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तलाक-ए-हस्ना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक और अर्जी दायर


नई दिल्ली :
तलाक-ए-हस्ना के खिलाफ दायर दरखास्त पर सुप्रीम कोर्ट से जल्द समाअत का मुतालिबा किया गया है। अदालत ने आइन्दा हफ़्ते समाअत की यकीन दहानी कराई है। तलाक-ए-हस्ना को चैलेंज करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक नई दरखास्त दायर की गई है। तलाक-ए-हस्ना की शिकार नजरीन निसा ने सुप्रीम कोर्ट में दरखास्त दायर कर इस अमल को गैर आईनी करार देने का मुतालिबा किया है। दरखास्त में कहा गया है कि तलाक-ए-हस्ना का रिवाज आईन आर्टीकल 14, 15 और 21 की खिलाफवरजी है। 

दरखास्त में मुस्लिम पर्सनल ला 1937 को गैर आईनी करार देने का मुतालिबा किया गया है। दरखास्त में मुस्लिम मैरिज एक्ट 1939 और निकाह हलाला को गैर आईनी करार देने की भी इस्तिदा की गई है। इसमें कहा गया है कि तलाक-ए-हस्ना का रिवाज मुस्लमान मर्दों में राइज है और इसके जरीये बीवीयों को हिरासां किया जाता है। मुतास्सिरा के मुताबिक उसकी शादी को 3 साल भी मुकम्मल नहीं हुए थे कि उसे जहेज के लिए तशद्दुद का निशाना बनाया गया। उसे टीबी का मर्ज लाहक हुआ जिसके बाद उसके शौहर ने उसे ससुराल भेज दिया। बीमारी की सूरत में शौहर का फर्ज़ था कि उसकी देख-भाल करे, लेकिन ऐसा नहीं किया गया और उसे एसएमएस के जरीये तलाक का नोटिस भेज दिया गया। तलाक-ए-हस्ना वो अमल है, जिसके जरीये एक मुस्लमान मर्द अपनी बीवी को महीने में एक-बार लफ़्ज तलाक बोल कर तीन माह तक तलाक दे सकता है।


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