उत्तराखंड : '' सबके लिए एक कानून'' बिल पास, '' हलाला '' और " तादाद-ए-अजदवाद '' पर रोक

  • मुसव्वदा कमेटी की 780 सफ़हात पर मुश्तमिल रिपोर्ट पर 
  • 2 लाख 33 हज़ार लोगों ने दी अपनी राय 
  • कमेटी ने कुल 72 मीटिंगें की 
  • उत्तराखंड बनी यकसां सिविल कोड लागू करने वाली पहली रियासत 

उत्तराखंड :  '' सबके लिए एक कानून''  बिल पास, '' हलाला '' और  " तादाद-ए-अजदवाद '' पर रोक

देहरादून : आईएनएस, इंडिया

उत्तराखंड असेंबली में बुध को यूनीफार्म सिविल कोड (यूसीसी, समान नागरिक संहिता) बिल सूती वोट (ध्वनी मत) से पास हो गया। इसके साथ ही उत्तराखंड यूसीसी बिल पास करने वाली आज़ाद हिन्दोस्तान की पहली रियासत बन गई है। बिल को वज़ीर-ए-आला पुष्कर सिंह धामी ने पेश किया था, जिसका मक़सद तमाम शहरियों के लिए यकसाँ शादी, तलाक़, ज़मीन, जायदाद और विरासत के क़वानीन को उनके मज़हब से अलग क़ायम करना है। बिल से सबसे ज्यादा मुसलमान मुस्लिम पर्सनल ला मुतास्सिर होगा। 
    मंगल को बिल के हवाले से असेंबली में ज़बरदस्त बहस जो बुध को भी जारी रही। अपोज़ीशन जमातों के अरकान ने सबसे पहले बिल को ऐवान (सदन) की सिलेक्ट कमेटी को भेजने का मुतालिबा किया। उसके बाद बिल असेंबली में सूती वोट से मंज़ूर कर लिया गया। इस तरह यूसीसी बिल मंजूर करने के मामले में उत्तराखंड ने तारीख़ रक़म की है। धामी हुकूमत ने यूसीसी पर क़ानून पास करने के लिए असेंबली का ख़ुसूसी इजलास बुलाया था। यूसीसी शादी, तलाक़, विरासत, गोद लेने और दीगर मुआमलात से मुताल्लिक़ तमाम मज़हबी कम्यूनिटीज़ के लिए मुशतर्का (साझा) क़वानीन पर मुश्तमिल है। इस मुसव्वदे की तैयारी के लिए पाँच रुकनी कमेटी तशकील दी गई थी।    रिटायर्ड जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की कयादत में कमेटी ने गुजिश्ता जुमा को वज़ीर-ए-आला पुष्कर सिंह धामी को अपनी रिपोर्ट पेश की थी जिसकी बुनियाद पर असेंबली से पास होने के बाद अब ये क़ानून बन गया है। सीएम धामी ने असेंबली में कहा कि ये कोई आम बिल नहीं है बल्कि हिन्दोस्तान के इत्तिहाद का फ़ार्मूला है। उन्होंने कहा कि जिस तसव्वुर के साथ हमारे आईन के मुअम्मारों (संविधान निर्माता) ने हमारा आईन बनाया था, उसे देव भूमी उत्तराखंड से ज़मीन पर लागू किया जाएगा। उन्होंने इसे तारीख़ी बिल क़रार दिया। उन्होंने कहा कि ये दरअसल देव भूमी उत्तराखंड की ख़ुशक़िसमती है कि उसे ये मौक़ा मिला है।

अपोजिशन ने की नारेबाजी, सदन दो बजे तक मुल्तवी

    असेंबली में बिल पेश करने के दौरान अपोजिशन ने नारेबाजी की जिसके चलते ऐवान की कार्रवाई दो बजे तक मुल्तवी करनी पड़ी। बिल इतवार को काबीना (कैबिनेट) ने मंज़ूर किया था। वज़ीर-ए-आला पुष्कर सिंह धामी पहले ही इस बारे में हुकूमत का मौक़िफ़ वाजेह कर चुके हैं। अपोजिशन लीडर यशपाल आर्या ने कहा कि हम बिल के ख़िलाफ़ नहीं हैं। ऐवान का नज़म-ओ-नसक़ (सदन की प्रक्रिया) क़वानीन (नियमों) के तहत होता है, लेकिन बीजेपी उसे मुसलसल नज़रअंदाज कर रही है और एलएलए की आवाज़ को दबाना चाहती है। वकफ़ा-ए-सवालात (प्रश्न काल) के दौरान ऐवान में अपने ख़्यालात का इज़हार करना एमएलए का हक़ है। साबिक़ वज़ीर-ए-आला और कांग्रेस लीडर हरीश रावत ने कहा कि बिल को लेकर क़वाइद पर अमल नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि ड्राफ़्ट कापी और इस पर फ़ौरी बहस होनी चाहिए थी। मर्कज़ी हुकूमत (केंद्र सरकार) उत्तराखंड जैसी हस्सास (संवेदनशील) रियासत को अलामती तौर पर इस्तिमाल कर रही है। अगर वो यूसीसी लाना चाहते हैं, तो उसे मर्कज़ी हुकूमत को लाना चाहीए था। 
    दोपहर दो बजे के बाद जब ऐवान की कार्रवाई दोबारा शुरू हुई, माहिर कमेटी के रुक्न को भी ऐवान में बुलाया गया था ताकि ऐवान को क़ानून की तकनीकी और पेचीदगियों को समझने में मदद सके। बिल से मुताल्लिक़ मुसव्वदा कमेटी की रिपोर्ट कुल 780 सफ़हात पर मुश्तमिल है जिसमें 2 लाख 33 हज़ार लोगों ने अपनी राय दी है। इसे तैयार करने वाली कमेटी ने कुल 72 मीटिंगें की। इत्तिलाआत के मुताबिक़ बिल में 400 से ज़ाइद हिस्से हैं। इसी तरह का बिल ख़वातीन के हुक़ूक़ पर मर्कूज़ (केंद्रित) है। 

क्या है बिल में

    इसमें तादाद-ए-अजदवाज (बहु विवाह) पर पाबंदी लगाने की तजवीज़ है। लड़कीयों की शादी की उम्र 18 साल से बढ़ाने की तजवीज़ है। लिव इन रिलेशनशिप के लिए रजिस्ट्रेशन को लाज़िमी क़रार दिया गया है। क़ानूनी माहिरीन का दावा है कि ऐसे रिश्तों के रजिस्ट्रेशन से मर्द और औरत दोनों को फ़ायदा होगा। बिल में लड़कियों को लड़कों के बराबर विरासत में हुक़ूक़ देने की तजवीज़ है। अब तक कई मज़ाहिब के पर्सनल लॉज़ में लड़कों और लड़कियों को समान हुक़ूक़ हासिल नहीं हैं। उत्तराखंड के 4 फ़ीसद क़बाइल को क़ानून से दूर रखने का इंतेजाम किया गया है। आबादी पर क़ाबू पाने के इक़दामात और शैडूल ट्राइब को मुसव्वदे में शामिल नहीं किया गया है। बिल में शादी की रजिस्ट्रेशन को लाज़िमी क़रार देने की तजवीज़ दी गई है। इसके अलावा शादी रजिस्टर ना होने पर सरकारी सहूलयात ना देने की तजवीज़ भी दी गई है। बिल में बच्चों को गोद लेने के अमल को आसान बनाने की तजवीज़ दी गई है। मुस्लिम ख़वातीन को भी बच्चे गोद लेने का हक़ देने की तजवीज़ है। बिल में मुस्लिम कम्यूनिटी के अंदर हलाल और रिवाज पर पाबंदी लगाने की तजवीज़ दी गई है। इस तर्ज़-ए-अमल की काफ़ी मुख़ालिफ़त हुई है। अगर बीवी शौहर की मौत के बाद दुबारा शादी करती है, तो वालदैन भी मुआवज़े के हक़दार होंगे, ये तजवीज़ भी बिल में रखी गई है। बीवी की मौत की सूरत में उसके वालदैन की ज़िम्मेदारी शौहर पर होगी। इसी बिल में मियां-बीवी के दरमयान झगड़े की सूरत में बच्चों की तहवील दादा-दादी को देने की तजवीज़ भी पेश की गई है।

ये हिंदू कोड के अलावा कुछ नहीं, आईन की ख़िलाफ़वरज़ी : ओवैसी

नई दिल्ली : बिल को लेकर सख़्त आवाज़ें बुलंद हो रही हैं । मुस्लमानों और दीगर सेक्यूलर तबक़ात की जानिब से इस पर संगीन एतराज़ात सामने आ रहे हैं। ऑल इंडिया मजलिस इत्तिहाद अल मुस्लिमीन के सदर और रुकन पार्लियामेंट असद उद्दीन उवैसी ने सोशल मीडिया पर बिल को लेकर एतराज़ किया है। अपनी पोस्ट में उन्होंने यूसीसी को हिंदू बिल क़रार देते हुए कहा है कि उत्तराखंड यूसीसी बिल हिंदू कोड के अलावा कुछ नहीं है। बिल में हिंदू और ग़ैर मुनक़सिम (अविभाजित) ख़ानदानों को छुआ तक नहीं गया है। उन्होंने कहा कि अगर आप जा नशीनी और विरासत का यकसाँ क़ानून चाहते हैं, तो हिंदूओं को इससे बाहर क्यों रखा है, अगर ये क़ानून आपकी रियासत की अक्सरीयती आबादी पर लागू नहीं होता है तो फिर ये यकसाँ कैसे हुआ। उन्होंने कहा कि बिल में एक से ज़ाइद शादी, हलाला और लिव इन रिलेशनशिप पर इस बिल में बात की गई है लेकिन कोई ये नहीं पूछ रहा है कि बिल से हिंदू ग़ैर मुनक़सिम ख़ानदान को अलाहदा क्यों रखा गया है। बिल से आदिवासियों को भी अलग रखा गया है। उन्होनें सवाल किया कि किसी एक तबक़े को क़ानून से अलाहदा रखने से वो क़ानून सबके लिए समान कैसे हो सकता है। इसके बाद बुनियादी हुक़ूक़ का सवाल है। मुझे अपने मज़हब और सक़ाफ़्त (संस्कृति) पर अमल करने का हक़ है, जबकि ये बिल मुझे एक मुख़्तलिफ़ मज़हब और सक़ाफ़्त की पैरवी करने पर मजबूर करता है। इस्लाम में विरासत और शादी मज़हबी अमल का हिस्सा हैं। उनसे रोक कर हमें दीगर क़ानून की पैरवी पर मजबूर करना है। इसके अलावा आर्टीकल 25 और 29 की खुली ख़िलाफ़वरज़ी है। 
    असद उद्दीन उवैसी का कहना है कि यूसीसी का आईनी मसला भी है। सुप्रीमकोर्ट में मोदी हुकूमत ने कहा था कि यूसीसी को सिर्फ पार्लियामेंट ही नाफ़िज़ (लागू) कर सकती है। बिल मर्कज़ी क़वानीन जैसे शरीयत एक्ट, हिंदू मैरिज एक्ट, एसएमए, आईएसए वग़ैरा से मुतसादिम है। इसके अलावा ये सदारती मंज़ूरी के बग़ैर सब के लिए क़ानून कैसे बन सकता है। 


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