नई तहरीक : भिलाई
रमजानुल मुबारक में इबादत के साथ कुरआनी अहकाम पर चलने और अमल करने की नसीहतें भी दी जा रही है। मर्कजी मस्जिद कैम्प-2 के मोहतमिम हाफिज अमान ने ज़कात की अहमियत बयान करते हुए बताया कि अल्लाह ताअला ने कुरआन-ए-करीम में नमाज कायम करने के साथ अपने माल पर जकात निकालने हुक्म भी दिया है। ज़कात के लिए साहिबे निसाब होना जरुरी है। यानि साल भर में इतना माल, जो अपनी असली जरूरत से ज्यादा हो। अपनी जरूरत की चीजें पहनने के कपडे, खुद का रहने का घर और खुद की सवारी गाडी व रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीजों पर जकात वाजिब नही है।
इसके अलावा जेवर, फसल, जानवरों और जायदाद पर जकात वाजिब है। जो माल हम खरीद फरोख्त करते हैं, उस पर अंदाज से जकात निकालना काफी नहीं है बल्कि पूरा हिसाब बनाकर निकालना चाहिए। उन्होंने कहा कि माहे रमजान में अपनी इबादतों के साथ साहिबे निसाब को जकात की अदायगी का भी पूरा ध्यान रखना चाहिए।
क्या है जकात के असल मायने
हाफिज अमान ने कहा कि गरीब, यतीम, बेवा, मिसकीन, जरूरतमंद, कर्ज में डूबे मआशरे के ऐसे लोगों को बेहतर जिंदगी गुजारने के लिए अल्लाह का हुक्म है कि मआशरे के मालदार लोग अपनी जमा पूंजी सोना चांदी का और सलाना फसल और जानवरों की कीमत की जकात निकाल कर उन तक पहुचाकर बेहतर मआशरे की तामीर करें। यह भी अल्लाह रब्बुल इज्जत को राजी करने का एक जरिया है। उन्होंने कहा कि जो लोग अल्लाह और कयामत पर ईमान लाए, नबी-ए-अकरम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहिस्सलाम की शरियत पर ईमान लाए, उन्हें चाहिए कि उलमा-ए-दीन से रबता कायम कर जकात मसला मालूम कर बेहतर तरीके से जकात निकालें।