‘इसरा’ के जेर-ए-एहतिमाम नुमाइश में पहली बार 150 साल पुराना गिलाफ-ए-काअबा भी
रियाद : आईएनएस, इंडिया
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शाह अब्दुल अजीज मर्कज बराए आलमी सकाफ़्त (राष्टÑीय संस्कृति) में इस्लामी फन के 15 शहपारे की नुमाईश की गई है। ये शहपारे (उत्कृष्ठ कलाकृति) और आर्ट वर्क जदीद (आधुनिक) असरी (समकालीन) और इस्लामी फन का संयोजन हैं।
नुमाइश के मौका पर मीडीया से बात करते हुए आलमी सकाफ़्त से मुताल्लिक सऊदी इदारे ‘इसरा’ अजाइब घर के सरबराह फरह अब्बू शलया ने कहा, कोई भी नुमाइश शऊर के एक सफर की हैसियत रखती है। उन्होंने आगे कहा कि ये सिर्फ सऊदी अरब ही नहीं, पूरी दुनिया में इस नौईयत (नेचर) का पहला तजुर्बा और पहली नुमाइश है। उन्होंने मजीद कहा कि इसरा की ये नुमाइश फन के दिलदादा और अहल-ए-जौक की बुनियाद पर तर्तीब पाई है। यहां रखे गए फनपारों में डेढ़ सौ साल पुराने गिलाफ-ए-काअबा की मौजूदगी भी शायकीन के लिए भरपूर तवज्जा का मर्कज है।
अब्बू शलया के मुताबिक 150 साल पुराना गिलाफ-ए- काअबा 2022 में इसरा की रसाई में आया है। यहां पहली बार अहल-ए-नजर उस नादिर गिलाफ-ए-काअबा की जयारत कर रहे हैं। वाजिह रहे कि गिलाफ-ए- काअबा स्याह रेशम से तैयार किया गया है जिसमें सुर्ख़ और सब्ज-रंग के रेशम का भी इस्तिमाल किया गया है। इसी तरह उसे चांदी के चमकते तारों से की गई कढ़ाई से मुजय्यन (सजाया) गया है जो सफेद कॉटन के ऊपर चस्पा है। नुमाइश में मौजूद शहपारों में से सबसे नुमायां हैसियत का हामिल है और शायकीन के लिए मरकज-ए-निगाह बना हुआ है। एक शहपारा अल्लाह के तआरुफ-ओ-तारीफ के अंदाज में है। ये काम नुमायां तौर पर इस्लामी फनून के अंदाज और आज के फन का एक खूबसूरत मजहर है। इसके अलावा कदीमी असलह (पुराने हथियार) से मुताल्लिक नवादिरात (पुरावशेष) भी इसरा की इस नुमाइश का हिस्सा हैं। इसमें कदीमतर असलहे (प्राचीन) शाहकार उस समय की नुमाइंदगी कर रहे हैं। जद्दा में ये नुमाइश 23 जनवरी से शुरू हुई है और माह अप्रैल तक जारी रहेगी ताकि दूर-ओ-नजदीक के अहल-ए-जौक उसे देख सकें। नुमाइश का मकसद अवाम में अपनी इस्लामी तहजीब से राबते को मुस्तहकम रखना है।
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