अल उलाला गवर्नरी ने उलाला ट्रेन के डिजाइन के मुआहिदे पर दस्तखत किए
तारीखी विरसे (ऐतिहासिक धरोहर) के तारीखी मुकामात और उलाला के अहम सयाहती (पर्यटन) मुकामात से गुजरेगी ट्रेन
रियाद : सऊदी अरब की अल उलाला गवर्नरी के शाही कमीशन ने उलाना में जामा तरक़्की (व्यापक विकास) की कामयाबी को बढ़ाने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट के शोबे में एक रहनुमा ग्रुप के साथ उलाला ट्रेन के डिजाइन के मुआहिदे पर दस्तखत किए हैं। ये मुआहिदा उलाला के इलाके को मुतअद्दिद स्टेशनों और ट्रैक्स के जरीये मुंसलिक (जोड़ेगा) करेगा। इसके अलावा ट्रेन तारीखी विरसे (ऐतिहासिक धरोहर) के तारीखी मुकामात और उलाला के अहम सयाहती (पर्यटन) मुकामात से गुजरेगी। उलाला ट्रेन के डिजाइन के मुआहिदे का ऐलान आइन्दा दो दहाईयों के लिए ममलकत में तहकीक, तरक़्की और इखतिरा (अविष्कार) के लिए वली अहद बिन सलमान की उमंगों के मुताबिक है, जो कई अहम तर्जीहात (प्राथमिकता) पर मबनी (आधारित) हैं। उनमें माहौलियाती पाएदारी, बुनियादी जरूरीयात, मुस्तकबिल की मईशतें शामिल हैं। उल्लाला का विजन अपने प्रोग्रामों, इकदामात और मन्सूबों के जरीये आलमी सतह पर मुसाबकत (प्रतिस्पर्धा) और कौमी कियादत (राष्टÑीय नेतृत्व) को फरोग देगा।
उलाला ट्रेन का मन्सूबा वक़्त के जरीये सफर स्कीम के बुनियादी मन्सूबों में से एक है और उलाला गवर्नरी के तरक़्कीयाती प्रोग्राम (विकास कार्याें) के अहम सतूनों में से एक है। उसे फनून (कला) और विरसे (विरासत) के लिए एक मारूफ आलमी मंजिÞल में तबदील करते हुए सकाफ़्त (संस्कृति) और फित्रत (प्रकृति) के शोबों में ममलकत के विजÞन 2030 के एहदाफ के हुसूल का जरीया बनाना है। उलाला के रॉयल कमीशन का मकसद ट्रेन प्रोजेक्ट के जरीये नकल-ओ-हरकत में पाएदारी को बेहतर बनाना है जिसमें सड़कों पर भीड़ और शोर की सतह कम करना शामिल है। ये ट्रेन मराकज, महलों, सकाफ़्ती मुकामात (पर्यटन स्थलों) और सय्याहों (पर्यटकों) को जोड़ने की भी बाइस बनेगी। ट्रेन मन्सूबा उलाला में सयाहत और कुदरती माहौल तक रसाई का जरीया साबित होगी।
दुनिया के शोहरतयाफ्ता म्यूजिक तक जाएगी ट्रेन
उलाला ट्रेन ट्रैक की लंबाई 50 किलोमीटर है। ये ट्रेन जुनूब (दक्षिण) में उलाला बैन-उल-अकवामी हवाई अड्डे से शुमाल (उत्तर) में अल-हिजर शहर तक चलेगी। ट्रेन उन रूटस पर चलाई जाएगी जो ना सिर्फ खित्ते बल्कि पूरी दुनिया का बैन-उल-अकवामी शोहरत याफता (प्रसिद्ध) खुला म्यूजीयम कहलाता है। रॉयल कमीशन बराए उलाला में आॅप्रेशनज सेक्टर के सरबराह बिन अब्दुल अजीज करदी ने कहा कि उलाला ट्रेन पायदार और जामा तरक़्की हासिल करने के फ्रेमवर्क में एक अहम कदम की नुमाइंदगी करती है। उन्होंने इस बात का जिÞक्र करते हुए कि जदीद पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन रॉयल कमीशन के मन्सूबों के अहम सतूनों में से एक ुइस ट्रेन का मकसद उलाला को आलमी सयाहत (विश्व पर्यटन) की मंजिÞल बनाना और सय्याहों को इस तरफ रागिब (आकर्षित) करना है। करदी ने मुआहिदे पर दस्तखत के बाद एक बयान में मजीद कहा कि ट्रेन की पटरियाँ अवामी नकल-ओ-हमल के एक मरबूत नैटवर्क का हिस्सा होंगी जिसका माहौल पर कम असर पड़ेगा। इसे उलाला में मुख़्तलिफ मुकामात के दरमयान हर एक के लिए इस्तिमाल करना आसान है। हमारा मकसद उलाला के मुनफरद कुदरती माहौल में सय्याहों और खिदमत का तजुर्बा पैदा करना है। तवक़्को है कि पहले मराहिल की डिजाइन 2023 में मुकम्मल हो जाएगी, क्योंकि ट्रेन के मंसूबे को कई पटरियों में तकसीम किया गया है।
क्यों मशहूर है अल उला शहर
शहर अल उला सऊदी अरब के मदीना शहर के शुमाल मगिरब (उत्तर पश्चिम) में वाके (स्थित) है जो अपने पुराने खंण्डहरो के लिए जाना जाता है। मोअर्रिख (इतिहासकार) इसे 2000 साल से भी ज्यादा पुराना मानते हैं। पहले यह शहर शुमाल अरेबियाई राजवंश लिहयान की दारुल हुकुमत (राजधानी) था। यह पूरी तरह रेगिस्तान से घिरा हुआ है और पत्थरों का एक खंडहर सा नजर आता है। हरान शिलालेख के मुताबिक बेबिलोनिया का आखिरी राजा नाबोनिडस ने 552 ई. पू. तायमा, देदान (पुराना लिहयान) और यशरिब (मदीना शरीफ) को जीतने के लिए एक फौजी मुहिम की कयादत (नेतृत्व) किया था। कई सौ साल तक नाबातियन का शासन चला, जब तक कि रोम ने उसकी दारुल हुकूमत पेट्रा पर हमला नहीं कर दिया। उसके बाद नाबातियन हेग्रा चला गया। कहा जाता है कि यहां 630 में टाबुक की लड़ाई में बीजान्टिन फौज को एकजुट करने के लिए पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने कयादत की थी। इसके बाद 13वीं सदी में अल उला एक अहम मर्कज (प्रमुख केंद्र) बन गया, जिसके बाद इसकी पुरानी इमारतों की जगह नया शहर बसाने के लिए दोबारा इस्तेमाल किया जाने लगा और इस तरह इसके पास एक नया शहर बसा दिया गया।
टूटे- फूटे मकानों वाले सऊदी अरब के इस अल-उला शहर को मश्रिक वस्ती (मध्य पूर्व) के भुतहा कस्बे के तौर पर जाना जाता है, जो अरब के पुराने शहरों में से एक है। 1983 में इस कस्बे में रहने वाले आखिरी परिवार ने भी इसे छोड़ दिया था। इसके बाद से तकरीब 30 साल से भी ज्यादा समय से ये शहर वीरान पड़ा है।