कर्नाटक हाईकोर्ट ने स्कूल-कालेज में हिजाब पहनकर आने पर पाबंदी आयद कर दी है। इस दलील के साथ कि हिजाब इस्लाम का जरूरी जुज (हिस्सा) नहीं है। कोर्ट का फैसला आया और बात खत्म। इस फैसले ने एक तबके को खुश होने का एक और मौका अता कर दिया और दूसरे तबके को (शायद) थोड़ा सा अफसोस में डाल दिया।
यह पहला मौका नहीं है, जब शरीयत पर उंगली उठी हो, इससे पहले भी शरीयत को लेकर नागवार फैसले आए हैं और बातें होती रही है, हमारा रद्दे अमल हर बार ऐसा ही रहा है। जो हो रहा है, उससे हमें क्या..., की तर्ज पर हर बार की तरह इस बार भी हम सिर्फ कंधे उचका कर रह गए। कहीं कोई अफसोस नहीं, एहतेजाज की कहीं कोई कोशिश नहीं।
तो क्या ये मान लिया जाए कि हिजाब वाकई इस्लाम का जुज नहीं है।
दरअसल अगर आप लफ्ज हिजाब, पर्दा या बुर्का कुरआन में तलाश करेंगे तो ये अलफाज आपको कुरआन में नहीं मिलेंगे। लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि हिजाब, पर्दा या बुर्का का हुक्म नहीं है। या इनका इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है। कुरआन में जगह-जगह पर्दे का हुक्म है। हदीश शरीफ में भी औरतों को पर्दे की नसीहत की गई है। अपनी जीनत की आराईश से बचने के लिए औरत का सिर पर चादर ओढ़ना, अपना जिस्म और चेहरे को ढांपना, उसी नसीहत की पैरवी करना है। पर्दे की अलग-अलग शक्ल हो सकती है, लेकिन मकसद सिर्फ एक, अहकामे खुदावंदी है। तो यह इस्लामी अहकाम से बाहर का कैसे हो गया।
जरा गौर करें
पारा 18 सूरह नूर में है : (तर्जुमा)
‘मुसलमान औरतों से कहो कि वो भी अपनी निगाहें नीचीं रखें और अपनी अस्मत में फर्क न आने दें और अपनी जीनत को जाहिर न करें सिवाए इसके जो जाहिर है और अपने गिरेबां पर अपनी ओढ़नियां डाले रहें और अपनी आराईश को किसी के सामने जाहिर न करें सिवाए अपने खाविंद के या अपने वालिद या अपने खुसर के, या अपने लड़कों के या अपने खाविंद के लड़कों के या अपने भाईयों के या अपने भतीजों के या अपने भांजों के या अपने मेल जोल की औरतों के, या गुलामों के या ऐसे नौकर चाकर मर्दो के जो सहूत वाले न हों या ऐसे बच्चों के जो औरतों के पर्दे की बातों से मतलअ नहीं, और इस तरह जोर-जोर से पांव मार कर न चलें कि उनकी पोशिदा जीनत मालूम हो जाए। ऐ मुसलमानों, तुम सब के सब अल्लाह की जनाब में तौबा करो ताकि तुम निजात पाओ।’
मजहब की तशरीह करना मजहब के माहिरीन की जिÞम्मेदारी
अमीर शरीयत ने कहा, मजहबी अहकाम की तशरीह अदालत के दायरे से बाहर
पटना। आईएनएस, इंडिया
अमीर शरीयत बिहार, उड़ीसा और ाारखंड हजरत मौलाना अहमद वली फैसल रहमानी सज्जादा-नशीं खानकाह रहमानी ने हिजाब मसले पर कर्नाटक हाईकोर्ट के हालिया फैसले पर अपने रद्द-ए-अमल का इजहार करते हुए कहा है कि अदालत का कहना कि पर्दा इस्लाम में लाजिÞमी नहीं है, ये सरासर खिलाफ हकीकत है। मजहब की तशरीह करना मजहब के माहिरीन का काम है ना कि अदालत का।
उन्होंने कहा कि अदालत ने लाजिमीयत की तहकीक का इस्तिमाल करते हुए हिजाब की लाजिमीयत को गलत ताबीर किया है। हम लोग तौहीन-ए-अदालत नहीं कर रहे हैं। लेकिन हम ये समझते हैं कि मजहब के अहकाम की तशरीह अदालत के दायरे से बाहर है। मजहबी आजादी को यकीनी बनाना अदालत की जिÞम्मेदारी है, जबकि मजहब की तशरीह का अमल उसको महदूद कर देता है। इन दोनों कामों को करने के नतीजा का लाजिÞमी नुक़्सान ये होगा कि अदालत मजहब की आजादी को मुकम्मल तौर पर यकीनी बनाने में नाकाम रहेगी। अदालत की जानिब से मजहबी अहकाम में लाजिÞमी और गैर लाजिÞमी बातों का तै करना मजहबी आजादी पर कदगन लगाने जैसा है। अदालतें कानूनी एतबार से सेक्यूलर हैं, इसलिए उसे किसी मजहब के कवानीन की तशरीह का काम नहीं करना चाहिए। मजहबी कवानीन की तशरीह का काम इस मजहब के माहिरीन का है। ठीक इसी तरह जैसे भारती आईन की तशरीह की जिÞम्मेदारी सुप्रीमकोर्ट की है। यकतरफा तौर पर हिजाब को दीन का गैर लाजिÞमी हिस्सा बता कर पाबंदी को जायज ठहरा देना, वाजेह तौर पर गलत फैसला है। इसकी वजह से अदलिया से अवाम का एतिमाद उठ जाएगा और किसी मुल्क में अवाम का अदलिया से भरोसा उठ जाना मुल्क के जम्हूरी निजाम के लिए अच्छी अलामत नहीं है।
उन्होंने इस जिÞमन में हुकूमत को मुतवज्जा किया कि स्कूल, कालेज में ऐसा ड्रेस कोड मुतआरिफ किराया जाये जो इलाकाई रवायात और मजहबी शआर की बुनियाद पर तैयार किया गया हो, जिससे हर शहरी मामून-ओ-मुतमइन हो और उसे वो शख़्सी आजादी, आजादी इजहार और राय के इख़्तयारात पर पाबंदी लगाना समझे।
अपनी मालूमात में इजाफा करे मुसलमान
मुल्क के तमाम मुसलानों से उन्होंने का कि मुस्लमानों को चाहिए कि वो इस सिलसिला में कुरआन और हदीस को खुद पढ़ें और हुकूक की आजादी से मुताल्लिक भारती आईन का मुताला करें और अपने इलाका के अवामी नुमाइंदे और इंतिजामीया तक अपनी बात खुल कर पहुंचाएं और अपनी इस्लामी तहजीब-ओ-सकाफ़्त की हिफाजत करें।
हजरत अमीर शरीयत ने फरमाया कि ये तमाम शहरियों और तमाम मजहब का आईनी और दस्तूरी फरीजा है कि एक दूसरे की मदद करें और तनव्वो में इत्तिहाद के उसूल के तहत इस वतन को एक खूबसूरत गुलसिताँ बनाएं, जहां हर रंग-ओ-बू के फूल खिलते हैं। हजरत अमीर शरीयत ने प्रेस को दिए बयान में अपील की कि मुस्लिम खवातीन को हिजाब के एहतिमाम की हर मुम्किन कोशिश करनी चाहिए। उन्होंने हिजाब पर जमने, डटने और अपनी आवाज बुलंद करने वाली जुरात मंद मुस्लिम तालिबात को मुबारकबाद पेश की और कहा कि वो अपने हौसले पस्त ना करें। हमें यकीन है कि सुप्रीमकोर्ट का नुक़्ता-ए-नजर हुकूक की आजादी के मुताबिक होगा, इंशा-ए-अल्लाह।
हजरत अमीर शरीयत ने ये भी फरमाया कि कौमें चैलेंजेज के बाद ही निखरती और आगे बढ़ती हैं। जिन कौमों को चैलेंजेज दरपेश नहीं होते, वो खाब-ए-गफलत में मदहोश हो जाती हैं। अल्लाह ने मुस्लमानों को उम्मते दावत बनाया है। इसलिए हर मुस्लमान को चाहिए कि वो अपने बिरादरान वतन के साथ इफहाम-ओ-तफहीम के काम में लग जाए ताकि दिलों की दूरियाँ कम हों, गलत-फहमियाँ दूर हों और खुशगवार फिजा हो।