नई तहरीक : रायपुर
महिलाओं के प्रवेश पर इस्लामी कानून क्या है? दरगाह या कब्रिस्तान में महिलाओं के जाने के अधिकार पर इस्लामिक विद्वानों के बीच स्पष्ट मतभेद है। वहीं मस्जिद के अंदर नमाज अदा करने के महिलाओं के अधिकार पर असहमति कम है यानी अधिकांशत: विद्वान सहमत हं।
अधिकांश इस्लामी विद्वान इस बात से सहमत हैं कि नमाज घर पर पढ़ी जा सकती है लेकिन समूह में ही नमाज को वरीयता है, इसलिए मस्जिद जाने का महत्व है। अधिकांश इस बात से भी सहमत हैं कि बच्चों के पालन-पोषण और अन्य घरेलू जिम्मेदारियों को ध्यान में रखते हुए महिलाओं को छूट दी गई है, मस्जिद में जाने की मनाही नहीं है। वास्तव में, कुरान कहीं भी महिलाओं को नमाज के लिए मस्जिदों में जाने से मना नहीं करता है। उदाहरण के लिए, सूरह तौबा की आयत 71 में कहा गया है, ‘ईमान वाले पुरुष और महिलाएं एक-दूसरे के पूरक और सहायक हैं। वे (सहयोग) जो कुछ भी अच्छा है, उसे बढ़ावा देते हैं और जो कुछ भी बुरा है उसका विरोध करते हैं, नमाज स्थापित करें और दान दें, और आज्ञा मानें।’
कुरान जहाँ भी नमाज अदा करने की बात करता है, वह लैंगिक तटस्थता की बात करता है। पांचों वक़्त की दैनिक नमाज से पहले, एक प्रार्थना कॉल या अजान का उद्घोष मुअज्जिन द्वारा किया जाता है। अजान प्रार्थना के लिए पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए एक सामान्य निमंत्रण है, जो लोगों को याद दिलाता है, प्रार्थना के लिए आओ, सफलता के लिए आओ। यहाँ पर बिना स्त्री पुरुष के भेदभाव के अजान दी जाती है।
जब मुसलमान हज और उमरा के लिए मक्का और मदीना जाते हैं तो पुरुष और महिलाएं दोनों मक्का में हरम शरीफ और मदीना में मस्जिद-ए-नबवी में नमाज अदा करते हैं। दोनों जगहों पर पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग हॉल बनाए गए हैं। साथ ही पूरे पश्चिम एशिया में नमाज के लिए मस्जिद में महिलाओं के आने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। अमेरिका और कनाडा में भी महिलाएं नमाज के लिए मस्जिदों में जाती हैं, और रमजान में विशेष तरावीह की नमाज और कुरानख्वानी के लिए भी वहाँ इकट्ठा होती हैं।