मिस्री फ़नकार ख़ातून की वसीयत, मेरा जनाज़ा मस्जिद की बजाए थिएटर से निकाला जाए (अजब-गजब)

 सफर उल मुजफ्फर - 1446 हिजरी

हदीस-ए-नबवी ﷺ

जिसने अस्तग़फ़ार को अपने ऊपर लाज़िम कर लिया अल्लाह ताअला उसकी हर परेशानी दूर फरमाएगा और हर तंगी से उसे राहत अता फरमाएगा और ऐसी जगह से रिज़्क़ अता फरमाएगा जहाँ से उसे गुमान भी ना होगा।

-इब्ने माजाह


✅ क़ाहिरा : आईएनएस, इंडिया

मिस्र की एक माअरूफ़ फनकारा सिल्वा मुहम्मद अली ने अपने हालिया बयानात से एक नया तनाज़ा (विवाद) खड़ा कर दिया है। एक टेलीविज़न प्रोग्राम में सिल्वा ने गुफ़्तगु करते हुए अपनी मौत के बाद की वसीयत का इन्किशाफ़ (खुलासा) किया है जिसमें उन्होंने कहा कि मेरे मरने के बाद मेरा जनाज़ा मस्जिद से पहले थिएटर से निकाला जाए। 
    सिल्वा ने मज़ीद कहा कि वो नेशनल थिएटर से बहुत मुंसलिक हैं। इसलिए उनकी ख्वाहिश है कि उनकी लाश को थिएटर से निकाला जाए और फिर नमाज़ जनाज़ा के लिए मस्जिद ले जाया जाए। सिल्वा ने मज़ीद कहा कि वो बालाई मिस्र से ताल्लुक़ रखती हैं और मिस्री और बालाई मिस्री रस्म-ओ-रिवाज और रवायात से वाक़िफ़ हैं। उन्होंने कहा कि मुझे नेशनल थिएटर बेहद पसंद है। मैंने अदाकारी के अपने ख़ाबों को इसी थिएटर में हासिल किया। इसके साथ मेरी बहुत सी कामयाबियां जुड़ी हुई हैं। उन्होंने वज़ाहत की कि वो मौत से नहीं डरतीं बल्कि बीमारी से डरती हैं, लेकिन ख़ुदा की रहमत से उसे उम्मीद है कि वो किसी संगीन बीमारी में मुबतला नहीं होंगी। 


    सिल्वा मुहम्मद अली ने इन्किशाफ़ किया कि वो पहली फ़नकार नहीं हैं जिन्होंने इस नौईयत (नेचर) की वसीयत की है। उन्होंने कहा कि मैं वाहिद फ़नकारा नहीं जो थिएटर से अपना जनाजा निकालना चाहती है। इससे पहले भी फ़नकार शफ़ीक़ नूर उद्दीन और तौफ़ीक़ अलदकन जैसे कई दूसरे फ़नकारों के जनाज़े थिएटर से निकाले गए है। हिदायतकार यूसुफ़ का जनाज़ा भी अलनहासि स्टूडियो से निकाला गया था। उसी स्टूडियों से यूसुफ की अहम तरीन फिल्मों की शूटिंग की तैयारी की गई थी। 
    ये बात काबिल-ए-ज़िक्र है कि फनकारा सिल्वा मुहम्मद अली ने गुजिशता रमज़ान ड्रामा सीज़न के तीन सीरीज़ में हिस्सा लिया था। 

आखिरी रसूमात में बढ़ते खर्च के चलते फ्रांस में अपनों की मयत को लावारिस छोड़ने का चलन बढ़ा

ओटावह : कैनेडा के कुछ सूबों में हालिया बरसों में लावारिस लाशों की तादाद में इज़ाफ़ा हुआ है जिसकी वजह आख़िरी रसूमात के बढ़ते अख़राजात को बताया जा रहा है। बर्तानवी न्यूज एजेंसी के मुताबिक़ कैनेडा में इंडस्ट्री ट्रेड ग्रुप के तख़मीने (अंदाज) के मुताबिक़ कैनेडा में आख़िरी रसूमात की मजमूई लागत आठ हज़ारा 800 डालर तक पहुंच गई है जो 1998 मैं छः हज़ार डालर थी। 
    कैनेडा के सबसे ज़्यादा आबादी पर मुश्तमिल सूबे इंटारीव के चीफ़ कोरोनर ने बताया कि सूबे में 2023 में लावारिस लाशों की तादाद 1،183 हो गई है जो 2013 में 242 थी। इनमें से ज़्यादातर के लवाहिक़ीन (घरवालों) की शिनाख़्त हो चुकी थी हालांकि वो मुख़्तलिफ़ वजूहात की बिना पर इन लाशों पर अपना दावा करने से बचते रहे। उन्होंने कहा कि ये तकलीफ़-दह बात है कि एक शख़्स, जो मर चुका है, उसके ख़ानदान, दोस्त या दीगर में से कोई भी नहीं जो उसकी मौत के बाद हिदायात फ़राहम करने के काबिल हो। उन्होंने कहा कि इंटारीव में 24 घंटों के बाद एक लाश को सरकारी तौर पर लावारिस समझा जाता है लेकिन कोरोनर के दफ़्तर का अमला क़रीबी रिश्तेदारों को तलाश करने की कोशिश में हफ़्तों गुज़ार सकता है। अगर रिश्तेदार तसदीक़ करते हैं कि वो लाश का दावा करने से क़ासिर हैं तो मुक़ामी म्यूंसिपल्टी एक सादा अंदाज़ में तदफ़ीन का बंद-ओ-बस्त करती है। 
    उन्होंने मज़ीद बताया कि इस दौरान लाश को मुर्दा-ख़ाने या दर्जा हरारत पर क़ाबू पाने वाली स्टोरेज में रखा जाता है। टोरंटो में आख़िरी रसूमात के लिए मुख़तस (सुरक्षित) जगह के मालिक ने कहा कि हमेशा ऐसे ख़ानदान तो होते हैं, जिन्हें इज़ाफ़ी इमदाद की ज़रूरत होती है लेकिन मैंने कभी भी लावारिस लाशों की इतनी तादाद नहीं देखी जो इस वक़्त मौजूद हैं। क्यूबेक में लावारिस लाशों की तादाद 2023 में 183 हो गई है जो 2013 में 66 थी जबकि अल़्बर्टा में ऐसी लाशों की तादाद 2023 में 200 हो चुकी है जो 2016 में 80 तक थी।


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