अहमतरीन इबादत है रोजा : डॉक्टर इस्माइल


नई तहरीक : भिलाई

माहे रमजान के अजमतभरे महीने में एक तरफ जहां मस्जिदों में इबादत हो रही है, वही रोजेदार अपने-अपने घरों में भी इबादत के साथ दुआएं कर रहे हैं। रमजान की अजमत बयान करते हुए भिलाई स्टील प्लांट के रिटायर्ड मुलाजमीन व सोशल वर्कर डॉक्टर सैय्यद इस्माईल ने कहा कि रोजे से इस्तहकाम हासिल होता है। रोजा अल्लाह की अहम तरीन इबादत है। हर बालिग मोमिन मर्दो और औरतों पर रोजा फर्ज है। अल्लाह की खुशनमदी और रजा-ए-इलाही के लिए रखे गये रोजो का बदला अल्लाह खुद देता है। 

उन्होंने कहा कि प्यारे नबी हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहिस्सलाम ने बताया, (तर्जुमा) रोजा आदमी के लिए ढाल है जब तक उसको फाड़ ना डाले। ढाल होने का मतलब है कि जिस तरह आदमी अपनी हिफाजत ढाल से करता है, उसी तरह रोजे से भी शैतान दुश्मन से हिफाजत होती है। 

डॉक्टर इस्माइल ने कहा कि एक रिवायत में आया है रोजा अल्लाह के अजाब से हिफाजत है। एक रिवायत में है, रोजा जहन्नम से हिफाजत है। मशाइख ने रोजा के आदाब में छह उमूर लिखे हंै जिनका रोजेदार को एहतेमाम करना चाहिए।  एक-अपनी निगाह की हिफाजत करना कि हर बेमहल व बेकार, फहश जगह ना पड़े। उलेमा ने बेमहल का मायने बताए है, हक ताअला से हटकर दूसरी तरफ मुत्तवजेह होना, दूसरी चीज जबान की हिफाजत है जिसमे झूठ, गीब़त, चुगली, फहश बात झगड़ा, लडाई, से बचना, तीसरी चीज रोजेदार को कान की हिफाजत करना है। बुरी बात सुनने से बचना यानि हर मकरूह बात जिसका कहना और जबान से निकालना नाजायज है। उस तरफ कान लगाने से बचना है। चौथी चीज, बाकी आजाए बदन (शरीर के अंग) का मसलन हाथ का नाजायज इस्तेमाल, पैरों का नाजायज जगह जाना से रोकना है। पाचवीं चीज हलाल कमाई से इफ्तार करना चाहिए। हराम कमाई से बचना हर हाल में जरूरी है। छठी चीज, रोजेदार के लिए जरूरी है कि वह इस बात से डरता रहे कि क्या मालूम रोजा कूबूल भी हुआ कि नही। अल्लाह से अपने गुनाहों की तौबा करते रहें ओर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहिस्सलाम ने जो पाक मआशरे की तामीर के लिए मेहनत की है, जिससे इंसान के अंदर इंसानियत आए, हमदर्दी पैदा हो, एक-दूसरे के काम आए, ऐसी सच्चाई और अमानतदारी वाली जिंदगी की जुस्तजू में लगे रहना चाहिए। 


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