सूफी चिश्ती फाउंडेशन सोसाइटी की पेशकश
मोहम्मद हासम अली
अजमेर : हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह की यौमे पैदाइश के मौके पर दरगाह के खादिम सैयद जवाद चिश्ती की जानिब से ख्वाजा साहब की संवाहें उमरी का इजरा किया गया। हिंदी ज़बान में शायाशुदा यह किताब अजमेर आने वाले जायरीनों को ख्वाजा साहब के बारे में जानकारी फराहम कराने में सूदमंद साबित होगी। खादिम डा सैयद नजमुल हसन चिश्ती ने बताया कि नौजवान पीढ़ी के हिंदी के तंई रुाान को देखते हुए सैयद जवाद चिश्ती ने ख्वाजा साहब की सवाहें उमरी की इशाअत हिंदी ज़बान में कराई है। किताब में ख्वाजा साहब को क्यों नायब-ए-मुस्तफा कहा गया है, और किस तरह ख्वाजा साहब ने अपने पीर-ओ-मुर्शीद की खिदमत करयह मुकाम हासिल किया है, जैसे सवालों के जवाब मिलेंगे। किताब को हिंदी ज़बान में शाया कराने का मकसद यह है कि ख्वाजा साहब की दरगाह में सभी मजहबों के लोग आते हैं। ख्वाजा साहब की यौम-ए-पैदाइश के मौके पर सवाहें उमरी की इशाअत जायरीनों में बाटने की गरज से की गई है।
रस्मे इजरा - विमोचन समारोह
इजरा - विमोचन
सवाहें उमरी - हालाते जिंदगी