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क्या बात, महज मस्जिद के लाउड स्पीकर की है!

 - सैयद शहरोज कमर, रांची

बात 2017 की है, पटना की पत्रकार साथी प्रीति सिंह ने तब पोर्टल की एक रपट में हिन्दुस्तान नाम के गुलिस्ताँ का हाल बताया था। यही हमारी ताकत है। जिसपर संकट की मिजाइल इनदिनों रह-रह कर तान दी जाती है, लेकिन शेरघाटी मोहब्बतपुर के मुहर्रम के अखाड़ी उदय और माँ के परिधान सिलते इस बुजुर्ग के रहते आपसी मोहब्बत की मजबूत चादर को मिजाइल भेद नहीं पाती। 

प्रीति बताती हैं, बेगुसराय की किरोड़ीमल गजानंद दुर्गा पूजा समिति के कुल 24 सदस्यों में 17 मुस्लिम हैं। जाहिर है पूजा में इनकी भागीदारी साफ-सफाई करने से लेकर प्रसाद बंटवाने और विसर्जन तक अहम होती है। समिति के अध्यक्ष अशोक कुमार गोयनका और समिति के सदस्य मो. फारूक बताते हैं कि यह परंपरा हमारे पूर्वजों से चली आ रही है। हम एक साथ सब काम करते हैं। पास ही मस्जिद और


एक वली की मजार भी है। अजान के वक़्त पूजा पंडाल का लाउड स्पीकर बंद कर दिया जाता है। आजकल अजान और लाउड स्पीकर की चर्चा इधर फिर जोरो पर है। 

पैगम्बर हजरत मोहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) के दौर की एक कहानी बताता हूँ। उनके बहुत ही प्रिय सहाबी (सहयोगी) गुजरे हैं। मस्जिद नबवी से पहली अजान पुकारने का श्रेय भी पैगम्बर (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) ने उन्हें ही मयस्सर कराया था। आलिम बताते हैं कि उन जैसा अजान देने वाला आज तक न हुआ। उनका नाम था हजरत बिलाल। एक दिन जब फज्र (सुबह की नमाज) की अजान हजरत बिलाल ने पुकारी, तो रसूल (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) ने उन्हें अपने पास बुलाया और अपना गुस्सा जाहिर करते हुए बोले, अभी रात बहुत बाकी है, फज्र होने में देर है। कई लोग सो रहे होंगे (इसमें कई बुजुर्ग, बच्चे और बीमार भी होंगे)। तुमने उन्हें फज्र से पहले ही अजान पुकार कर उन्हें जगा दिया। जाओ, अब उसी आवाज के साथ उसी अंदाज में उनसे माफी मांगो कि हम वक्त भांप न सके (तब घड़ी तो होती न थी) गलती से अजान पहले ही पुकार दी। आप लोगों की नींद में खलल पड़ी होगी, इसके लिए माफी चाहता हूं। अब सोचिए और विचारिए कि दीन क्या है!

पिछले साल जून की शुरूआत में सऊदी हुकूमत ने मस्जिद के लाउड स्पीकर की आवाज धीमी रखने का हुक्म जारी किया था। वहाँ के इस्लामिक मामलों के मंत्री डॉक्टर अब्दुल लतीफ बिन अब्दुल्ला अजीज अल-शेख का कहना था कि "मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर का प्रयोग सिर्फ़ धर्मावलंबियों को नमाज के लिए बुलाने (अजान के लिए) और इकामत (नमाज के लिए लोगों को दूसरी बार पुकारने) के लिए ही किया जाए और उसकी आवाज स्पीकर की अधिकतम आवाज के एक तिहाई से ज्यादा ना हो।"

अब बात समूची दुनिया में संकट बनकर उभरे ध्वनि प्रदूषण की। लेकिन क्या महज मस्जिद की अजान से ही ध्वनि प्रदूषण फैलता है। धार्मिक जलसे-जुलूस, जागरण और सियासी रैलियों में डीजे और लाउड स्पीकर नियंत्रित रहते हैं। बार-बार सुप्रीम कोर्ट के 2005 में दिये गये एक फैसले का हवाला सामने आता है। जिसमें रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउड स्पीकर पर रोक की बात कही जाती है। हालाँकि अदालत का आदेश है कि आवाज 60 डेसिबल से अधिक नहीं होनी चाहिए। लेकिन सिर्फ मस्जिद के लिए ही नहीं बल्कि हर जगह लगे लाउड स्पीकर पर आदेश लागू होने थे। सरकार ने ईमानदारी से इसे लागू नहीं किया। सियासत जरूर हुई और हो रही है -सिर्फ और सिर्फ मस्जिद और अजान के बहाने। इधर कर्नाटक में बैंगलुरू पुलिस ने इस फरवरी में 310 जिन संस्थानों को इस संबंध में नोटिस दिया था। इनमें 125 मस्जिदें, 83 मंदिर, 22 चर्च और 59 पब-बार के अलावा 12 कारखाने भी शामिल थे। हुआ क्या? क्या मस्जिद के अलावा सभी जगह के लाउड स्पीकर की आवाज 60 डेसिबल हो गयी! 

बहुत गौर से सोचिएगा कि क्या बात महज मस्जिद के लाउड स्पीकर की ही है।


(ये मुसन्निफ के अपने ख्याल हैं)

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