11 जिल हज्ज 1444 हिजरी
जुमा, 30 जून 2023
अकवाले जरीं‘कुर्बानी का खून जमीन पर गिरने से पहले ही अल्लाह ताअला के यहां कबूल हो जाता है, इसलिए इसे खुशदिली से करो।’
- तिरमिजी शरीफ
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मक्का मुकर्रमा, रियाद : आईएनएस, इंडिया मैदान अराफात की मस्जिद नमरा से शेख डाक्टर यूसुफ बिन मुहम्मद बिन सईद ने खुतबा-ए-हज पढ़ा, जिसे लाखों आजमीन समेत दुनियाभर में मौजूद मुस्लमानों ने टीवी और सोशल मीडीया के जरीया बराह-ए-रास्त सुना। खुतबा हज का तर्जुमा उर्दू समेत दुनिया की तकरीबन 20 जबानों में बराह-ए-रास्त नशर किया गया। खुतबा हज देते हुए शेख डाक्टर यूसुफ बिन मुहम्मद का कहना था कि ए ईमान वालों, दुनिया और आखिरत के मुआमलात में अल्लाह के हुक्म को पूरा करो, अल्लाह-तआला ने तफरुर्का डालने से मना किया है, तौहीद की दावत तमाम नबियों में मुश्तर्क रही, अल्लाह एक है, उसके सिवा कोई इबादत के लायक नहीं, अल्लाह के सिवा तमाम चीजों को खत्म हो जाना है। शेख यूसुफ बिन मुहम्मद का कहना था कि हुक्म दिया गया है कि नमाज अदा की जाए, जकात दी जाए, गरीबों की मदद की जाए। उन्होंने कहा, हज भी अरकान-ए-इस्लाम में से एक रुकन है, अल्लाह की इबादत ऐसे करो कि वो तुम्हें देख रहा है, किसी अरबी को अजमी पर और अजमी को अरबी पर फजीलत नहीं, जिस तरह इस महीने की हुरमत है, उसी तरह जान-ओ-माल की हुरमत है, दिन रात का आना-जाना अल्लाह-तआला की निशानियां हैं, अल्लाह की रस्सी को मजबूती से थाम लो, अल्लाह की हदूद की हिफाजत का मतलब है कि हम सिर्फ अल्लाह की इबादत करें, हर एक नबी ने यही दावत दी कि एक अल्लाह की इबादत करो, नमाज, रोजा, जकात और हज का हुक्म अल्लाह ने दिया है। खुतबा हज देते हुए शेख यूसुफ बिन मुहम्मद का कहना था अल्लाह अजीम-ओ-हकीम है, अल्लाह रब्बे जिल जलाल ने तफरुर्का और इखतिलाफात से मना फरमाया है, कुरआन में इत्तिहाद की एहमीयत को बयान किया गया है, इत्तिहाद में ही दीन-ओ-दुनिया के मुआमलात में फलाह है, मुस्लमानों का आपस में मिलकर रहना जरूरी है, अल्लाह ने फरमाया, जिसने किताब में इखतिलाफ किया, वो हिदायत से दूर रहा। मुस्लमानों को आपस में जुड़कर रहना जरूरी है, हमें हुक्म दिया गया है कि इखतिलाफ हो जाए तो कुरआन और सुन्नत की तरफ रुजू करें, कुरआन-ए-करीम में मुस्लमानों के लिए जुड़कर रहने का हुक्म है। इमाम-ए-काअबा का कहना था कि अच्छे अखलाक से दूसरों के दिल में जगह पैदा हो जाती है, मुस्लमानों के लिए जरूरी है कि अच्छे अखलाक रखें, शरीयत मुतह्हरा का मकसद है, मुस्लमान आपस में मुत्तहिद हों। इरशाद बारी है कि शिर्क ना करना, वालदैन से हुस्न-ए-सुलूक करो, गुनाह के कामों में तआवुन ना करो, तक़्वा में तआवुन करो, शैतान चाहता है, मुस्लमानों में तफरुर्का पैदा हो, दीन में तमाम तालीमात हैं, जो मुस्लमानों को जोड़ कर रखती हैं। शरीयत में हुक्म है, झगड़ा करने वालों को समझाया जाए।
ख़्याल रहे कि मनासिक हज के दौरान मीना के आरिजी खेमा में 8 जिल हज्जा का पूरा दिन कियाम के दौरान पांचों वक़्त की नमाजें अदा कर के दुनियाभर से आए लाखों हुज्जाज किराम ‘लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक’ की सदाएँ बुलंद करते हज के रुकन आजम वकूफ अर्फा के लिए 9 जिल हज्जा को नमाज फजर की अदायगी के बाद मैदान अरफात में जमा हुए। मैदान अराफात में हज का रुकन आजम वकूफ अरफा अदा होने के बाद आजमीन ने मस्जिद नमरा से खुतबा हज सुनने के बाद जुहर-ओ-अस्र की नमाजें यकजा करके एक साथ अदा कीं।
अजान मगरिब के बाद आजमीन मैदान अराफात से मुजदल्फा रवाना हुए जहां उन्होंने नमाज मगरिब और इशा मिला कर अदा की। जिसके बाद आजमीन-ए-हज्ज ने रातभर मुजदल्फा में खुले आसमान तले इबादत और जिÞक्र-ओ-अजकार करते हुए रात गुजारी और शैतान को कंकरी मारने के लिए कंकरीयां जमा की। 10 जिल हज्जा को नमाज-ए-फज्र के बाद मुजदल्फा से वापिस मीना रवाना हुए और हजरत इबराहीम अलैहिसस्लाम की सुन्नत की पैरवी में रुमी जुमरात किए। शैतान को कंकरीयां मारने के बाद कुर्बानी की, कुर्बानी के बाद हाजियों ने एहराम उतारे और बाल मुंडवा कर तवाफ-ए-जियारत के लिए मस्जिद अल हरम पहुंचे। वहां वे वे खाना काअबा जाकर तवाफ-ए-जियारत किए और वापिस मीना जाकर अय्यामे तशरीक गुजारा।