✒ जिनेवा : आईएनएस, इंडियाअक़वाम-ए-मुत्तहिदा (संयुक्त राष्ट्र) के मुताबिक गाजा में जारी इसराईली जंग के दौरान बे-घर होने वाले फ़लस्तीनीयों के पाँच साल से कम उमर बच्चों की 10 फ़ीसद तादाद ख़ुराक की कमी का शिकार हैं। ये खुलासा अक़वाम-ए-मुत्तहिदा की जानिब से मुरत्तिब इबतिदाई (शुरुआती) आदाद-ओ-शुमार (आंकड़ों) से हुआ है।
रिपोर्ट के मुताबिक़ गाजा के बे-घर लोगों, जिनकी तादाद इस वक़्त 23 लाख के लगभग है, जो अपने बच्चों के साथ बे-सर-ओ-सामान घर छोड़ने पर मजबूर हुए हैं, को मुनासिब ख़ुराक नहीं मिल रही है। नतीजतन गाजा की बड़ी तादाद भूख का शिकार है, ख़ुसूसन शुमाली (उत्तरी) और वसती (मध्य) गाजा के लोग इसका ज़्यादा शिकार है। दोनों इलाक़ों में इसराईल ने ख़ुराक समेत इंतिहाई बुनियादी ज़रूरीयात के लिए इमदादी कार्यवाईयों को भी रोक रखा है। अक़वाम-ए-मुत्तहिदा के इन्सानी बुनियादों पर काम करने वाले इदारे के आदाद-ओ-शुमार के मुताबिक़ 9 इशारीया (दशमलव) 6 फ़ीसद फ़लस्तीनी बच्चे ख़ुराक की कमी का शिकार हैं। इन बच्चों की उम्र शीरख़वारगी (दूध पीते बच्चों) से लेकर 5 साल तक हैं। आंकड़ों के मुताबिक़ ये तादाद 7 अक्तूबर से जारी जंग से पहले के मुक़ाबले में 12 गुना ज़्यादा है। शुमाली गाजा में बच्चों के भूखज़दा होने की तादाद 16 इशारीया 2 फ़ीसद है। गोया हर छः में से एक बच्चा भूखा है। भूख का यह आलम है कि कि गाजा पहुंचने वाले इमदादी ट्रकों पर फलीस्तीनी टूट पड़ते हैं, इसके बावजूद उन्हें और उनके बच्चों को पेट भर खाना नहीं मिल रहा है। पीने के लिए भी उन्हें डेढ़ से दो लीटर पानी ही मिल रहा है।
अक़वाम-ए-मुत्तहिदा के मुताबिक़ ख़ुराक से महरूम ग़ज़ा के रहने वाले फ़लस्तीनी इन दिनों घास खाने पर भी मजबूर हो रहे हैं। इस्लामिक रीलीफ़ चैरिटी के एक रुक्न (सदस्य) ने बताया कि वे और उनके बच्चे पिछले कई दिनों से सब्ज़ी या फल नहीं खाए हैं। ऐसा कई बार हुआ है कि अक़वाम-ए-मुत्तहिदा की तरफ़ से आने वाले इमदादी ट्रकों से इमदाद पाने वाले लोगों को हुसूल इमदाद से पहले ही हलाक कर दिया गया हो।
इंटरनेशनल फेडरेशन आफ़ जर्नलिस्ट्स की अपील पर ग़ज़ा में सहाफियों के क़त्ल-ए-आम पर रोक
ब्रूसेल्स : इंटरनेशन फेडरेशन आफ़ जर्नलिस्ट्स की अपील पर योरपी दार-उल-हकूमत ब्रूसेल्स में इसराईल के हाथों गाजा में सहाफियों के क़त्ल-ए-आम पर एहतिजाज और महलूक 99 सहाफियों और मीडीया वर्करज़ को ख़िराज-ए-अक़ीदत पेश करने के लिए शमां रोशन की गईं। इस मौक़ा पर योरपी काउंसिल की इमारत के बाहर आईएफ़जे ग्लोबल, नेशनल यूनीयन आफ़ जर्नलिस्ट्स की बेलजियम ब्रांच और फ़लस्तीनी जर्नलिस्ट्स सिंडीकेट के ओहदेदारान ने 'इसराईल, ग़ज़ा में सहाफियों को कत्ल करना बंद करो' के एक बड़े बैनर के साथ एहतिजाज किया। इस दौरान वहां अलामती तौर पर एक ताबूत रखा था जिसमें प्रेस का ख़ून भरा लाशा रखा था। मारे जाने वाले सहाफियों को ख़िराज-ए-अक़ीदत पेश करने उस अलामती ताबूत के इर्द-गिर्द शमएँ रोशन की गईं।इस मौक़ा पर ख़िताब करते हुए ओहदेदारों ने योरपी रहनुमाओं से मुतालिबा किया कि ग़ज़ा में फ़ौरी तौर पर जंग बंदी की जाए। उन्होंने कहा कि योरपी यूनीयन समेत तमाम बैन-उल-अक़वामी कूव्वतें इस क़त्ल-ए-आम को फ़ौरी तौर पर रोकने के लिए अपना किरदार अदा करें। इन रहनुमाओं ने इसराईल को याद दिलाया कि बैन-उल-अक़वामी क़वानीन के तहत सहाफियों को मारना जंगी जुर्म है। सहाफ़ी सिर्फ हालात-ओ-वाक़ियात की निशानदेही करते हैं। इन रहनुमाओं ने इसराईल से मज़ीद मुतालिबा किया कि वो बैन-उल-अक़वामी सहाफियों को ग़ज़ा जाने की इजाज़त दे और इन्सानी मसाइब को कम करने के लिए फ़ौरी तौर पर बैन-उल-अक़वामी इमदाद की आमद से पाबंदीयां उठाए। उन्होंने इस बात की तरफ़ ज़ोर देकर मुतवज्जा किया कि दुनिया फ़ौरी तौर पर मुदाख़िलत करे ताकि इस बात को यक़ीनी बनाया जा सके कि बैन-उल-अक़वामी क़वानीन की पासदारी करते हुए ग़ज़ा में बाक़ी बच जाने वाले सहाफियों और आम शहरीयों की जिंदगी महफ़ूज़ है।