11 जिल हज्ज 1444 हिजरी
जुमा, 30 जून 2023
अकवाले जरीं
‘कुर्बानी का खून जमीन पर गिरने से पहले ही अल्लाह ताअला के यहां कबूल हो जाता है, इसलिए इसे खुशदिली से करो।’
- तिरमिजी शरीफ
---------------------------------------
------------------------------------------------------------------------
![]() |
जुमेरात को हुज्जाज कराम मुजदलफा जाते हुए, उस दिन मक्का मुकर्रमा में हाईएस्ट टेंपरेचर था |
रियाद : आईएनएस, इंडिया
लाखों आजमीन-ए-हज्ज मैदान अरफात में हज का रुकन-ए-आजम वकूफ अरफा अदा करने और मुजदल्फा में रात गुजारने के बाद मीना पहुंच कर जुमरात की सुबह रमी की और कुर्बानी का फरीजा अदा किया। अल अखबार चैनल के मुताबिक हुज्जाज के काफिले मंगल और बुध की दरमयानी शब से मीना पहुंचना शुरू हो गए थे। अब वो हुज्जाज कुर्बानी के बाद हलक कराएंगे और फिर एहराम की पाबंदियां खत्म हो जाएंगी। सऊदी वजीर हज-ओ-उमरा डाक्टर तौफीक अल रबीअह के मुताबिक रवां बरस 2023 (1444 हिज्री) में 150 से ज्यादा ममालिक से आने वाले आजमीन की तादाद 18 लाख 45 हजार 45 रही।
हुज्जाज कराम ने मस्जिद नमरा में हज का खुतबा सुना, जिसका तर्जुमा उर्दू समेत 20 जबानों में नशर किया गया। हुज्जाज ने मैदान अरफात में जुहर और अस्र की नमाज एक अजान दो इकामत के साथ कसर अदा की और गुरूब आफताब तक वकूफ किया। सूरज गुरूब होते ही हुज्जाज के काफिले मैदान अरफात से मुजदल्फा की तरफ रवाना हुए। हुज्जाज ने मुजदल्फा में, जो तीसरा हज मुकाम है, पहुंचने पर मगरिब और इशा की नमाज एक साथ एक अजान दो इकामत के साथ अदा की और रुमी के लिए कंकरीयां जमा कीं। हुज्जाज कराम ने बुध को जुमरात की रुमी की। जुमरात की रुमी जिसे उर्फ़-ए-आम में शैतानों को कंकरीयां मारना कहा जाता है, हज के अहम मनासिक में से एक है।
हुज्जाज कराम ने जुमरात रुमी करने के बाद कुर्बानी, हलक या तकसीर (बाल मुंडवाने या कटवाने) के बाद एहराम खोल दिए। हुज्जाज के ग्रुप तवाफ इफाजा अदा करने मक्का मुकर्रमा भी पहुंचे। सऊदी वजारत-ए-दाखिला के सिक्योरिटी तर्जुमान ने कहा है कि हज सिक्योरिटी प्लान का पहला मरहला कामयाबी से मुकम्मल हो गया। प्रेस कान्फें्रस में वजारत हज के अंडर सेक्रेटरी डाक्टर आईज अल गवीनम ने कहा कि मीना से अर्फात तक हुज्जाज की आमद-ओ-रफ्त के लिए बीस हजार बसें इस्तिमाल की गई जिनमें 42 हजार ड्राईवर और गाईड मौजूद थे। वजारत नक़्ल-ए-हमल के तर्जुमान सालेह अल जवेद के मुताबिक अर्फात से मुजदल्फा रवानगी एक घंटे से भी कम वक़्त में मुकम्मल हुई। तीन लाख हुज्जाज को मुशाविर मुकद्दसा ट्रेन और दीगर को जदीद बसों के जरीये पहुंचाया गया है।
मुजदल्फा, मीना और अर्फात के दरमयान है। मुजदल्फा के नाम के हवाले से बताया जाता है कि इसकी एक वजह ये हो सकती है कि हुज्जाज यहां रात की तारीकी में पहुंचते हैं, इसी मनाबस्त से उसे मुजदल्फा यानी (रात की मंजिÞल) कहा जाने लगा है। बाअज लोगों का कहना है कि मुजदल्फा नाम देने की वजह ये है कि यहां पहुंचने पर हुज्जाज हरम मक्की के करीब हो जाते हैं, उसके मअनी होते हैं, कि वो मंजिÞल जहां पहुंचने पर हुज्जाज हरम के करीब हो गए। मुजदल्फा का रकबा 13 मुरब्बा किलो मीटर से ज्यादा है। इसके मगरिब में मीना और मशरिक में अर्फात है। यहीं वादी मह्शर भी है, ये छोटी वादी है जो मीना और मुजदल्फा के दरमयान है। एक तरह से ये वादी मीना और मुजदल्फा के दरमयान हद-ए-फासिल का काम देती है।
रुमी के लिए शैडूल के मुताबिक हाजियों को काफिलों की शक्ल में भेजा जाता है। इसके तहत मुख़्तलिफ मुकामात पर खेमा-जन हाजियों को मुकर्ररा निजाम अल अवकात के मुताबिक रुमी के लिए जाते हैं। जुमरात काम्पलेक्स की तामीर में एक और बात का एहतिमाम किया गया है, वो ये कि सारे हुज्जाज को एक साथ, जुमरात पुल के किसी एक रास्ते पर 8 जमा होने से रोका जाए। इसीलिए कई रास्ते बनाए गए हैं। जुमरात के पुल को मुशाविर मुकद्दसा (मीना, मुजदल्फा और अर्फात) ट्रेन से भी मरबूत कर दिया गया है, ताकि हुज्जाज रुमी के बाद मुशाविर मुकद्दसा ट्रेन के जरीये अपनी मतलूबा मंजिÞल तक बा आसानी पहुंच सकें।