जो हुकूमत के मुआनिदाना रवैय्या मुखालिफत नहीं करते, मजालिम को सहते और साजिÞशों को नजरअंदाज करते जाते हैं, और कर रहे हैं।

दर्स व तदरीस को जारी रखना जरूरी 

बता दें कि किसी भी जबान को जिंदा रखने और उसकी तरक़्की को यकीनी बनाने के लिए उसकी दर्स व तदरीस को जारी रखना निहायत जरूरी है। लेकिन सिर्फ जजबाती तकरीर करने से उर्दू का फरोग होने से रहा। जब तक उर्दू के चाहने वाले बराह-ए-रास्त कोई मूसिर इकदाम नहीं उठाते, उर्दू का फरोग नहीं हो सकता। उस के लिए अपने गरीबां में भी झाँकने की जरूरत है कि उर्दू की बदहाली का रोना रोने वाले कितने लोग उर्दू अखबारात-ओ-रसाइल मंगाते और पढ़ते हैं, कितने लोग अपने बच्चों को उर्दू पढ़ने लिखने की तरगीब देते हैं।

 उर्दू तालीम को कारगर बनाने के लिए ऐसे इकदामात भी करने होंगे जिनके तहत उर्दू तालीम को बाजार की जरूरतों से वाबस्ता किया जा सके और तकनीकी और इंतिजामी सतह पर उनकी इफादीयत नुमायां किरदार अदा कर सके। दीगर उलूम-ओ-फनून की उर्दू में मुंतकली ना होना और दर्सी किताबों की अदम दस्तयाबी उर्दू जरीया तालीम के बतौर इखतियार करने की राह में जबरदस्त मुजाहम है। 

बेनजीर अंसार एजूकेशनल एंड सोशल वेल्फेयर सोसाइटी

क्वींस होम, अहमदाबाद पैलेस रोड, भोपाल 


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