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टीपू सुल्तान : जिनके जीते-जी अंगे्रज मुल्क में घुसने की हिम्मत न कर सके (आज बरसी पर खास)


टीम नई तहरीक
 

टीपू सुल्तान की पैदाईश 20 नवम्बर 1750 को दक्षिण भारत के राज्य कर्नाटक के मैसूर के देवनाहल्ली (युसूफाबाद) (बैंगलोर) से तकरीबन 33 किलोमीटर उत्तर में हुई थी। टीपू का पूरा नाम सुल्तान फतेह अली खान शाहाब था। काबिल हुक्मरां होने के अलावा टीपू एक दानिश्वर (विद्धान) और एक काबिल सिपहसालार (सेनापति) थे। उनके वालिद का नाम हैदर अली और वालिदा का नाम फकरुन्निसा था। टीपू एक मेहनती हुक्मरां और एक काबिल जंग-जू थे। उन्हें मुतअद्दित जबानों की जानकारी थी।  टीपू को मैसूर का शेर भी कहा जाता है। इसके पीछे एक कहानी है। वह यह कि एक बार वे अपने एक फ्रांसीसी दोस्त के साथ जंगल में शिकार करने गए थे। तभी एक शेर ने उन पर हमला कर दिया। उन्होंने जुगत लगाकर तेजी से कटार से शेर को मार दिया। जब वे 15 साल के थे, उनके पास सिर्फ 2000 सैनिक थे। लेकिन अपनी हिम्मत और सियासी दांव पेंच के बल पर उन्होंने मालाबार की बड़ी सेना को हरा दिया था।

19 वीं सदी में ब्रितानी सरकार के अहलकार और लेखक विलियम लोगर ने अपनी किताब मालाबार मैनुअल  में लिखा है कि टीपू सुल्तान ने किस प्रकार अपने 30000 सैनिकों के बल के साथ कालीकट में तबाही मचाई थी। टीपू सुल्तान हाथी पर सवार था, और उसके पीछे उसकी बड़ी फौज चल रही थी। 

4 मई 1799 को टीपू की मौत के बाद उनकी सारी सल्तनत अंग्रेजों के हाथो में चली गई और इसके बाद से ही धीरे धीरे पूरे हिंदूस्तान पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया। आलम यह था कि टीपू के जीते-जी हिंदूस्तान पर काबिज होना अंग्रेजों के लिए एक ख्वाब से ज्यादा कुछ भी नहीं था। जनरल हारस को जब टीपू के शहीद होने की खबर मिली, उसने उनकी नअश पर खड़े होकर कहा था- ‘आज से हिंदूस्तान हमारा।’ 

हैदर अली की कब्र के बगल में दफनाया गया

अगले दिन शाम को राजमहल से टीपू सुल्तान का जनाजा निकाला गया। उनके जनाजे को उनके निजी सहायकों ने उठा रखा था। उसके साथ अंग्रेजों की चार कंपनियां चल रही थीं। जिन सड़कों से जनाजा गुजरा, उसके दोनों तरफ लोग खड़े हुए थे। जैसे ही जनाजा उनके करीब से गुजरता एहतेरामन वे सड़क पर लेट जाते और जोर-जोर से रो रहे थे। उनके मय्यत को लाल बाग में हैदर अली की कब्र के बगल में दफनाया गया। उसके बाद उन लोगों में 5000 रुपये बांटे गए, जो टीपू सुल्तान के जनाजे में शामिल हुए थे। 

एक अंग्रेज पत्रकार पीटर आॅबेर ने अपनी किताब 'राइज एंड प्रोग्रेस आॅफ ब्रिटिश पावर इन इंडिया' में लिखा, 'टीपू की हार के बाद पूर्व का पूरा साम्राज्य हमारे पैरों पर आ गिरा।'

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