रमजान उल मुबारक-1445 हिजरी
विसाल (17 रमज़ान)
- शोहदा-ए-बद्र रिज़वानुल्लाहि तआला अलैहिम अजमईन
- हज़रत उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आईशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा
- हज़रत टीपू सुल्तान रहमतुल्लाहि तआला अलैहि
हदीस-ए-नबवी ﷺ
'' रमजान में घर वालों पर खुलकर खर्च किया करो क्योंकि रमजान के महीने में खर्च करना अल्लाह ताअला की राह में खर्च करने की तरह है। ''- अल जामिउस्सगीर
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✅ नई दिल्ली : आईएनएस, इंडिया
अगर कोई क़ानून या कोई बात सही है तो उसे दरुस्त कहना चाहीए और अगर ग़लत है तो उसकी मुख़ालिफ़त भी होनी चाहिए। लेकिन अगर किसी क़ानून से या शहरीयत तरमीमी क़ानून (सीएएे) से कोई नुक़्सान नहीं है तो बिलावजह उसकी मुख़ालिफ़त नहीं होनी चाहीए। इसे लेकर जो लोग गुमराह करके सियासत करना चाहते हैं, उनको जवाब देना चाहीए। इन ख़्यालात का इज़हार आचार्य प्रमोद कृशनम ने नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के ज़ेर-ए-एहतिमाम इंडिया इस्लामिक कल्चरल सैंटर में सीएए और हिन्दुस्तानी मुस्लमान के मौज़ू पर मुनाक़िदा मुज़ाकरा में किया।उन्होंने कहा कि कोई घर ऐसा नहीं है, जहां सभी हम-ख़याल या एक ख़्याल के हों। इसी तरह कोई मुहल्ला या कोई इलाक़ा ऐसा नहीं है, जहां सभी लोग एक ख़्याल रखते हों। आचार्य प्रमोद ने कहा कि हुकूमत ने सीएए को नाफ़िज़ कर दिया है। हुकूमत का कहना है कि इससे हिन्दोस्तान में रहने वाले मुस्लमानों को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। अगर फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला है तो फिर इसकी मुख़ालिफ़त की कोई वजह नहीं है। हां, अगर सीएए से मुस्लमानों का नुक़्सान है तो इसकी मुख़ालिफ़त होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें बैठ कर बातचीत करके फ़ैसला करना होगा कि सही क्या है और ग़लत क्या है। वर्ना मुख़ालिफ़त करते रहेंगे और वक़्त निकल जाएगा। उन्होंने कहा कि अल्लाह, ख़ुदा और ईश्वर सभी एक हैं। सिर्फ ज़बान और मज़हब का फ़र्क़ है। इसलिए किसी से ज़ाती दुश्मनी नहीं करनी चाहिए। सब अपने अपने मज़हब के मुताबिक़ अमल करें।
सीएए को एनआरसी और एनपीआर से अलग करके नहीं देख जा सकता : एडवोकेट जेड के फ़ैज़ान
नई दिल्ली : सुप्रीमकोर्ट के सीनीयर वकील एडवोकेट जेड के फ़ैज़ान ने कहा कि मैं शहरीयत तरमीमी क़ानून (सीएए) की मुख़ालिफ़त करता हूं। उन्होंने कहा क वजीरे दाखिला अमित शाह ने कहा है कि इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला है लेकिन ये भी कहा जा रहा है कि सीएए के बाद एनआरसी और एनपीआर लाया जाएगा। इस लिए मुझे लगता है कि सीएए, एनआरसी और एनपीआरसी से जुड़ा हुआ है। इस तरह के क़ानून हमारे मुल्क के लिए ठीक नहीं हो सकते।एडवोकेट जेड के फ़ैज़ान ने कहा कि सीएए के ज़रीया सिर्फ़ मज़लूमों को शहरीयत नहीं दी जाएगी बल्कि इससे ऐसे रास्ते खोल दिए गए हैं कि ग़लत तरीक़े से भी लोग जाएंगे। उन्होंने कहा कि 1955 का क़ानून जब पहले से मौजूद था तो फिर नए क़ानून की ज़रूरत नहीं थी। काबिले ज़िक्र है कि नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपीे) के ज़ेर-ए-एहतिमाम इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में सीएए और हिन्दुस्तानी मुस्लमानों के उनवान से एक मुज़ाकरा का इनइक़ाद किया गया। उसका मक़सद मुस्लमानों के शकूक व शुबहात को दूर करना था। एनसीपी का ख़्याल है कि शहरीयत तरमीमी क़ानून (सीएए) से मुस्लमानों को किसी तरह से कोई नुक़्सान नहीं होगाद्य। बल्कि ये बैरून-ए-मुमालिक (पाकिस्तान, बंगला देश और अफ़्ग़ानिस्तान से आने वाले अक़ल्लीयतों को शहरीयत देने के लिए बनाया गया है।
इस मौक़ा पर कुछ मुस्लिम रहनुमाओं की जानिब से सीएए से मुताल्लिक़ अपने ख़दशात का इज़हार किया गया, जिसके जवाब में एनसीपी की तरफ़ से इस बात का वाअदा और इआदा किया गया कि किसी भी तरह से मुस्लमानों को घबराने की कोई ज़रूरत नहीं है। एनसीपी सरकार का हिस्सा है और वह किसी भी हिन्दुस्तानी मुस्लमान की शहरीयत पर आँच नहीं आने देगी। क़ाबिल ज़िक्र है कि नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनपी) अक़ल्लीयती शोबा के सरबराह और पार्टी के क़ौमी जनरल सैक्रेटरी सय्यद जलाल उद्दीन की क़ियादत में किया गया, जिसमें पार्टी के कारगुज़ार सदर प्रफुल्ल पटेल, आचार्य प्रमोद कृशनम, मारूफ़ शीया आलमे दीन मौलाना कलबे जव्वाद, एनसीपी लीडर ब्रज मोहन श्रीवास्तव के अलावा मौलाना ज़ाहिद रज़ा रिज़वी, इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर के नायब सदर एसएम ख़ान, सेक्रेटरी इबरार अहमद, बी ऊटी मुहम्मद शमीम, सिकन्दर हयात, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, मुफ़्ती अता अल रहमान क़ासिमी, एडवोकेट अनस तनवीर, एडवोकेट असलम सुप्रीमकोर्ट और एडवोकेट रईस अहमद समेत मुतअद्दिद ख़ानक़ाहों के सरबराहान और मिली तन्ज़ीमों के नुमाइंदों और मुस्लिम रहनुमाओं ने शिरकत की।