22 रमजान-उल मुबारक, 1444 हिजरी
जुमा, 14 अपै्रल, 2023
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पुलिस एफआईआर में उर्दू और फारसी अलफाज के इस्तिमाल पर पाबंदी
नई दिल्ली : आईएनएस, इंडियामीडीया रिपोर्ट के मुताबिक नेशनल काउंसिल आफ एजूकेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीईआरटी) की ग्यारहवीं जमात की सियासत की किताब से अजीम मुजाहिद-ए-आजादी, माहिर-ए-तालीम और मुल्क के पहले वजीर-ए-तालीम मौलाना अबुल कलाम आजाद का जिÞक्र हटा दिया है।
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मौलाना आजाद |
किताबों को मुबय्यना (कथित) तौर पर माकूल बनाने के लिए एनसीईआरटी ने गुजरात फसादाद, मुग़्लिया तारीख, एमरजेंसी, सर्द जंग और नक्सल तहरीक वगैरा के कुछ हिस्से गैर मुताल्लिका होने की बुनियाद पर किताबों से हटा दिए थे। किताब रेशनलायजीशन नोट में क्लास 11 पोलीटिक्ल साईंस की निसाबी किताब में किसी तबदीली का जिÞक्र नहीं किया गया। ताहम एनसीईआरटी ने दावा किया है कि इस साल निसाब में कोई कमी नहीं की गई है और ये गुजिश्ता साल जून में तैयार किया गया था। एनसीईआरटी के सरबराह दिनेश सकलानी ने बुध 11 अप्रैल को कहा कि ये नादानिस्ता गलती हो सकती है कि पिछले साल निसाबी किताबों को माकूल बनाने की मश्क में कुछ हिस्सों को हटाने का ऐलान नहीं किया गया था।
इस किताब के दसवें बाब में जम्मू-कश्मीर के मशरूत इंजिÞमाम (सशर्त एकीकरण) का हवाला हटा दिया गया है। किताब में ये पैराग्राफ हटा दिया गया था 'जम्मू-कश्मीर का इंडियन यूनीयन के साथ इंजिÞमाम (एकीकरण) आईन आर्टीकल 370 के तहत खुदमुखतारी के अजम पर मबनी था। काबिल-ए-जिÞक्र बात ये है कि पिछले साल मौलाना आजाद फैलोशिप को वजारत अकलीयती उमूर ने बंद कर दिया था। नए तालीमी सेशन के लिए एनसीईआरटी की क्लास 12 पोलीटिक्ल साईंस की निसाबी किताब में 'मुल्क की फिरकावाराना सूरत-ए-हाल पर महात्मा गांधी की मौत का असर, हिंदू मुस्लिम इत्तिहाद के गांधी के तसव्वुर ने हिंदू बुनियाद परस्तों को उकसाया और आरएसएस जैसी तन्जीमों पर कुछ वक़्त के लिए पाबंदी समेत कई मजामीन से मुताल्लिक कोई जिÞक्र नहीं है।
एफआईआर में उर्दू और फारसी अलफाज के इस्तिमाल पर पाबंदी
इसके साथ ही सर्कुलर में ऐसे 383 अलफाज की फेहरिस्त दी गई है, जो आम तौर पर बोल-चाल में इस्तिमाल नहीं होते। सर्कुलर में कहा गया है कि इन दकीक़ अलफाज का मतलब लोगों को पता नहीं होता। उनकी जगह हिन्दी और अंग्रेजी के आसान अलफाज का इस्तिमाल किया जा सकता है। आम तौर पर एफआईआर लिखते, चार्ज शीट दाखिल करते और डीडी दाखिल करते वक़्त भी उर्दू फारसी के ऐसे अलफाज इस्तिमाल किए जाते हैं, जो बोल-चाल में इस्तिमाल नहीं होते। इसमें 2018 में मफाद-ए-आम्मा की अर्जी (जनहित याचिका) दायर की गई थी, जिस पर हाईकोर्ट ने 7 अगस्त 2019 को एक हुक्म-जारी किया। इसमें कहा गया था कि शिकायत कुनिंदा के अलफाज में एफआईआर दर्ज की जाए। इसमें बहुत ज्यादा पेचीदा जबान इस्तिमाल नहीं करनी चाहिए। अदालत ने ये भी कहा कि पुलिस आम लोगों के लिए काम करती है ना कि उर्दू, फारसी, अंग्रेजी और हिन्दी में डाक्टरेट की डिग्रियां हासिल करने वालों के लिए।