नई दिल्ली : दिल्ली की एक अदालत ने इस्लामिक स्टडीज नामी किताब की इशाअत पर दायर कॉपीराइट की खिलाफवरजी का मुकद्दमा खारिज कर दिया है। इसके साथ अदालत ने दरखास्त गुजार पर 50 हजार रुपय का जुर्माना भी आइद करते हुए कहा कि मुकद्दस किताबों कुरआन-ओ-हदीस या दीगर इस्लामी किताबों में लिखी गई तालीमात पर किसी का कॉपीराइट नहीं हो सकता।
तीस हजारी कोर्ट के डिस्ट्रिक्ट जज संजीव कुमार अग्रवाल ने कहा कि कुछ मवाद मुकद्दस किताबों कुरआन-ओ-हदीस में दी गई तालीम से मिलता-जुलता होना चाहिए। मजहब इस्लाम से मुताल्लिक दीगर मजहबी किताबों को इस्लाम की तालीम से मुताल्लिक तमाम किताबों में यकसाँ होना चाहिए। मेरी नजर में मुकद्दस किताबों कुरआन-ओ-हदीस या दीगर इस्लामी किताबों में लिखी गई तालीमात पर किसी का हक इशाअत नहीं हो सकता। ये मुकद्दमा शहर के दरियागंज में वाके इस्लामी किताबों के नाशिर और तकसीम कार इस्लामिक बुक सर्विस प्रा. लि. ने दायर किया था, जिसमें दावा किया गया था कि मौलवी की किताबों की एक सीरीज इस्लामी तालीम नामी अदबी तसनीफ के मालिक और मुसन्निफ हैं। अब्दुल अजीज ने बिना शर्त अपना कॉपीराइट कंपनी के हवाले कर दिया था और अपने काम का मखतूता (हस्तलिपि) भी हवाले कर दिया था। मुद्दई का मुकद्दमा था कि जमात अव्वल से जमात हशतुम (आठवीं) तक की किताब 'मुताला इस्लाम' 1992 में पब्लिशर की तरफ से मुसलसल शाइआ हो रही है। ये दिल्ली के साथ-साथ बैरून-ए-मुल्क भी बड़े पैमाने पर फरोखत होती है। मुद्दई कंपनी ने इल्जाम लगाया कि मई 2018 में ये इन्किशाफ (पता चलना) हुआ कि मुद्दाअलैह (प्रतिवादी) अब्दुल रऊफ ने मौलवी अब्दुल अजीज के अदबी काम को इस्लामिक स्टडीज ग्रेड 1 से ग्रेड 5 के नाम और अंदाज में शाइआ करना शुरू किया था। इस तरह मुद्दई कंपनी का दावा है कि मुद्दाअलैह ने मौलवी अब्दुल अजीज की मजकूरा (उपरोक्त) किताबों और अदबी कामों के मुंदरजात को गलत तरीके से पेश किया है। उसने ये भी दावा किया कि मुद्दई का तिजारती नाम और कॉपीराइट इन्ही किताबों और इसके मशमूलात के सिलसिले में गै़रकानूनी तौर पर इस्तिमाल किए गए, इस तरह मुद्दई की कंपनी के कॉपीराइट की खिलाफवरजी हुई।