मुख़्तलिफ रियासतों के ऐलान के दरमियान आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड का रिवायती बयां
नई दिल्ली : यूनीफार्म सिविल कोड की कोशिशों के दरमियान आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने वही रिवायती और रटारटाया बयान जारी किया है। एक तरफ यूपी, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश यूनीफार्म सिविल कोड को नाफिज करने की कोशिश कर रहे हैं, वजीर-ए-दाखिला ने भी हुकूमत के अगले कदम का इशारा कर दिया है, दूसरी तरफ मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड जिसका बुनियादी मकसद पर्सनल ला की हिफाजत है, वही रिवायती बयान जारी कर रहा है, जबकि सब को मालूम है कि ऐसे बयान का कितना असर होगा। बोर्ड ने अपने बयान में ये भी नहीं बताया कि मीटिंग और गुफ़्तन, नशिस्तन और बर्खास्तन के अलावा उसके पास और कोई नतीजाखेज इकदाम की तैयारी भी है। बोर्ड ने तलाक को भी कोर्ट में चैलेंज किया है, लेकिन तीन साल से इस पर खामोशी है, उसने जल्द समाअत की दरखास्त तक नहीं की है। बोर्ड ने ये भी नहीं बताया कि अगर यूनीफार्म सिविल कोड तमाम अकलीयतों और कबाइली तबकात के खिलाफ है तो उसने इन तबकात को साथ लेकर जद्द-ओ-जहद के लिए क्या प्लान तैयार किया है।
याद रहे कि जब यूनीफार्म सिविल कोड नाफिज होगा, तो मुस्लिम पर्सनल ला या किसी पर्सनल ला की हैसियत नहीं रहेगी तब मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की जरूरत भी बाकी नहीं रहेगी, ऐसे वक़्त में जबकि खुद बोर्ड के वजूद का सवाल है, बोर्ड का इतना खामोश रहना और रिवायती बयानभर जारी करना, खामोशी से मीटिंग करके उठ जाना, सवाल पैदा करता है कि मुस्लिम कियादत से क्या उम्मीद रखी जा सकती है। यही नहीं, पूरे मुल्क में मुस्लमानों में जो बे इतमीनानी है, ऐसे वक़्त में मजबूत रहनुमाई और कयादत की जरूरत थी, उस वक़्त भी बोर्ड समेत तमाम तंजीमें और कयादत खामोश तमाशाई है।
आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के जनरल सेक्रेटरी मौलाना खालिद सैफ उल्लाह रहमानी ने अपने रिवायती बयान में कहा है कि दस्तूर हिंद ने मुल्क में बसने वाले हर शहरी को अपने मजहब के मुताबिक जिंदगी गुजारने की इजाजत दी है, और उसको बुनियादी हुकूक में शामिल रखा गया है, उसी हक के तहत अकल्लीयतों और कबाइली तबकात के लिए उनकी मर्ज़ी और रवायात के मुताबिक अलग अलग पर्सनल ला रखे गए हैं, जिससे मुल्क को कोई नुक़्सान नहीं होता। बल्कि आपसी इत्तिहाद और अक्सरीयत-ओ-अकल्लीयत के दरमयान बाहमी एतिमाद को कायम रखने में मदद मिलती है, माजी में कई कबाइली बगावतों को खत्म करने के लिए उनके इस मुतालिबा को कबूल किया गया है कि वो समाजी जिंदगी में अपने यकीन और अपनी रवायात पर अमल कर सकेंगे, अब उत्तराखंड या उत्तरप्रदेश हुकूमत या मर्कजी हुकूमत की तरफ से कॉमन सिवल कोड का राग अलापना सिर्फ़ बेवकत की रागनी है और हर शख़्स जानता है कि इसका मकसद बढ़ती महंगाई, गिरती मईशत और रोज-अफ़्जूँ बेरोजगारी जैसे मसाइल से तवज्जा हटाना और नफरत के एजंडे को फरोग देना है, ये अकल्लीयत और दस्तूर मुखालिफ कदम है, मुस्लमानों के लिए ये हरगिज काबिल-ए-कबूल नहीं है। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड उसकी सख़्त मुजम्मत करता है और हुकूमत से अपील करता है कि वो ऐसे इकदामात से गुरेज करे।