हर साल तकरीबन तीन सौ बार दागती है तोप
फौजिया के तोप दागने के साथ ही होती है दरगाह के मजहबी रसूमात और ईदैन की शुरूआत
आरिफ कुरैशी : अजमेर शरीफ
आपको यह जानकर यकीनन हैरत होगी कि दरगाह हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह अलैह के मजहबी रसूमात और ईदैन की शुरुआत फौजिया के तोप दागने के साथ ही होती है। फौजिया तोपची के नाम से मशहूर फौजिया कई सालों से तोप दागकर ईदैन और दरगाह के मजहबी रसूमात की शुरूआत कर रही है। फौजिया हर साल तकरीबन तीन सौ बार तोप दागती है। यह काम वह बचपन से ही कर रही है। एक और जहां लोग ख्वाजा साहब की खिदमत को तरसते हैं, वहीं दरगाह के ठीक सामने वाली पहाड़ी पर रहने वाली फौजिया खान को बचपन से ही ख्वाजा साहब की खिदमत का सर्फ हासिल हो रहा है। हर बार, दरगाह की मजहबी रसूमात या ईदैन की नमाज से पहले वह पहुंच जाती है तोप के पास और इशारा मिलते ही तोप दागती है। उसकी तोप से निकली गरज के साथ ही न सिर्फ उर्स का आगाज होता है बल्कि दरगाह की मुतअद्दिद रस्मों और ईदैन की नमाज भी शुरू होती है। यहां तक कि नमाजे जुमा भी फौजिया के तोप दागने से होती है। सालाना उर्स पाक का ांडा भी फौजिया के तोप दागने के साथ ही चढ़ाया जाता है।
इस्लाम में हासिल है औरत को आला मकाम
अजमेर शहर में तोपची फौजिया के तौर पर जानी जाने वाली फौजिया तोप चलाने के अलावा घर परिवार का भी ध्यान रखती है। दरगाह के करीब ख्वाजा साहब से मुताल्लिक कव्वाली, नाअत शरीफ और दीगर मजागीन वाली किताबें वगैरह की उसकी एक छोटी सी दुकान है, जहां वह पूरे दिन मौजूद रहती है। जिससे उसका घर खर्च चलता है। फौजिया के वालिद अब इस दुनिया में नहीं रहे। परिवार के लोग फौजिया को बेटे की तरह मानते हैं। वे कहते हैं, फौजिया ने उनका सिर फख्र से ऊंचा कर दिया है। गौरतलब है कि फौजिया का परिवार पिछली सात पीढ़ियों से तोप चलाने के काम को अंजाम देता आ रहा है। अब यह काम फौजिया कर रही है। वह कहती है, उसने अपनी पूरी जिंदगी ख्वाजा साहब के नाम वक्फ कर दी है।