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नवाब हमीद अल्लाह ख़ान के शहर भोपाल के क़दीम तारीख़ी विरसे को बचाने की ज़रूरत : एमडब्ल्यू अंसारी

 रबि उल अल 1446 हिजरी 

  फरमाने रसूल ﷺ   

जो आदमी इस हाल में फौत हुआ के वह अल्लाह ताअला और आख़ेरत पर इमान रखता हो तो उससे कहा जाएगा, जन्नत के आठ  दरवाज़ों में से जिस दरवाज़े से दाखिल होना चाहता है, दाखिल हो जा।

- मसनद अहमद

नवाब हमीद अल्लाह ख़ान के शहर के क़दीम तारीख़ी विरसे को बचाने की ज़रूरत : एमडब्ल्यू अंसारी

 
✅ नई तहरीक : भोपाल 

कदीम तारीखी रियासत वाले शहर भोपाल में एक ज़माने तक नवाबों का दौर रहा है। भोपाल की तारीख़ में एक दौर ऐसा भी आया, जब इस शहर ने ख़ूब तरक़्क़ी की। वो दौर था, रियासत भोपाल के आख़िरी नवाब हमीद अल्लाह ख़ान का जिनका 9 सितंबर को यौम पैदाइश मनाई गई।
    9 सितंबर 1894 को भोपाल में पैदा हुए नवाब हमीद अल्लाह ख़ान नवाब सुलतान जहां बेगम के बेटे थे। वो भोपाल के 19वें नवाब थे और 1916 में अपनी वालिदा नवाब सुलतान जहां बेगम के सेक्रेटरी भी रहे। नवाब ख़ान 1920 में भोपाल म्यूंसिपल्टी के सदर भी मुंतख़ब हुए। और 1920 में अलीगढ़ यूनीवर्सिटी की तरक़्क़ी के लिए तशकील दी गई कमेटी के चेयरमैन भी थे।

    9 जून 1926 को नवाब हमीद अल्लाह ख़ान भोपाल रियासत के नवाब मुंतख़ब हुए और एक अर्से तक उन्होंने भोपाल की ख़िदमत की। 1930 में वो दो बार चेंबर्ज़ आफ़ प्रिंसिज़ के चांसलर रहे। 1935 में बोर्ड आफ़ कंट्रोल फ़ार क्रिकेट इन इंडिया के चेयरमैन बने। नवाब ख़ान ने लंदन और शिमला में गोल मेज़ कान्फ्रेंस में भी शिरकत की। नवाब हमीद अल्लाह के दौर में भोपाल में बहुत काम हुए और रियासत भोपाल ने अपनी बुलंदियों को छुवा।

    भोपाल के लोगों में सियासी शऊर को देखते हुए नवाब हमीद अल्लाह ख़ान ने भोपाल में रियास्ती काउंसिल बनाई, जिसमें 1927 में अवामी और हुकूमती लोगों को शामिल किया जाना शुरू हुआ, जो 1949 तक जारी रहा। नवाब भोपाल हाकी, पोलो, टेनिस के अच्छे खिलाड़ी थे और उन्हें कुश्ती का भी बहुत शौक़ था।
    शहर भोपाल क़दीम तारीख़ी शहर रहा है। ये शहर तारीख़ी इमारतों का शहर है। ताज अल मसाजिद, सदर मंज़िल, गोल घर, शाहजहाँ आबाद गेट हो या फिर जामा मस्जिद और मोती मस्जिद, हर एक की शानदार तारीख़ रही है। हर एक का अपना शानदार माज़ी है। ये इमारतें शहर भोपाल को दूसरे शहरों से ख़ास और मुख़्तलिफ़ बनाती हैं।

    नवाब हमीद अल्लाह ख़ान और उनके बाद जो भी तरक्कियाती काम हुए हैं, उससे शहर ने ना सिर्फ ये कि तरक़्क़ी की बल्कि अपनी एक अलग पहचान बनाई है। लेकिन मौजूदा दौर में भोपाल की पहचान गुम होती नज़र आ रही है। ये तारीख़ी शहर तजावुज़ात (अतिक्रमण) से घिरता जा रहा है। तारीख़ी विरसे, इमारतें और मैदान खंडरों में तबदील होते जा रहे हैं। वक़्फ़ इमलाक का तहफ़्फ़ुज़ नहीं हो रहा है। नाजायज़ कब्जे बढ़ते जा रहे हैं। क़दीम तालीमी इदारे बंद होने की कगार पर हैं और रोज़ ब रोज़ होटल, शॉपिंग माल और सिनेमा घर खुलते जा रहे हैं। सड़कें वसीअ तो की जा रही हैं लेकिन डेवलपमेंट के नाम पर विरासत को ख़त्म किया जा रहा हैं, नीज़, क़ब्रिस्तान तक तंग होते जा रहे हैं। ग़रज़ ये कि शहरे भोपाल को एक-बार फिर नवाब हमीद अल्लाह ख़ान जैसी शख़्सियत की ज़रूरत है।

तारीखी विरसे की हिफाजत हर शहरी की जिम्मेदारी

नवाब हमीद अल्लाह ख़ान अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन वो एक ख़ूबसूरत, आबाद और तरक़्क़ी याफताह शहर छोड़ गए हैं जिसकी हिफ़ाज़त की जिम्मेदारी यहां के हर शहरी की है। हमें अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुए यहां के तारीख़ी असासे को बचाने की ज़रूरत है। कुछ इमारतों को वक़्त की तबाहकारीयों से नुक़्सान ज़रूर पहुंचा है जबकि कुछ के सिर्फ नाम और आसार बाक़ी रह गए हैं। जबकि ये हमारे सक़ाफ़्ती विरसे हैं। मौजूदा हुकूमतें इन आसार-ए-क़दीमा को मिटाना चाहती हैं, उनकी तारीख़ को मसख़ करना चाहती हैं। इमारतों, सड़कों, चौक-चौराहों और यहां तक कि स्टेशनों तक के नाम तबदील किए जा रहे हैं। नफ़रत की सियासत कर सियासी फ़ायदा उठाने की कोशिशें की जा रही हैं। 
    इन्साफ़ के नज़रिया से देखा जाए तो ये तमाम चीज़ें महज इमारतें नहीं बल्कि हमारे बुज़ुर्गों की विरासत हैं जिन्हें बचाने की ज़िम्मेदारी हम सब पर आइद होती है।

एक अपील 

रियासत भोपाल के आख़िरी नवाब हमीद अल्लाह ख़ान के यौम-ए-पैदाइश के मौक़ा पर औक़ाफ़ शाही की इंतिज़ामीया से खासतौर पर भोपाल के तमाम नवाबों के नाम से इदारे क़ायम किए जाने की दरख्वास्त के साथ औक़ाफ़ शाही की अराज़ी का सही इस्तिमाल करने की अपील की गई। औकाफ शाही से ऐसे तालीमी इदारे क़ायम किए जाने की अपील की गई जो उर्दू, फ़ारसी और अरबी के फ़रोग़ का सबब बनें। इसके अलावा हुकूमत से तमाम क़दीम तारीख़ी असासों को बचाने, गंगा जमुनी तहज़ीब को बचाने। शहर भोपाल की बरकत उल्लाह यूनीवर्सिटी को सेंटर यूनीवर्सिटी बनाने की अपील की गई जिससे भोपाल तारीख़ी शहर होने के साथ-साथ इल्म का मर्कज़ बन सके। साथ ही यह भी अपील की गई कि नवाब पटौदी के नाम पर खेल मैदान बनाया जाए, हाकी ग्राऊंड बनाया जाए और ऐसे काम किए जाएं जिससे समाज का भला हो, हर शहरी तालीम याफ़ता हो, बेरोज़गारों को रोज़गार मिले, बेटियों का तहफ़्फ़ुज़ हो, होनहार तलबा की हौसला-अफ़ज़ाई हो। 


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