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ईदगाह मुंगेर में अमीर शरीयत मौलाना अहमद वली का ईमान अफरोज खिताब

मुस्लमानों के खिलाफ जहर अफ़्शानी करने वाले मुल्क के सबसे बड़े दुश्मन
मुहल्ला सतह पर अमन कमेटी तशकील दी जाए
मुस्लमान खौफ से बाहर निकल कर अपनी जिम्मेदारियों को महसूस करें


मुंगेर :
कोविड 19 की वजह से गुजिशता दो बरसों के बाद मुंगेर की वसीअ-ओ-अरीज ईदगाह में ईदुल फितर की नमाज अदा की गई। ईदगाह में ईमान से लबरेज मुस्लमानों का अजीम मजमा नजर आया। नमाज के बाद हजरत अमीर शरीयत मौलाना अहमद वली फैसल रहमानी ने अपने ईमान अफरोज खिताब के दौरान शरई, तारीखी और सकाफ़्ती नुक़्ता-ए-नजर को सामने रखकर मुस्लमानों को अपने तशख़्खुस का एहसास दिलाया। नीज इनकी जिÞम्मेदारियां याद दिलार्इं, मुल्की हालात के पस-ए-मंजर में कौमों के उरूज व जवाल पर रोशनी डाली और हालाते हाजरा की मुनासबत से मुस्लमानों की रहनुमाई की। 

उन्होंने अपने बसीरत अफरोज खिताब में फरमाया कि ऐसा नहीं है कि जो मुश्किल हालात आज मुस्लमानों के लिए पैदा किए गए हैं, ये पहली बार है। तारीख गवाह है कि मंगोल के जमाना में इस से ज्यादा मुश्किल हालात मुस्लमानों के लिए पैदा हुए लेकिन अल्लाह की नुसरत आई और मंगोल खुद मुस्लमान हो गए। ये हमारे लिए बशारत है, लेकिन इस का मतलब ये नहीं कि हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें बल्कि हम अपनी जिÞम्मेदारियों को महसूस करें। हम ये जानें कि दुनिया में हमारा मकसद अल्लाह की रजा हासिल करना है। ये दुनिया हमारे लिए अमानत है, मसलेहत है, जिÞम्मेदारी है। यहां अमन-ओ-अमान हो, अदल हो, इन्साफ हो, अगर हमें अल्लाह की रजा मिल गई तो आने वाली दुनिया हमारी है, वर्ना खसारा हमारा है।

उन्होंने कहा कि मौजूदा हालात को देखकर अगर दौरे सलातीन का मुवाजना किया जाए तो बादशाहत जालिम लगेगी लेकिन ऐसा नहीं था। बादशाहत के दौर में भी गद्दारी हुई तो इसका जवाब दिया गया। उन्होंने कहा कि भारत की आबादी 137 करोड़ है, उनमें से एक फीसद लोग भी ऐसे नहीं हैं जो मुस्लमानों से जहर आलूदा नफरत करते हैं लेकिन वो एक फीसद भी सवा करोड़ हो जाते हैं इसलिए ये हमारी जिÞम्मेदारी है कि वो एक फीसद जो बहक गए हैं, जिन्हें वरगला दिया गया है, उन्हें समझाएँ। जो लोग मुल्क में नफरत की फिजा कायम कर रहे हैं, जो मुस्लमान दुश्मनी पैदा कर रहे हैं और 25 करोड़ अवाम के खिलाफ जहर घोल रहे हैं, वो इस मुल्क के सबसे बड़े दुश्मन हैं। हमें अपने पढ़े लिखे और मुहज्जब हिंदू भाईयों को ये समझाने की जरूरत है कि हम सबकी बेहतरी इसी में है कि हम सब अमन-ओ-अमान के साथ एक दूसरे के भाई बन कर रहें। 

उन्होंने कहा कि अल्लाह ताअला ने इन्सानों के अंदर इल्म पोशीदा कर दिया। अब ये हमारी जिÞम्मेदारी है कि हम तालीम हासिल करें। अल्लाह ने हमारे लिए शरीयत भेजी ताकि हम हक-ओ-बातिल और हराम-ओ-हलाल की तमीज के साथ जी सकें। जब इन्सान अल्लाह के रास्ते से भटक गया, अल्लाह ने हमारे लिए आखिरी शरीयत भेजी और कुरआन नाजिÞल फरमाया। अब इस इल्म को बिला तफरीक मजहब-ओ-मिल्लत को सीखना और सिखाना हमारी जिÞम्मेदारी है। मुल्क की मौजूदा सूरत-ए-हाल का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि कुछ दिनों से हिन्दोस्तान में तहजीब-ओ-सकाफ़्त पर गुफ़्तगु छिड़ी हुई है। तहजीबें अक्सर पैदा होती हैं, खत्म हो जाया करती हैं। कुछ तहजीब-ओ-सकाफ़्त इलाकाई होती है और कुछ नक़्ल-ए-मकानी पर मबनी होती हैं लेकिन कुछ तहजीबें आलमी होती हैं और इस्लाम एक आलमी तहजीब का नाम है। अल्लाह ताला ने पूरी दुनिया बनाई और इन्सानों के सामने यानी मुस्लमानों के हवाला कर दिया। इसलिए ये पूरी जमीन हमारी है। मगरिब से लेकर मशरिक तक। नॉर्थ पोल से लेकर साउथ पोल तक, जहां भी हमें अल्लाह की इबादत करने का मौका मिलेगा, हम जाएंगे। इसलिए कि अल्लाह ने ये पूरी कायनात पूरी जमीन बनाई और उसे इन्सानों के ताबे कर दिया।

हजरत अमीर शरीयत ने वाजेह तौर पर फरमाया कि मुस्लमानों ने तकरीबन दुनिया पर हुकूमत की और अदल-ओ-इन्साफ चप्पा चप्पा में फैलाया। चोर, डाकू, रहजन गायब हो गए। ये इस्लाम का उरूज है। जब भी मुस्लमान दूसरों के लिए सूदमंद हुए, इन्सानों की खिदमत की, तब-तब इस्लाम का उरूज हुआ और मुस्लमानों की सुर्खरूई रही। जब मुस्लमान आलमी फिक्र के साथ सोचते हैं तो अलजेबरा और अलागोरिथम जैसी मुतअद्दिद चीजें निकल कर सामने आती हैं।

अपनी तारीख पढ़ें मुसलमान 

हजरत अमीर शरीयत ने सैकड़ों ईजादात का जिÞक्र करते हुए कहा कि सर्जरी के तमाम आलात, हड्डी काटने का आला, इंजेक्शन देने की सीरींज मुस्लमानों ने ईजाद की है। मुस्लमानों ने ही शहरों में सूरज की रोशनी की सिम्त में मकानात की तामीर और सड़क पर चलने पर फौजियों और आम लोगों की आहट का फर्क़ पैदा करने वाली तखलीक का शानदार फिक्री-ओ-फन्नी मुजाहरा पेश है।

उन्होंने दो टूक लफ्जों में कहा कि आज कुछ लोग तारीख में तरमीम-ओ-तगय्युर के साथ दुबारा लिखने की कोशिश रहे हैं। अल्हम्दुलिल्ला कि वो ऐसा कर रहे हैं। इससे हमारे अंदर तारीख को अज सर-ए-नौ पढ़ने का जजबा पैदा होना चाहिए। हजरत ने फरमाया कि हमें तारीख इसलिए पढ़ना चाहिए ताकि हम लोगों को हकीकत बता सकें कि हिन्दोस्तान में जब मुस्लमान आए तो कैसा अदल आया। इब्न-ए-बतूता ने दिल्ली में आकर पाँच बरसों तक गवर्नरी की। उस वक़्त मुग़्लिया सल्तनत में ऐसा अदल था, जिसका तसव्वुर नहीं किया जा सकता। अक्सर खलीफा के वुजरा में यहूदी और नसरानी सब रहे हैं बल्कि एक खलीफा के वजीर-ए-आजम यहूदी थे। हिन्दोस्तान में मुग़्लिया सलतनत आई तो तमाम बड़े ओहदों पर हमारे हिंदू भाई मौजूद थे। उस के बावतजूद ये तोहमत कि मुस्लमान जालिम थे, सरासर गलत और बे-बुनियाद नहीं तो और क्या है। 

बच्चों की ताअलीम का बेहतरीन नज्म करें

अपने खिताब के आखिरी मराहिल में उन्होंने इस्लाम के सही मअनी-ओ-मतालिब और तालीम की एहमीयत पर जोर देते हुए फरमाया कि इस्लाम का मतलब अदल, इन्साफ, अच्छाई और खैर है, और ये सब ला-इलाह अलालला के विर्द से होता है। अल्लाह ने चाहा तो हम इस मुश्किल वक़्त से बाहर आ जाएंगे। अखीर में उन्होंने कहा कि ये हमारी जिÞम्मेदारी है कि हम अपने बच्चों को अल्लाह वाला बनाएं और उनकी तालीम का बेहतरीन नजम करें। हम इस्लाम पढ़ें, पढ़ाएं, सीखें, सिखाएं। हम अदल-ओ-इन्साफ, अमन-ओ-अमान और खैर का पैगाम अपने पड़ोसियों तक ले जाएं। उन्हें बताएं कि इस्लाम की तालीमात क्या हैं। उन्हें बताएं कि इस्लाम कभी किसी के माबूद को बुरा कहने की तालीम नहीं देता। हमें डर और खौफ की चहार-दीवारी से बाहर आकर समझने समझाने और इफहाम-ओ-तफहीम का रास्ता इखतियार करना चाहिए। हजरत ने अपनी बात खत्म करने से कब्ल लोगों से गुजारिश की कि मुहल्ला में अमन कमेटी तशकील दी जाये ताकि मुख़्तलिफ मजाहिब के लोग आपस में एक साथ बैठ कर बातें कर सकें। मिठाईयां खा सकें। इस से गलत फहमियाँ दूर होंगी और आपस में मुहब्बत की फिजा कायम होगी। 


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