दुनियाभर में तेजी से बढ़ रही है उम्र रसीदा अफराद की तादाद

21 जीअकादा 1444 हिजरी
पीर, 11 जून 2023
अकवाले जरीं
‘किसी मुसलमान को बेइज्जत करना, बड़े गुनाहों में से एक है।’ 
- अबु दाऊद
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लंदन : आईएनएस, इंडिया 
वर्ल्ड बैंक की जानिब से जारी आलमी तरक़्कीयाती रिपोर्ट 2023 के मुताबिक दुनिया में अब मेहनतकशों के लिए मुसाबकत (प्रतियोगिता) बढ़ रही है, क्योंकि अमीर और दरमयानी आमदनी वाले ममालिक में मौजूद उम्र रसीदा अफराद की तादाद गैरमामूली रफ़्तार से बढ़ती जा रही है जिसके सबब उन ममालिक का अपनी तवील मुद्दती तरक़्की की सलाहीयत के लिए तारकीन-ए-वतन (अप्रवासी) पर इन्हिसार (निर्भरता) बढ़ रहा है। 
दुनियाभर में तेजी से बढ़ रही है उम्र रसीदा अफराद की तादाद
    रिपोर्ट के मुताबिक 'वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट 2023 : में इस रुजहान की निशानदेही की गई है कि ये उन ममालिक की मईशतों (अर्थव्यवस्था) और लोगों के लिए हिजरत का अमल बेहतर बनाने के लिए एक मुनफरद (अच्छा, अद्वितीय) मौका है। दौलतमंद ममालिक के साथ-साथ दरमयानी आमदनी वाले ममालिक की बढ़ती हुई तादाद को कम होती आबादी का सामना है, जिसके सबब मजदूरों और हुनर के लिए आलमी सतह पर मुसाबकत तेज होती जा रही है। 
    रिपोर्ट में कहा गया है कि कम आमदनी वाले ज्यादा-तर ममालिक की आबादी में तेजी से इजाफे की तवक़्को है, जिससे इन ममालिक पर नौजवानों के लिए मजीद मुलाजमतें पैदा करने के लिए दबाव बढ़ेगा। रिपोर्ट में वाजेह किया गया कि अगर हिजरत के मुकम्मल तरक़्कीयाती फवाइद हासिल करने हैं तो मुताल्लिका ममालिक को एक बाजाबजा हिक्मत-ए-अमली के साथ उसे मुनज्जम बनाने की जरूरत है, आलमी सतह पर अदम तवाजुन (असंतुलन), मुकामी सतह पर धचके और मुआशरों की उभरती हुई जरूरीयात सरहद पार नकल-ओ-हरकत का सबब बनती रहेंगी। 
    रिपोर्ट में कहा गया कि इसके बावजूद उस वक़्त जिस तरीके से हिज्रत का इंतिजाम किया जा रहा है, वो बहुत से तारकीन-ए-वतन और शहरियों के लिए मायूसकुन है, जिससे सैकड़ों हजारों लोगों को बेपनाह तकलीफ दरपेश है, सियासत पोलोराईजेशन का शिकार हो रही है, और मुताल्लिका ममालिक में बड़े पैमाने पर मआशी नुक़्सानात जन्म ले रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक अहम चैलेंज ये है कि किसी भी 2 ममालिक के दरमयान सरहद पार नक़्ल-ए-मकानी का इस तरह इंतिजाम किया जाए जिससे तारकीन-ए-वतन और पनाह गजीनों के साथ-साथ दोनों मुताल्लिका ममालिक का भी फायदा हो। हतमी (अंतिम) मकासिद ये हैं कि किसी मुल्क से हिज्रत करने वालों की सलाहीयतें उस मुल्क की जरूरीयात के मुताबिक हो, जहां हिज्रत की जा रही हो ताकि दोनों ममालिक के लिए ज्यादा से ज्यादा फवाइद समेटे जा सकें, पनाह गजीनों के हालात को बेहतर अंदाज में तर्तीब दिया जाए ताकि दोनों मुताल्लिका ममालिक पर तरक़्कीयाती असरात मुरत्तिब हों, और आलमी बिरादरी भी इस हवाले से मुनासिब जिÞम्मेदारी अदा करे, इसके अलावा हिज्रत के नतीजे में मसाइब (मुश्किलों) का शिकार अफराद की मदद की जाए और मुस्तकबिल में इस तरह की नकल-ओ-हरकत की जरूरत को कम किया जाए। 


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